नासमझ लाया ग़म तो ये ग़म ही सही…

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नासमझ लाया ग़म तो ये ग़म ही सही…

कौशल किशोर चतुर्वेदी

भारत-पाक, भारत-पाक को रटते-रटते दिन पर दिन बीतते जा रहे हैं। सप्ताह बीत गया, पर मोदी की पाकिस्तान को सबक सिखाने वाली बात का अभी भी 140 करोड़ भारतीयों को इंतजार है। सिंधु जल संधि रद्द किए जाने की खबरों का विश्लेषण जारी है। पाकिस्तान बाढ से मरेगा या सूखे से या फिर सिंधु का पानी पाक लाल करके रहेगा। यह सब सुन-सुनकर लोग भ्रमित हो रहे हैं। तो बहुत हो गया यह पाक-भारत, भारत-पाक, आओ आज हम एक ऐसे अभिनेता को याद करते है जो कम समय में अपने प्रशंसकों में जीभर खुशियां बांटता गया, पर खुद को कैंसर के इलाज से जूझते हुए गम का चादर ओढकर इस दुनिया से विदा ले ली। आईए 140 करोड़ भारतीयों के प्यारे इरफान को याद करते हैं। मैंने दिल से कहा गीत ‘रोग’ फिल्म से है। कृष्णकुमार कुन्नथ (केके) द्वारा गाया गया। संगीत एम.एम. कीरवानी द्वारा रचित है। नीलेश मिश्रा का यह गीत इरफ़ान खान पर फ़िल्माया गया है। इस गीत का हर शब्द इरफान को दिल के और ज्यादा करीब लाता है। पहले वह गीत पढ़ते हैं।

मैंने दिल से कहा ढून्ढ लाना खुशी

नासमझ लाया ग़म तो ये ग़म ही सही

मैंने दिल से कहा ढून्ढ लाना खुशी

नासमझ लाया ग़म तो ये ग़म ही सही

मैंने दिल से कहा.. ढून्ढ लाना खुशी

बेचारा कहाँ जानता है

खलिश है ये क्या खला है

शहर भर की ख़ुशी से

ये दर्द मेरा भला है

जश्न ये रास न आये

मज़ा तोह बस, ग़म में आया है

मैंने दिल से कहा, ढून्ढ लाना खुशी

नासमझ लाया ग़म, तो ये ग़म ही सही

कभी है इश्क़ का उजाला

कभी है मौत का अँधेरा

बताओ कौन भेस होगा

मैं जोगी बनू या लुटेरा

कई चेहरे हैं इस दिल के

न जाने कौन सा मेरा

मैंने दिल से कहा

ढून्ढ लाना खुशी

नासमझ लाया ग़म

तो ये ग़म ही सही

हज़ारों ऐसे फासले थे

जो तय करने चले थे

राहें मगर चल पड़ी थी

और पीछे हम रह गए थे

कदम दो चार चल पाये

किये फेरे तेरे मनके

मैंने दिल से कहा

ढून्ढ लाना खुशी

नासमझ लाया ग़म

तो ये ग़म ही सही

मैंने दिल से कहा

ढून्ढ लाना खुशी

नासमझ लाया ग़म

तो यये ग़म ही सही

साल 2005 में इरफ़ान ख़ान को बतौर लीड रोल अपनी पहली फ़िल्म मिली। इस फ़िल्म का नाम ‘रोग’ था, जिसमें उन्होंने एक पुलिस ऑफिसर की भूमिका निभाई थी। और फिल्म का यह गीत इरफान को सीधे प्रशंसकों के दिल में उतार देता है।वह भारतीय हिन्दी सिनेमा और टेलीविजन के प्रसिद्ध अभिनेता थे। हिन्दी के साथ ही उन्होंने कई अंग्रेज़ी फ़िल्मों में भी अभिनय किया। उनके चाहने वालों की संख्या लाखों में है। इरफ़ान ख़ान के बारे में कहा जाता है कि “वह अपनी आँखों से ही सारा अभिनय कर देते थे।” उन्होंने ‘द वॉरियर’, ‘मकबूल’, ‘हासिल’, ‘द नेमसेक’, ‘रोग’ जैसी फ़िल्मों से अपने अभिनय का लोहा मनवाया। ‘हासिल’ फ़िल्म के लिये उन्हें वर्ष 2004 का फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ खलनायक पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। वे हिन्दी सिनेमा की तीस से ज्यादा फ़िल्मों में अभिनय कर चुके थे। इरफ़ान ख़ान का नाम हॉलीवुड में भी अपनी पहचान रखता है। उन्होंने ‘ए माइटी हार्ट’, ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’, ‘लाइफ ऑफ़ पाई’ और ‘द अमेजिंग स्पाइडर मैन’ आदि फ़िल्मों में अभिनय किया।

