‘मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया!’

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पुण्यतिथि पर विशेष

‘मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया!’

हिन्दी सिनेमा के रुपहले पर्दे पर आज तक कितने ही हीरो आए और चले गए, लेकिन ऐसे कुछ ही हैं जिनके किस्सों के जिक्र किए बिना हिंदी सिनेमा का इतिहास अधूरा है। सदाबहार अभिनेता देव आनंद भी ऐसे ही फिल्मी सितारों में से एक है, जो अपने जमाने में रूमानियत और फैशन आइकन थे। फिल्म इंडस्ट्री में हर बड़े नायक का अपना दौर रहा है. अपने जमाने में उनकी तूती बोला करती थी, लेकिन समय बदला, तो उनके हालात बदल गए। राजेश खन्ना से लेकर दिलीप कुमार तक इसके बड़े उदाहरण हैं।

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मायानगरी में एक ऐसे दिग्गज अभिनेता भी रहे हैं, जिनको उम्र भी अपने बंधन में बांध नहीं सकी। वो थे सदाबहार नायक देवआनंद जो अपनी मृत्यु के 11 बरस बाद भी दर्शक उन्हें नहीं भूले है और गाहे बगाहे वह दर्शकों की स्मृतियों में याद आ जाते हैं। हिंदी सिनेमा में करीब 6 दशक तक अपने हुनर, अदाकारी और रूमानियत का जादू बिखेरने वाले सदाबहार अभिनेता देव आनंद का जन्म 26 सितंबर 1923 को पंजाब के गुरदासपुर में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। उनका असली नाम धर्मदेव पिशोरीमल आनंद था। 1942 में लाहौर में अंग्रेजी साहित्य से स्नातक करने के बाद देव आनंद आगे भी पढना चाहते थे, लेकिन पिता ने आर्थिक समस्या का हवाला देकर नौकरी करने के लिए कह दिया। 1943 में अपने सपनों को साकार करने के लिए जब वह मुंबई पहुंचे, तब उनके पास मात्र 30 रुपए थे। रहने के लिए कोई ठिकाना नहीं था। लेकिन, देव साहब ने लंबे संघर्ष के बाद अपना मुकाम हासिल किया और फिल्म इंडस्ट्री में खुद को मजबूती से स्थापित किया।

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देव आनंद अपने जमाने के मशहूर अभिनेता होने के साथ ही एक सफल फिल्मकार भी थे। उन्होंने उम्र के आखिरी पड़ाव तक फिल्मों के लिए काम किया। दर्शक उनकी अदाओं के दीवाने थे। उनका स्टाइल, ड्रेसिंग सेंस और हेयर स्टाइल कॉपी किया करते थे। उनकी संवाद अदायगी लोगों का मन मोह लेती थी। लेकिन, इतना स्टारडम होने के बावजदू वो हमेशा जमीन से जुड़े रहे। कभी अपनी शख्सियत पर घमंड नहीं किया। हमेशा बड़ों को सम्मान दिया और छोटे को प्यार किया। उनके ऑफिस और घर का दरवाजा हर किसी के लिए खुला रहा। वो एकमात्र सुपरस्टार थे, जो अपॉइंटमेंट फिक्स करते समय स्वयं पत्रकारों से पूछते थे कि उनके लिए सुविधाजनक समय क्या रहेगा! उनसे पहले और बाद में भी ऐसा किसी ने नहीं किया। यहां तक कि अपनी पार्टियों के लिए लोगों को आमंत्रित करने के लिए खुद फोन करते थे।

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‘हम दोनों’ का गीत ‘मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया, हर फिक्र को धुंए में उड़ाता चला गया’ देव आनंद के जीवन को सही रूप में परिभाषित करता है। उन्होंने अपनी जिंदगी में कभी असफलता को हावी नहीं होने दिया। ऐसे वक्त में भी वो अडिग रहे। अपने लक्ष्य के प्रति ईमानदारी से डटे रहे। जितनी बार असफल हुए, उससे कहीं ज्यादा बार कोशिश की, जिसकी वजह से उनको सफलता मिली। अपने जीवन के उत्तरार्ध में देव आनंद ने करीब 19 फिल्में निर्देशित की और 31 फिल्में बनाई। इनमें से अधिकतर फिल्में बॉक्स ऑफिस पर कमाल नहीं कर पाईं। फिल्मों की असफलता के बाद भी देव आनंद ने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने हर बार सीख ली और आगे बढ़ गए। यही वजह है कि अपनी उम्र के आखिरी पड़ाव तक वो हिंदी सिनेमा के लिए अपना योगदान देते रहे।

