
मंत्री का बेटा मंत्री नही बनेगा तो करेगा क्या ? यही लोकतंत्र है!
मुकेश नेमा
एक मंत्री का बेटा अचानक मंत्री बना। अचानक इस मायने में क्योंकि बनने के कुछ देर पहले तक वो खुद इस खुश खबरी से बेखबर था।खैर बनना तो उसे ही था ,आज नही तो कल बनता,पर अचानक बना और केवल इसलिए बना क्योंकि वो उसके पापा भी मंत्री थे।
इस साधारण घटना को लेकर एक असाधारण सवाल पूछा गया नवोदित मंत्री से। आप मंत्री कैसे बने ? यह सवाल पूछे जाने जैसा नही था। ऐसा सवाल था जिसका जवाब दुनिया को पहले से मालूम था ,पत्रकार वैसे भी सवाल नही पूछते आजकल। ये प्रसंग इस मामले में अभूतपूर्व माना जाना चाहिए कि पत्रकार ने सवाल पूछा और मंत्री ने जवाब दिया। ये अनहोनी है और शायद इसलिए घटी है क्योंकि दोनो ही नए थे। अब पत्रकार भी कच्चा और मंत्री भी कच्चा। मंत्री कच्चा होने के बावजूद सच्चा था। सो सच बोला वो। उसने कहा ,पापा से पूछिए। इस जबाब पर तालियाँ बजी। पत्रकार का मुँह उतरा और बात आई गई हो गई।
पर मुझे नही लगता कि इस गैर वाजिब सवाल के लिए उस पत्रकार को सस्ते में छोड़ दिया जाना चाहिए। यह सवाल बेहद बचकाना था। इस सवाल से और भी कई सवाल पैदा होते है । मंत्री का बेटा मंत्री क्यों नही बनेगा ? क्या वो इसलिए मंत्री नही बन सकता कि वो मंत्री का बेटा है ? और वो मंत्री नही बनेगा तो कौन बनेगा ? मंत्री का बेटा मंत्री नही बनेगा तो करेगा क्या ? मंत्री का बेटा मंत्री और संत्री का बेटा संत्री। चोर का बेटा चोर और साहूकार का बेटा साहूकार। यही लोकाचार है और यही लोकतंत्र है। मंत्री के बेटे का मंत्री हो जाना उतना ही सहज है जैसे सरकारी आदमी के बीच नौकरी मे मर जाने पर उसका लड़का बाबू हो जाता है। और फिर मंत्री के बेटे का मंत्री बनने वाली ये घटना पहली हो ऐसा भी नही। मंत्री के यहाँ पैदा होने वाले लड़के की जन्मकुंडली नही देखी जाती। बच्चे बच्चे को पता होता है कि ये लड़का बड़ा होकर मंत्री बनेगा। पापा भी कहते है बेटा नाम करेगा। बड़ा होकर मंत्री वाले काम करेगा। ऐसे मे सवाल पूछने वाले पत्रकार को यदि ये मामूली बात पता नही थी तो उसका पत्रकार होना ही संदिग्ध है।
मुमकिन है निहायत ग़लत वक्त पर सवाल पूछने वाला वो पत्रकार इस बात पर चकित हो कि मंत्री पुत्र आकस्मिक रूप से मंत्री बना। बिना चुनाव लड़े ,बिना विधायक हुए मंत्री बना। थोड़ा जल्दी बन गया। इतने जल्दी बना कि नया कुरता भी नही सिलवा पाया। पर ये घटना भी पहली बार नही घटी। ये तो होनी थी। मंत्री के लड़के को मंत्री बनना ही था। उसकी मंजिल हमेशा से निश्चित थी। ऐसे मे वो कैसे पहुँचा किस रास्ते से पहुँचा ये बात पूछने जैसी थी नही।
और फिर इस बालक का सधा हुआ जवाब कमाल था। पापा से पूछिए। पापा के कारण पैदा हुआ है वो। आगे भी उसके सारे किए धरे के जिम्मेवार उसके पापा होंगे। पापा न होते तो वो भी न होता। उससे सवाल जबाब भी न होते। वो जो कुछ भी है पापा की वजह से है। आगे जो भी करेगा पापा की वजह से करेगा। ऐसे मे पापा से पूछिए ये इतना सुंदर जवाब है जिसे किसी भी सवाल के जवाब के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। और हम सभी को भी इसे गांठ में बांध लेना चाहिए।
और फिर इस ताजे ताजे बने मंत्री ने जो जवाब दिया। पापा से पूछिए। उससे अभिभूत हूँ मैं। ये भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत एक शालीन उत्तर है। ऐसे संस्कारी आज्ञाकारी बालक मिलते कहाँ है आजकल ? पापा से पूछकर काम करने वाला यह नेक लड़का सवाल पूछे जाने के बजाय अभिनंदन करने योग्य है। मैं आशा करता हूँ भविष्य मे इस सच्चे मंत्री का भी बेटा होगा। बड़ा होगा। मंत्री बनेगा और उससे ऐसा बेहूदा सवाल नहीं पूछा जाएगा।





