

कविता
कोई देवता तो मैं नहीं!
रजनीकांत जोशी
इंसान हूँ मुझसे ग़लतियाँ तो होगी
कोई देवता तो मैं नहीं ।
भ्रम में जीता हूँ ग़लतफ़हमी तो होगी
फ़ितरत का बुरा तो मैं नहीं ।
मुझमें बहुत अच्छाइयाँ तो नहीं है
जूठा दिखावा करता तो मैं नहीं ।
जीवन में सब तय है,इसीका भय है
मुश्किलों से डरता तो मैं नहीं ।
क़िस्मत में जो लिखा वही तो होगा
होनी को टाल सकता तो मैं नहीं ।
औरों के मुक़ाबले ज़्यादा नहीं पाया
भाग्य को बुरा कहता तो मैं नहीं ।
अपनी बर्बादी की वजह मैं ख़ुद हूँ
इल्ज़ाम औरों पर डालता तो मैं नहीं ।
कोई देवता तो मैं नहीं ।

रजनीकांत जोशी (राज )
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