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देव आनंद हिंदी सिनेमा के सबसे बड़े स्टाइल आइकन थे। वे आजाद भारत के पहले सुपर स्टार थे जिन्होंने कई पीढ़ियों पर अपना जादू चलाया। लेकिन, अपनी रोमांटिक छवि के इतर, वो अपने विचारों और जीवन जीने के तरीके में बेहद स्वतंत्र और निडर थे। भारत की तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने जब देश में आपातकाल लगाया, तो वो फिल्म इंडस्ट्री के पहले शख्स थे, जिन्होंने इसके खिलाफ अपनी आवाज उठाई। यहां तक कि समाज और देश के लिए सिनेमा छोड़कर कुछ वक्त के लिए सियासत में भी चले आए। साल 1977 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने ‘भारतीय राष्ट्रीय पार्टी’ नाम से एक पार्टी भी बनाई। इसके लिए अपने समर्थकों के साथ सक्रिय रूप से प्रचार भी किया, लेकिन जल्द ही उनका मोहभंग हो गया और उन्होंने पार्टी भी भंग कर दी।

काम के प्रति देव आनंद जुनून गजब का था। उन्हें अपने काम से इतना प्यार था कि वे 88 साल की उम्र तक भी काम करते रहे। उस वक्त भी उनके अंदर ऊर्जा और उत्साह वैसा ही था, जैसा उनके जवानी के दिनों में हुआ करता था। उनसे जब ये पूछा जाता कि आप इतनी ऊर्जा लाते कहां से हैं! इस पर देव साहब कहते कि जब आप रचनात्मक होते हैं, तो दिमाग को मजबूत होना चाहिए। यही दिमाग शरीर को साथ लेकर चलता है। जानी-मानी फिल्म लेखिका और समीक्षक भावना सोमाया एक बार देव साहब से मिलने उनके ऑफिस गईं, तो उन्होंने देखा कि उनके टेबल पर सारा सामान बिखरा पड़ा है। उनको देखते ही देव आनंद बोले, मेरी मेज पर इस अस्त-व्यस्तता पर ध्यान मत दो। क्योंकि, यह अस्त-व्यस्तता मेरी रचनात्मकता का हिस्सा है। मैं कभी भी अपनी डेस्क को हमेशा साफ रखने में विश्वास नहीं करता हूं। क्योंकि, यह रचनात्मक ऊर्जा की बर्बादी है। उनकी इन बातों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वो अपने कार्य के प्रति कितने समर्पित थे।

देव आनंद को बॉलीवुड का असली रोमांटिक हीरो कहा जाता है। न सिर्फ पर्दे पर बल्कि असल जिंदगी में भी देव आनंद की दिल्लगी का कोई सानी नहीं है। अपनी फिल्म की अभिनेत्रियों के साथ अपने रोमांस को लेकर भी वे चर्चा में रहे। चाहे सुरैया हो या जीनत अमान दोनों के साथ उनके प्रेम के चर्चे खूब आम हुए। खुद देव आनंद ने भी माना था कि कि सुरैया उनका पहला प्रेम थीं और जीनत को भी वह पसंद करते थे। लेकिन, वे उन्होंने हमेशा से ही महिलाओं का सम्मान किया। उनके साथ काम करने वाली महिला कलाकार खुद को सुरक्षित महसूस किया करती थीं। उनकी बातों में ऐसा जादू था कि लोग खुद ब खुद उनकी तरफ खींचे चले आते थे। अपने आखिरी दिनों में उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा था कि मैं अब तो ‘गाइड’ के स्वामी जैसा ही जीवन जी रहा हूं। उनकी सदाशयता और उनका मनुष्यत्व और उनका यही आकर्षण आज भी बरकरार है और आज भी लोग उन्हें उसी शिद्दत के साथ याद करते हैं।

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अशोक जोशी

अशोक जोशी सामाजिक समेत कई विषयों के जाने-माने लेखक और अनुवादक हैं। हिंदी और अंग्रेजी में उनके कई लेख देश की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। वे रोजगार संबंधी काउंसलर भी रह चुके हैं।