IMC V/S MPCA : सारा विवाद अफसरों को फ्री पास नहीं मिलने पर खड़ा हुआ!

नगर निगम के इस कृत्य से देशभर में IMC की छवि धूमिल हुई!

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IMC V/S MPCA : सारा विवाद अफसरों को फ्री पास नहीं मिलने पर खड़ा हुआ!

Indore : इंडियन क्रिकेट टीम और साउथ अफ्रीका की क्रिकेट टीम का इंदौर में आगमन हो चुका था। देश का 6 बार सबसे स्वच्छ शहर, जिसने अभी कुछ दिन पहले ही देश में स्वच्छता के रिकॉर्ड का छक्का मारा था और अब एक अंतर्राष्ट्रीय मैच को होस्ट करने जा रहा था। ठीक उसी समय इंदौर नगर निगम के कुछ अधिकारी कुछ दूसरे खेल की पटकथा तैयार कर रहे थे।

निगम के अधिकारियों और कर्मचारियों की टीम एक अधिकारी लता अग्रवाल के नेतृत्व में मध्य प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के हेडक्वार्टर्स पर धमकती है। बाद में MPCA (Madhya Pradesh Cricket Association) के प्रेजिडेंट अभिलाष खांडेकर ने मीडिया को बताया कि वे टीम के साथ एकाउंट्स सेक्शन में सीधे जाती है और बाद में उनके ऑफिस में जाकर टैक्स चुकाने के लिए कहती है। खांडेकर का कथन है कि लता अग्रवाल और टीम बार-बार ये कहती रही कि उन्हें नगर निगम के आयुक्त प्रतिभा पाल ने भेजा है। टैक्स नहीं चुकाने पर वे परिणाम भुगतने कि धमकी देती है।

प्रेजिडेंट का यह कथन और भी गंभीर है कि यह सब इसलिए किया गया क्योंकि नगर निगम में कुछ IAS ऑफिसर्स को टी-20 का पास नहीं मिला था। जबकि, MPCA ने पहले ही निगम कमिश्नर को 25 पास पूर्व परम्परा के अनुसार मुहैया करवा दिया था।

प्रेजिडेंट खांडेकर ने इस जबरिया कार्रवाई के विषय में इंदौर के मेयर पुष्यमित्र भार्गव जो कि कानून के अच्छे ज्ञाता हैं और संभागीय आयुक्त पवन कुमार शर्मा को बताया पर इसका कोई परिणाम नहीं निकला। शासन और प्रशासन के तौर तरीकों को जानने वाला ही नहीं, शायद कोई बच्चा भी बता देगा कि जिस तरह से IMC ने MPCA के हेडक्वार्टर्स पर छापा मारा गया तो उस टाइमिंग का मतलब क्या है। ऐसा एक्शन सिर्फ पूर्वाग्रह से ग्रसित ही हो सकता है।

ऐसी छापेमारी हम पहले भी होटल्स, रेस्टोरेंट्स और अन्य कमर्शियल जगहों पर भी देख चुके हैं और ऐसे छापे क्यों होते हैं ये भी सबको पता है।

 

कुछ सवाल जो खड़े हुए

● क्या MPCA का हेडक्वार्टर्स रातोरात किसी दूसरे स्टेट में या किसी यूरोपियन कंट्री में शिफ्ट होने जा रहा था कि IMC की टीम को भारत और साउथ अफ्रीका के मैच के ठीक पहले MPCA हेडक्वार्टर्स में टैक्स वसूली के लिए जाना पड़ा ?

● क्या IMC और उसके अधिकारी उक्त टैक्स वसूली के लिए मैच ख़त्म होने का इंतज़ार नहीं कर सकते थे जो की सिर्फ 24 घंटे बाद ही हो जाता।

● अगर टैक्स वसूली में 24 घंटे की देरी हो जाती तो क्या IMC में इस महीने की तनख्वाह नहीं बंट पाती?

● क्या IMC और उसके अधिकारी इस बात से अनभिज्ञ थे कि इस तरह के मैच न सिर्फ इंदौर बल्कि मध्य प्रदेश सरकार के लिए भी प्रतिष्ठा का प्रश्न होता है, जिसे कुशलता से संपन्न कराना ही उनका प्रमुख लक्ष्य होना चाहिए था, न कि टैक्स वसूली?