वर्ष 2011 में उन्हें भारत सरकार द्वारा ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया। 60वें राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार-2012 में इरफ़ान ख़ान को फ़िल्म ‘पान सिंह तोमर’ में अभिनय के लिए श्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार दिया गया। 2017 में प्रदर्शित ‘हिंदी मीडियम’ फ़िल्म के लिए उन्हें फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता चुना गया। 2020 में प्रदर्शित ‘अंग्रेज़ी मीडियम’ उनकी प्रदर्शित अंतिम फ़िल्म रही। इरफ़ान ख़ान का जन्म टोंक, राजस्थान में 7 जनवरी, 1967 को हुआ। यहीं के एक स्कूल से उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा हासिल की। बाद में स्नातक की डिग्री हासिल की। जब इरफ़ान ख़ान अपनी पोस्ट ग्रेजुएश एम.ए. में कर रहे थे, तब उस समय उन्होंने ‘नेशनल स्‍कूल ऑफ ड्रामा’ में दाखिला ले लिया। कहा जाता है कि उन्होंने इस ड्रामा स्कूल में पढ़ाई करने के लिए छात्रवृत्ति हेतु आवेदन किया था और उनका आवेदन स्वीकार कर लिया गया, जिसके बाद इरफ़ान ख़ान ने दिल्ली स्थित अभिनय के इस कॉलेज में प्रवेश ले लिया।

 

बहुमुखी प्रतिभा के धनी इरफ़ान ख़ान लीक से हटकर चलने वाले लोगों में से एक थे। शायद यही कारण रहा कि वे पठान परिवार से ताल्लुक रखने के बावजूद शुद्ध शाकाहारी थे। इरफ़ान ख़ान ने पठान मुस्लिम परिवार में जन्म होने के बाद भी कभी मीट या मांस नहीं खाया। वह बचपन से ही शाकाहारी थे। यही कारण था कि उनके पिता इरफ़ान को मजाक में कहा करते थे कि- “ये तो पठान परिवार में एक ब्राह्मण पैदा हो गया है।”

इरफ़ान ख़ान ऐसे इंसान थे, जो भीड़ में तो थे ही अकेलापन भी उन्हें बहुत रास आता था। जब सब साथ में चिल्ल कर रहे होते तो वह अकेले कहीं जाकर बैठ जाते। कैंसर के इलाज के दौरान भी इरफ़ान हमेशा मुस्कुरात रहते थे। इतना ही नहीं वह बहादुर इंसान भी थे। इरफ़ान वह सब करते थे, जिसमें उनका दिल लगता था। प्रकृति प्रेमी भी थे। इरफ़ान की जिंदगी एक खूबसूरत यात्रा रही है। जब जहां दिल किया, चल दिए जिंदगी की तलाश में। अपने जीवन के अंतिम दिनों में वह थोड़े दार्शनिक अंदाज़ के भी हो गए थे। हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि यह अंदाज़ शुरू से उनके साथ रहा। वह खुद के भीतर खुद को भी तलाशते थे। इरफ़ान अपने इंस्टा पर बचपन की जो भी यादें शेयर करते, उनमें ज्यादातर तस्वीरें इसी तरह किसी फ़िल्म को देखकर दोस्तों के साथ उसे आजमाते हुए दिखते। अभिनेता इरफ़ान ख़ान का निधन 29 अप्रॅल, 2020 को मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में हुआ। वह काफ़ी लम्बे समय से बीमार चल रहे थे। साल 2018 में ही उन्होंने दुनिया को अपने कैंसर के बारे में जानकारी दी थी। इरफ़ान ख़ान पेट की समस्या से जूझ रहे थे। उन्हें कॉलन संक्रमण हुआ था। फ़िल्म निर्देशक शूजीत सरकार ने इरफ़ान ख़ान के निधन की जानकारी सबसे पहले दी। बस अब इतना ही है कि इरफान हम सबके दिलों में बसे हैं…।