BSP मैदान में न होती तो MP की 3 लोकसभा सीटों पर पलट सकता था पांसा

BSP मैदान में न होती तो MP की 3 लोकसभा सीटों पर पलट सकता था पांसा

दिनेश निगम ‘त्यागी’ की विशेष रिपोर्ट 

प्रदेश में तीसरी ताकत बनने की ओर अग्रसर BSP का असर हालांकि लगातार कम हो रहा है, बावजूद इसके उसकी उपस्थिति ने तीन लोकसभा क्षेत्रों में कांग्रेस का नुकसान कर दिया है। यहां BSP मैदान में न होती तो पांसा पलट सकता था। ये सीटें हैं मुरैना, सतना और रीवा। भिंड और ग्वालियर में भी भाजपा की जीत का अंतर ज्यादा नहीं रहा। यहां यदि बगावत पर काबू पा लिया जाता तो कांग्रेस को फायदा हो सकता था। ऐसा नहीं हो सका और भाजपा सभी 29 सीटों में जीत दर्ज कर इतिहास रचने में कामयाब हो गई। एक समय ऐसा भी था जब BSP कई सीटों में दूसरे नंबर पर रहती थी और विधानसभा के साथ लोकसभा सीट भी जीत जाती थी। 1996 में सतना में बसपा के सुखलाल कुशवाहा ने दो पूर्व मुख्यमंत्रियों स्व अर्जुन सिंह एवं वीरेंद्र कुमार सखलेचा को एक साथ हरा कर अच्छी ख्याति अर्जित की थी। अब यह पार्टी एक अदद जीत के लिए तरस रही है। एक समय बसपा के एक दर्जन तक विधायक हुआ करते थे लेकिन अब विधानसभा में भी लोकसभा जैसा हाल है।

 

0 मुरैना में रमेश गर्ग ने बिगाड़ा कांग्रेस का खेल

– कांग्रेस को सबसे ज्यादा उम्मीद मुरैना लोकसभा सीट में थी। यहां कांग्रेस के सत्यपाल सिंह सिकरवार भाजपा के शिवमंगल सिंह तोमर पर भारी पड़ रहे थे। कांग्रेस को पहला झटका कांग्रेस के रमेश गर्ग ने दिया। वे पार्टी से बगावत कर बसपा के टिकट पर मैदान में उतर गए। नतीजा आया तब पता चला कि कांग्रेस के सत्यपाल 52 हजार 530 वोटों के अंतर से हार गए जबकि रमेश गर्ग 1 लाख 79 हजार से ज्यादा वोट ले जाने में सफल रहे। साफ है कि यदि वे बगावत न करते तो बाजी कांग्रेस के हाथ होती। दूसरा मुरैना में विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने ऐसा चुनावी प्रबंधन किया कि कांग्रेस को अवसर नहीं बचा। उनके प्रयास से कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक राम निवास रावत और मुरैना की महापौर शारदा सोलंकी भाजपा में शामिल हो गई थीं।

 

0 सतना में नारायण त्रिपाठी पड़ गए भारी

– सतना दूसरी ऐसी लोकसभा सीट थी, जहां कांग्रेस को जीत की उम्मीद थी। यहां सांसद गणेश सिंह के खिलाफ माहौल था। कांग्रेस ने गणेश को विधानसभा में हराने वाले विधायक सिद्धर्थ कुशवाहा को मैदान में उतारा था। भाजपा के गणेश की सबसे ज्यादा नाराजगी ब्राह्मण समाज में थी। लेकिन पूर्व विधायक नारायण त्रिपाठी बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ बैठे। उन्हें 1 लाख 85 हजार से ज्यादा वोट मिले और कांग्रेस के सिद्धार्थ 84 हजार 949 वोटों के अंतर से चुनाव हार गए। साफ है कि नारायण मैदान में न होते तो बाजी कांग्रेस के हाथ होती।

 

0 भिंड में हुआ बगावत से नुकसान

– कांग्रेस में भिंड में भी बगावत हुई। 2019 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े देवाशीष जरारिया ने टिकट न मिलने पर बगावत कर दी और बसपा के टिकट पर मैदान में उतर गए। यहां कांग्रेस के फूल सिंह बरैया भाजपा की संध्या राय को अच्छी टक्कर दे रहे थे। जरारिया के चुनाव लड़ने के एलान के साथ कांग्रेस का माहौल बिगड़ने लगा। देवाशीष को मात्र 20 हजार 465 वोट मिले और फूल सिंह बरैया 64 हजार 840 वोटों के अंतर से हार गए। यहां भाजपा की संध्या के खिलाफ नाराजगी देखने को मिल रही थी लेकिन वे जीतने में सफल रहीं।

0 ग्वालियर में कल्याण की बगावत

– ग्वालियर लोकसभा क्षेत्र में भी कांग्रेस को बगावत का सामना करना पड़ा। यहां कांग्रेस के युवा नेता कल्याण सिंह कंसाना बागी होकर बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ गए। कंसाना को मात्र 33 हजार 465 वोट मिले लेकिन उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी प्रवीण पाठक का माहौल बिगाड़ने का काम किया। पाठक ने भाजपा के भारत सिंह कुशवाहा को कड़ी टक्कर दी लेकिन 70 हजार 210 वोटों के अंतर से चुनाव हार गए। यहां भी भाजपा और कांग्रेस के बीच अच्छा मुकाबला देखने को मिला।

 

0 चार सीटों में ही बसपा को 50 हजार से ज्यादा वोट

– बसपा के सिकुड़ते आधार का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रदेश की सिर्फ 4 लोकसभा सीटों में उसे 50 हजार से ज्यादा वोट मिले, अन्य किसी क्षेत्र में नहीं। मुरैना और सतना के अलावा रीवा और खजुराहो में बसपा को अच्छे वोट मिले। खजुराहो में बसपा के कमलेश कुमार को सबसे ज्यादा 2 लाख 31 हजार से ज्यादा वोट मिले। वजह यह थी कि यहां कांग्रेस का कोई प्रत्याशी ही नहीं था। भाजपा के वीडी शर्मा इस सीट में 5 लाख 41 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से जीते। दूसरी सीट रीवा में बसपा के अभिषेक बुद्धसेन पटेल 1 लाख 17 हजार वोट ले जाने में कामयाब रहे। यहां भाजपा के जनार्दन मिश्रा कांग्रेस की नीलम मिश्रा से 1 लाख 93 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से चुनाव जीते। पहले बसपा को चंबल-ग्वालियर, बुंदेलखंड और विंध्य अंचल की लगभग हर लोकसभा सीट में 1 से 2 लाख वोट मिलते थे। इन अंचलों में बसपा विधानसभा का चुनाव भी जीतती थी लेकिन अब बसपा का आधार लगातार खिसक रहा है। जीतना तो दूर, पार्टी को अच्छे वोट भी नहीं मिल रहे हैं। बसपा का वोट भाजपा और कांग्रेस की ओर शिफ्ट हो रहा है।

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