हैंडराइटिंग का जादू: जब अक्षरों में झलकती है आत्मा की सुंदरता

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✍️ हैंडराइटिंग का जादू: जब अक्षरों में झलकती है आत्मा की सुंदरता

कभी शब्दों का सौंदर्य उनकी लिखावट से नापा जाता था। कागज़ पर उतरे अक्षर व्यक्ति की संवेदनशीलता, अनुशासन और आत्मा के आईने हुआ करते थे। आज जब उंगलियां की-बोर्ड पर फिसलती हैं और संदेश कुछ सेकंड में भेज दिए जाते हैं, तब भी कुछ अक्षर ऐसे होते हैं जो समय रोक लेते हैं।

वरिष्ठ पत्रकार कीर्ति राणा ने जब अपने मित्र की बिटिया – उत्तराखंड की आठवीं कक्षा की छात्रा “पावनी खेतवाल” की अप्रतिम हैंडराइटिंग देखी, तो उन्हें अपने कॉलेज के वो दिन याद आ गए जब लिखावट भी एक पहचान होती थी और हर शब्द अपने भीतर एक आत्मीयता समेटे होता था।

उनकी यह स्मृतिपूर्ण टिप्पणी सिर्फ हैंडराइटिंग पर नहीं, बल्कि उस भावनात्मक जुड़ाव पर है जो “लिखने” से जुड़ा होता है।

मुझे भी कभी गर्व था अपनी रायटिंग पर

– कीर्ति राणा

कॉलेज जमाने के दोस्त Anil Malik ने उत्तराखंड की 8वीं क्लास की पावनी खेतवाल की खूबसूरत हैंडरायटिंग वाला वॉयरल हुआ यह पत्र सेंड करते हुए लिखा कि मोबाइल की लत ने पत्र लिखने की आदत लगभग खत्म सी कर दी है। वाकई कितनी खूबसूरत लिखावट है, इसे देखते हुए मुझे गुजराती कॉलेज के दिनों की याद आ गई जब विभिन्न पीरियड में पढ़ाने वाले प्रोफेसर के नोट्स लेता था। इन नोट्स को संबंधित विषयों वाली कॉपी में अलग-अलग टॉईप (ब्लेक/इटेलिक फॉंट) की तरह लिखता था। शायद यह लिखावट/नोट्स का ही प्रभाव रहा कि तब क्लॉस में मेरी इन कॉपियों की – खासकर गर्ल्स में खूब डिमांड रहती थी। एक ने कॉपी लौटाई कि दूसरे के पास पहुंच जाती थी।

प्रोफेसर्स मैडम अनसुइया देसाई, सरोज कुमार, अक्षय कुमार जैन, जवाहर चौधरी, राजेंद्र कुमार जैन से लेकर सुबंधु दुबे, टीआर सेठ आदि सभी हैंडरायटिंग की तारीफ करते थे। मेरी रायटिंग को लेकर कॉलेज दोस्त राजकुमार हार्डिया ने भी कमेंट कर के याद दिलाई थी।

हैंडरायटिंग के मामले में भले ही क्लास में अव्वल रहा, रिजल्ट में तो फिसड्डी ही रहा – पांचवी से लेकर एमए हिंदी लिटरेचर तक में।

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कॉलेज में मेरी इस लिखावट को लेकर सरोज कुमार कई बार समझाते भी थे कि अक्षरों के ऊपर लाइन (शिरोरेखा) भी खींचा करो, लेकिन मेरी तब से ही आदत रही बिना लाइन खींचे लिखने की। अभी भी जब ऐसे ही लिखता हूं तो कई बार लोगों को यह भ्रम हो जाता है कि गुजराती में लिखा है क्या।

लिखने का यह तरीका एक तरह से स्वर्गीय पिता के लिखने के तरीके से गिफ्ट में मिला है। हां, जब किसी को पत्र लिखना होता है तो पहले लंबी लकीर खींचता हूं फिर अक्षर लिखते जाता हूं। अब तो लिखने का काम मोबाइल-नोट्स पर ही करता रहता हूं – चाहे हजार-दो हजार शब्दों की खबर लिखना हो या मैसेज करना हो।

 

और अंत में….

कभी हाथ से लिखे अक्षरों में जो आत्मीयता होती थी, वह अब किसी स्क्रीन पर नहीं मिलती। लिखावट सिर्फ शब्दों की बनावट नहीं होती, वह व्यक्ति की आत्मा की लय होती है। पावनी जैसी नई पीढ़ी अगर इस सौंदर्य को सहेजे रखे, तो शायद “लिखने” की संवेदना फिर से लौट आएगी।

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