IAS Garima Agrawal
एक बार परिवार में सहज ही बातचीत के दौरान दादा जी ( जो कॉटन व्यापारी होने से कलेक्टर और वरिष्ठ अधिकारियों से अपने व्यवसायिक कार्यवश मिलते रहते थे) ने मेरे पिताजी से पूछा था कि आखिर IAS में ऐसा क्या स्पेशल होता है और हमारे घर का बच्चा IAS क्यों नहीं बन सकता? मेरे मन में यह बात घर कर गई और मैंने तभी ठान लिया था कि मैं दादाजी के सपने को पूरा करके रहूंगी। और आज मुझे बहुत सुकून और प्रसन्नता है कि मैं दादा जी के इस सपने को पूरा कर पाई।
ये बात है मध्य प्रदेश के एक छोटे से नगर खरगोन की गरिमा अग्रवाल की, जिन्होंने UPSC की Civil Services Exam में 2018 में पहले IPS और 2019 में IAS Crack किया।
गरिमा का मानना है कि कड़ी मेहनत, योजनाबद्ध प्रयास और दृढ़ निश्चय से ही इसे हासिल किया जा सकता है। इस लक्ष्य को हासिल करने में मेरी प्रेरणा बड़ी बहन प्रीति और खरगोन की तत्कालीन कलेक्टर अलका उपाध्याय बनी।
मैं सरस्वती विद्या मंदिर में कक्षा 6ठी में पढ़ती थी और किसी समारोह में कलेक्टर अलका उपाध्याय मुख्य अतिथि बन स्कूल में आई। उन्हें देख एक बार फिर तय किया कि बनना तो कलेक्टर ही है। इसी उद्देश्य से पापा ने समय लेकर अलका मैडम से मुलाकात भी करवाई। तब अलका उपाध्याय ने भी शायद यह नहीं सोचा था कि बड़ी होकर यह बिटिया वाकई IAS बनेगी।
गरिमा बताती है कि 12वीं की पढ़ाई खरगोन में ही सरस्वती शिशु मंदिर में करने के बाद मेरा चयन हैदराबाद ट्रिपल आईटी में कंप्यूटर साइंस विषय में हुआ। इसके बाद मैं जर्मनी इंटर्नशिप के लिए चली गई, लेकिन लक्ष्य हमेशा IAS बनना ही रहा। वहां से आकर फिर मैंने 2017 में UPSC की तैयारी शुरू की और 2018 में पहले प्रयास में मेरी 240वीं रैंक आई। मेरा चयन IPS के लिए हुआ, लेकिन उससे मैं संतुष्ट नहीं थी। मुझे तो मेडम अलका उपाध्याय के रूप में कलेक्टर दिखती थी और मुझे तो कलेक्टर ही बनना था।
मैंने IPS एकेडमी ट्रेनिंग ज्वाइन जरूर की, लेकिन इस बार फिर IAS की तैयारी और बेहतर तरीके से की और मेरी 40वीं रैंक आई। परिणाम सबके सामने है।
गरिमा विशुद्ध रूप से व्यावसायिक परिवार से ताल्लुक रखती है। उनके पिता कल्याण अग्रवाल खरगोन में कपास का बिजनेस करते है। हमारा मारवाड़ी परिवार है। यहां घर की बहुओं को अभी भी घूंघट रखना होता है।
गरिमा बताती है कि मेरे परिजन आधुनिक सोच के रहे हैं। इस पारिवारिक माहौल के बावजूद भी पिताजी सहित पूरे परिवार ने गरिमा के सपनों को पूरा करने के लिए कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी।
गरिमा का शुरू से ही भारत की संस्कृति और विरासत से प्यार रहा है और इसी से जुड़ी उनकी दो किताबें भी प्रकाशित हो चुकी है। ‘भारत को भारत रहने दो’ उनकी पहली किताब थी जो 2003 में ही प्रकाशित हुई थी। इसका विमोचन तत्कालीन केंद्रीय मंत्री सुमित्रा महाजन ने किया था। दूसरी किताब ‘हमारी संस्कृति हमारी विरासत’ का विमोचन राष्ट्रपति भवन में तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने किया।
गरिमा के पिता कल्याण अग्रवाल बताते हैं कि हमने अपनी बिटिया पर पूरा विश्वास किया और उसे पढ़ने का पूरा अवसर और आजादी दी। कल्याण जी का मानना है कि बेटी पर हम विश्वास नहीं करेंगे तो कौन करेगा।
घर में माहौल शुरू से ही व्यवसाय का रहा। लेकिन, घर में गरिमा की बड़ी बहन ने भी पढ़ाई की तरफ ध्यान दिया और उनका भी 2013 में UPSC में भारतीय डाक सेवा के लिए चयन हुआ। गरिमा अपनी बहन को भी प्रेरणा का स्रोत मानती है। गरिमा वर्तमान में तेलंगाना में करीमनगर जिला कलेक्टर कार्यालय में सहायक कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट के रूप में पदस्थ हैं।
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गरिमा को इस पद पर पदस्थ हुए अभी कुछ माह हुए है। वे मानती है कि जितना बड़ा संघर्ष IAS Crack करने में किया है, उससे भी बड़ा संघर्ष इस नौकरी को सम्मान के साथ बनाए रखने के लिए करना पड़ता है। यह एक आसान काम नहीं है। जिस तरह मेरे पेरेंट्स में IAS बनने की यात्रा में सपोर्ट किया, दूसरी यात्रा यानी मेरे जॉब को निभाने में उतना ही सपोर्ट अब मेरे पति कर रहे हैं। हम यहां बताना चाहेंगे कि गरिमा के पति पल्लव google में कार्यरत हैं।
देश में गरिमा एक उदाहरण के रूप में सामने हैं जिन्होंने एक छोटे से नगर में हिंदी मीडियम स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण कर और परिवार के व्यावसायिक बैकग्राउंड के बावजूद, अपने जोश, जुनून और जज्बे से दादाजी के सपने को साकार किया।