● क्या IMC और उसके अधिकारी इस बात से अनभिज्ञ थे कि भारत और साउथ अफ्रीका का मैच एक अंतर्राष्ट्रीय मैच था जिसपर सारे क्रिकेटिंग कंट्री की, वहां के मीडिया की और देश विदेश के करोड़ों खेल प्रेमियों की निगाह थी। इस तरह की छापेमारी न केवल MPCA, मध्य प्रदेश बल्कि पूरे देश के इमेज के प्रति पूरे विश्व में एक नेगेटिव संदेश देता है।

● क्या इंदौर में MPCA के अतिरिक्त और कोई डिफाल्टर नहीं बचा था कि IMC का सारा ध्यान MPCA पर ही केंद्रित हो गया और वो भी ठीक एक अंतराष्ट्रीय मैच के पहले जिसे देखने केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया जो कि स्वयं MPCA प्रेजिडेंट रह चुके हैं, कुछ मंत्री तथा अन्य विशिष्टजन आने वाले थे?

● क्या टैक्स वसूली के पहले MPCA को कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी गई थी या MPCA और इसके प्रेजिडेंट या अन्य पदाधिकारियों से बात की गई कि अगर टैक्स नहीं चुकाया गया तो मैच के ठीक पहले IMC की टीम MPCA ऑफिस में जाकर टैक्स की वसूली करेगी?

● क्या प्रदेश के अधिकारी अपने पैसे से टिकट खरीदकर मैच नहीं देख सकते और ऐसा करके वे एक अच्छा संदेश पूरा प्रदेश के लोगों को देते! क्या टिकट खरीदने से उनके अहम् को चोट पहुँचती है या फिर सातवें वेतनमान से भी उन्हें इतनी सैलरी नहीं मिलती कि वे एक टिकट खरीद पाएं?

 

फ्री पास पर इतना बवाल तो आगे क्या?

सवाल यह भी है कि जिन नए IAS ऑफिसर्स की बात हो रही है, अगर वाकई उनको Pass नहीं मिलने पर इतना हंगामा हुआ तो वे आगे क्या गुल खिलाएंगे। क्या ऐसे अधिकारी फील्ड में पोस्टिंग के लायक हैं? जबकि, इसी मध्य प्रदेश में जाने कितने आईएएस और आईपीएस सर्विंग और रिटायर्ड आफिसर्स हैं जो यंग ऑफिसर्स के लिए रोल मॉडल होने चाहिए।

 

IMC v/s MPCA एपिसोड में MPCA की कार्यप्रणाली और ट्रांसपेरेंसी पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं कि जब 27000 सीट्स है, तो सिर्फ 14000 टिकट्स ही ऑनलाइन क्यों बेचे गए और कुछ मिनट्स में ही टिकट्स कैसे ख़त्म हो गए! टिकट की कालाबाजारी क्यों हो रही थी आदि। ये विषय भी अपनी जगह प्रासंगिक हो सकते हैं। अगर वाकई गड़बड़ी है तो इसको ठीक करने की जिम्मेदारी क्रिकेट के प्रशासकों की है। वे इसको अनदेखा नहीं कर सकते।

 

पास उनको दिए जाएं जिन्हें जरूरत है!

‘पास’ कि व्यवस्था भी गलत है, कि हज़ारों लोगों को टिकट खरीदने को कहा जाए और जो आर्थिक रूप से सक्षम हैं उन्हें VIP कल्चर के नाम पर पास बांटे जाएँ। अभी कुछ दिन पहले ही केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने पत्रकारों को उनके कवरेज के दौरान टोल प्लाजा पर छूट के विषय पर कहा था कि फोकट क्लास को वे इस सुविधा देने के पक्ष में नहीं हैं। यहां पर फोकट क्लास कौन है यह भी विचारणीय प्रश्न है।

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अगर वाकई पास मिलना चाहिए तो स्कूल, कॉलेज और क्रिकेट क्लब्स के उन बच्चों को मिलना चाहिए तो क्रिकेट के मैदान पर अपने रोल मॉडल्स को देखकर क्रिकेट सीखना चाहते हैं या अपने परफॉरमेंस को बेहतर करना चाहते है। पास इंदौर के उन सफाई कर्मियों को मिलना चाहिए थे, जिन्होंने अपने मेहनत से इंदौर को लगातार छठवीं बार सबसे स्वच्छ शहर का खिताब दिलाया।

कुछ भी हो प्रथम दृष्टया IMC का एक्शन खासकर उसका तरीका और टाइमिंग जस्टीफ़ाइड नहीं दिख रहा है। यह इंदौर के स्वच्छता के ऊपर एक धब्बा है।