How did the Turtle Survive? कछुए के गले में 2 इंच भीतर फंसा फिश हुक, 2 घंटे की सर्जरी से बचाई जान

10 दिन देखभाल बाद नदी में छोड़ा

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How did the Turtle Survive? कछुए के गले में 2 इंच भीतर फंसा फिश हुक, 2 घंटे की सर्जरी से बचाई जान

खरगोन: खरगोन के बोरावां के सरकारी पशु अस्पताल में 380 ग्राम वजनी मादा कछुआ के गले के 2 इंच अंदर अटके मछली के हुक का जटिल ऑपरेशन कर उसकी जान बचाई गई। ठीक हो जाने के बाद उसे वेदा नदी में छोड़ दिया गया।

मादा कछुओं के ऑपरेशन विभिन्न चिकित्सीय स्थितियों के लिए किए जाते हैं, जैसे कि अंडे नहीं निकल पाने की स्थिति (एग-बाइंडिंग सिंड्रोम) या चोट लगने की स्थिति, जैसे कछुए के गले में फिशहुक फँसना. कुछ मामलों में, कछुए के शेल की मरम्मत के लिए भी सर्जरी की जाती है. यह प्रक्रिया जटिल होती है और इसमें एनेस्थीसिया, निगरानी और सफल परिणाम के लिए पोस्ट-ऑपरेटिव देखभाल शामिल होती है.

यहां मामला कछुए के गले में फंसे हुए हुक का था। क्षेत्र के योगेश नेगी घायल कछुए को अस्पताल लाए थे। यहां पशु शल्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. संतोष मंडलोई ने कछुए की जांच में पाया कि मछली पकड़ने वाला हुक कछुए के गले में 2 इंच अंदर तक बुरी तरह फंसा हुआ है। उसे बिना सर्जरी निकालने के प्रयास असफल रहे।

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डॉक्टर मंडलोई ने बताया कि कछुआ दर्द से तड़प रहा था। गले में हुक फंसा होने से उसे सीधे निकलना मुश्किल था। काफी प्रयास किए उसके बाद एनेस्थीसिया दिया। 2 घंटे की जटिल सर्जरी में गले में फंसे फिश हुक को निकाला गया।

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सर्जरी के बाद डॉक्टर मंडलोई की देखरेख में 10 दिन तक अस्पताल परिसर में रखकर कछुआ के स्वास्थ्य की देखभाल की गई। सुबह शाम दवाई दी गई। उसके पूरी तरह स्वस्थ होने पर रविवार को उसे वेदा नदी के प्राकृतिक आवास में छोड़ दिया।

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मादा कछुआ 380 ग्राम का था। जटिल सर्जरी में सहायक पशु चिकित्सा क्षेत्र अधिकारी जितेंद्र मंडलोई व पूजा धार्वे के अलावा स्टॉफ कर्मचारी चेतन पटेल का सहयोग रहा।