मैं मध्यप्रदेश…हारे हुए और जीत कर भी हारे जैसे सभी का दु:ख महसूस कर रहा हूं…
विधानसभा चुनाव 2023 ने बहुत सारे गुल खिलाए हैं। बहुत सारे विकास के पर्याय जिंदादिल नेताओं को मैदान ने मार दिया है। तो बहुत सारे कद्दावर नेताओं ने मैदान तो मार लिया है लेकिन मंत्री पद न पाकर निराशा के गर्त में डूब गए हैं। मानो मोदी-शाह की रणनीति ने उन्हें जीते जी ही मार दिया हो। जीतने वाले जो चेहरे हारे हैं, उनमें डॉ. नरोत्तम मिश्रा, कमल पटेल, अरविंद भदौरिया सहित दर्जन भर नाम हैं। अगर जीतते तो बाजी इनके हाथ में होती। पर अब भविष्य वक्त के हाथों में है। मैं मध्यप्रदेश 2023 विधानसभा में इन्हें मिले दु:ख को देखा भी हूं और नितांत अकेले में इनके संग रोया हूं और इनके आंसुओं को पोंछने की कोशिश भी मैंने की है। तो इससे ज्यादा दु:खी उन विधायकों की भावुकता को मैं महसूस कर रहा हूं जो जीत तो गए, पर मंत्री न बन पाने से मन मारने को मजबूर हैं। गोपाल भार्गव, भूपेंद्र सिंह, बृजेंद्र प्रताप सिंह, जयंत मलैया, डॉ. प्रभुराम चौधरी जैसे नाम वह हैं, जो मंत्री पद के असली हकदार थे। पर वक्त के आगे किसी की नहीं चली और यही गाना गुनगुनाया जा सकता है कि “दिल के अरमां आंसुओं में बह गए…”।
पहले बात करें उन कद्दावर नेताओं की, जिन्हें खुद की जीत पर रत्ती मात्र संशय नहीं था। सबसे पहला नाम वह, जो जीतता तो यह भी संभव था कि सीएम की कुर्सी भी स्वागत करने को आतुर होती। वह नाम है डॉ. नरोत्तम मिश्रा का। जिन्होंने दतिया में उतना विकास किया, जितना संभव था। जो जीत को लेकर आश्वस्त भी थे। पर परिणाम ने जीत पर उनके चिर परिचित प्रतिद्वंद्वी राजेंद्र भारती का नाम लिख दिया। और डॉ. नरोत्तम मिश्रा वक्त की इस बेरहमी को खुशी-खुशी सह गए। यही स्थिति एक और विकास पुरुष और दिग्गज नेता कमल पटेल के साथ हुई। विकास की गंगा अगर हरदा में बही है, तो नर्मदापुत्र कमल को उसका श्रेय जाता है। और उनकी कार्यशैली के कायल उनके धुर विरोधी भी हैं। पर परिणाम ने जीत पर उनके चिर परिचित प्रतिद्वंद्वी रामकिशोर दोगने का नाम लिख दिया। यह दावा किया जा सकता है कि अगर किस्मत साथ देती तो यह दोनों सितारे मंत्रालय की चमक में इजाफा कर रहे होते। ऐसा ही नाम अरविंद भदौरिया का है, जो जीतकर इतिहास बनाने की उम्मीद में थे, पर निराशा ही हाथ लगी। अब तकदीर का लिखा कोई नहीं बदल सकता। डॉ. मोहन यादव मुख्यमंत्री बनकर इसकी गवाही दे रहे हैं। मैं मध्यप्रदेश…इन हारे हुए बाजीगरों के दु:ख में बहुत दुःखी हूं, पर मेरे हाथ में भी कुछ नहीं था।
अब यह तो रियल बाजीगर हैं, जिन्होंने अपने पूरे राजनैतिक जीवन में हार का मुंह कभी नहीं देखा। सदन में वरिष्ठतम विधायक होने के नाते इन्हें प्रोटेम स्पीकर का सम्मान भी मिला। पर मंत्रियों की सूची ने इन पर जो वज्राघात किया, वह तो असहनीय ही था और अकल्पनीय भी था। पर अब कमल की ऊंचाई इतनी अधिक हो गई है कि अटल जी की कविता “प्रभु इतनी ऊंचाई कभी मत देना…” के शब्द अक्षरश: सही साबित हो रहे हैं। पंडित गोपाल भार्गव ने भावुक प्रतिक्रिया देने की कोशिश की, पर मन मारकर प्रतिक्रिया वापस ले ली। शायद यही बात मन में आ रही होगी कि बेहतर होता कि बेटे अभिषेक को चुनाव रण में भेजकर संयास ले लेते। गोपाल भार्गव की यह स्थिति मुझ मध्यप्रदेश से भी देखी नहीं जाती। वह दृश्य मेरी आंखों के सामने आ जाता है, जब दो शेरदिल जननायक बाबूलाल गौर और सरताज सिंह को खास एजेंडा के तहत मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखाया था। खैर मैं मध्यप्रदेश पूरी तरह से पंडित गोपाल भार्गव की भावनाओं की कद्र करता हूं और उनके दु:ख का साथी हूं। भूपेंद्र सिंह उसी सागर के दूसरे रत्न, जिनकी चमक फीकी कर दी, 2023 के मंत्रिमंडल गठन ने। गृह, परिवहन, नगरीय विकास और आवास जैसे भारी भरकम विभागों में झंडे गाड़ने के साथ भूपेंद्र ने शिवराज मंत्रिमंडल में इंद्र की तरह ही राज किया था। और अब तो वह ओबीसी के सर्वमान्य नेता बन गए हैं। पर सत्ता का शीर्ष चेहरा बदला और वक्त ने भूपेंद्र सिंह की सियासत पर कुठाराघात कर दिया। “जाएं तो जाएं कहां”…अब जो ऊपर वाले को मंजूर, वही मंजूर करने को मजबूर हैं भूपेंद्र सिंह। बुंदेलखंड के एक और दिग्गज बृजेंद्र प्रताप सिंह के साथ भी ऐसा ही हुआ। और फिर बाकी नेताओं के मन की पीड़ा भी यही है। मैं मध्यप्रदेश इन सभी दिग्गजों के दु:ख का दृष्टा भी हूं और सहभागी भी हूं।
अब देखो यह दिसंबर 2023 का महीना इन पर कितना क्रूर बनकर बेरहमी से वार करता रहा। और मैं मध्यप्रदेश यह देखने को मजबूर था। पहले 3 दिसंबर 2023 को चुनाव परिणाम आया और कुछ दिग्गजों से जीत छीनकर उन्हें स्थायी घाव दे दिया। फिर नया मुख्यमंत्री और दो उप मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश को मिले और कईयों के अरमान टूट गए।फिर मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ और कितनों को जख्मी कर वक्त आगे बढ़ गया और अब 30 दिसंबर को विभागों का बंटवारा भी हो गया और सरकार दौड़ लगाने को तैयार है। जिनका दिल टूटा है, उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। यह साल जाने वाली है और कल यानि एक जनवरी 2024 से पुराना अध्याय अतीत का हिस्सा बन जाएगा। पर मैं मध्यप्रदेश … हमेशा उनके दु:ख को महसूस करता रहूंगा, जिन्हें योग्य होने के बाद भी उनका मुकाम हासिल नहीं हो सका। मैं मध्यप्रदेश…हारे हुए और जीत कर भी हारे जैसे सभी का दु:ख महसूस कर रहा हूं…।