किस्सा-ए-IAS Pradeep Singh
मेरी मेहनत और माता पिता का त्याग आखिर रंग लाए और मैं IAS क्रैक करने में कामयाब रहा। मुझे IAS बनाने में मददगार एक फैक्टर और भी है – प्रेरणा का वह स्रोत, वह उपलब्धि, वह परिवर्तन था जिसे मैंने प्रत्यक्ष रूप से देखा था।
बात 2017 की है जब स्वच्छ भारत अभियान में समूचे भारत में इंदौर ने पहला नंबर हासिल किया था। यह अधिकारियों के काम के बिना संभव नहीं था। मैंने देखा कि कैसे प्रशासन के एक हिस्से के रूप में व्यक्ति परिवर्तन ला सकते हैं और लोगों के अधिक अच्छे काम और विकास में योगदान दे सकते हैं। मैं भी ऐसा ही कुछ करना चाहता था और यहीं से मुझे यह प्रेरणा मिली कि मुझे हर हाल में IAS की मंज़िल हासिल करनी है।
यह कहानी है, इंदौर के एक पेट्रोल पंप पर सर्विसमैन का काम करने वाले मनोज सिंह के बेटे Pradeep Singh की।
IAS Pradeep Singh को UPSC 2018 की परीक्षा में All India 93 वी रैंक मिली। मात्र एक नंबर पीछे रहने से IAS के लिए चयन नहीं हो सका। एक नंबर से IAS चूकने के बाद भारी मानसिक दबाव और तनाव में था लेकिन हार नहीं मानी।
एक साल की तैयारी के बाद फिर Exam दी और इस बार All India 26वी रैंक हासिल कर IAS के लिए चयन हुआ।
यह सब इतना आसान नहीं था। इसके पीछे था जीवन का संघर्ष और माता पिता का बलिदान।
प्रदीप ने 2018 में भी UPSC परीक्षा पास की थी, जो उनका पहला प्रयास था। लेकिन, 93वीं रैंक आने से वे मात्र एक नंबर से पिछड़ जाने से IAS बनने से रह गए और उन्हें IRS मिला था। उन्हें आयकर विभाग में बतौर असिस्टेंट कमिश्नर पद मिला। लेकिन, छुट्टी लेकर प्रदीप ने फिर UPSC की तैयारी की और लक्ष्य हासिल किया। साढ़े 21 साल की उम्र में UPSC की परीक्षा पास करने वाले प्रदीप देश में सबसे कम उम्र के सफल प्रतिभागियों की सूची में शामिल हैं।
IAS Pradeep Singh की इस उपलब्धि में उनके माता पिता का बड़ा योगदान रहा। उन्होंने इंदौर के देवास नाके के एक पेट्रोल पम्प नौकरी की और अपने बेटे को दो बार UPSC फतह करने के योग्य बनाया। प्रदीप जब 7वीं में पढ़ रहे थे, तब उनके दादा हमेशा बोला करते थे कि बेटा कुछ ऐसा करना जिससे परिवार का नाम रोशन हो। प्रदीप ने सोचा कि बिहार में IAS काफी सेलेक्ट होते हैं। वहीं से उसके दिमाग में IAS का सपना घर कर गया था।
प्रदीप को पढ़ाने के लिए उनके माता पिता ने गरीबी में भी कोई कमी नहीं छोड़ी। पिता मनोज सिंह पेट्रोल पंप पर नौकरी करते, अधिक आमदनी के लिए कई बार ओवर टाइम भी करते। दूसरी मुसीबतें भी आईं, पर प्रदीप तक उसकी भनक तक नहीं पहुंचने दी।
IAS Pradeep Singh ने इंदौर देवी अहिल्या विश्विद्यालय से International Institute of Professional Studies में 2017 में BCom Honours की पढ़ाई पूरी की।
बिहार के गोपालगंज में पिता के पास कुछ जमीन थी लेकिन उससे पर्याप्त कमाई नहीं हो पाती थी। इसलिए ये फैसला किया गया कि घर की कुछ महिलाएं खेतों की देखरेख के लिए गांव में ही रुक गईं और पुरुष बेहतर काम की तलाश में इंदौर चले गए। उनके साथ Pradeep भी पढ़ाई के लिए इंदौर आ गए। उनके परिवार में पिता के अलावा भाई संदीप और माँ अनीता सिंह हैं। Pradeep का बचपन से सपना था कि कुछ करना है।
जब उन्होंने इन्दौर में DAVV में बीकॉम ऑनर्स में एडमिशन लिया, तभी कोशिश थी कि माता-पिता के संघर्ष को कम कर सकूं। पिता मनोज ने कभी कल्पना नहीं की थी कि उनका बेटा किसी दिन इतना बड़ा अफसर बनेगा। उनके एक प्रोफेसर का कहना था कि प्रदीप पढ़ाई में होशियार था। पढाई में पूरा समय देता ही था, जो समय बचता था, उसमें UPSC की पत्रिकाएं पढ़ता था और उसका ज्यादा समय लाइब्रेरी में पढ़ने में ही बीतता।
प्रदीप दिल्ली में UPSC की तैयारी करना चाहता था, पर इतने पैसे नहीं थे। लेकिन, पिता ने हार नहीं मानी और बेटे की कोचिंग के लिए अपना घर बेच दिया। कुछ समय बाद उन्होंने गांव की जमीन भी बेच दी। लेकिन, प्रदीप से ये बात छुपाकर रखी। पढ़ाई के लिए घर बेचने के बाद परिवार किराए के मकान में रहने लगा था। मां अनीता ने अपने थोड़े-बहुत गहने तक गिरवी रख दिए थे। वे बेटे को सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान देने को कहते रहे। प्रदीप ने जब पहली बार UPSC दी, तब उनकी मां की तबीयत बहुत खराब हो गई थी! लेकिन, ये बात भी प्रदीप को नहीं बताई गई।
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इंदौर के लसूडिया क्षेत्र में इंडस सेटेलाइट में रहने वाले मनोज सिंह अपने बेटे से अक्सर उन अफसरों की कहानियों की बात करते थे जिन्होंने IAS बनने के लिए निरंतर मेहनत और तैयारी की। इसी से प्रेरित होकर प्रदीप ने ठान लिया था कि IAS क्रैक करके ही रहेंगे। एक बार ठान लेने के बाद दोस्त की बरात तक में नहीं गए, इंदौर की सुप्रसिद्ध 56 दुकान और सराफा को मिस किया।देश और दुनिया की सबसे कठिन परीक्षा को पास करने के लिए वे हर दिन 14 घंटे पढ़ाई करते थे।
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प्रदीप सिंह मानते हैं कि IAS बनने के लिए उन्होंने जो संघर्ष किया वह उनके माता-पिता के बलिदान के सामने कुछ भी नहीं है। IAS Pradeep Singh की कहानी के बारे में हम कह सकते हैं कि एक सपने का पीछा करने से बड़ा कोई रोमांच नहीं है। अंतहीन चुनौतियों के बावजूद जब सपना हकीकत में बदलता है तब भविष्य की खुशियों के सपनों का सिलसिला शुरू होता है। प्रदीप वर्तमान में पटना में सहायक कलेक्टर है।
सुरेश तिवारी
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