जनगणना में जातिगत राजनीति के बजाय शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार के लिए लाभ की महत्ता

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जनगणना में जातिगत राजनीति के बजाय शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार के लिए लाभ की महत्ता

आलोक मेहता

मोदी सरकार द्वारा जनगणना के निर्णय की घोषणा होते ही धुआंधार राजनीति शुरु हो गई | खासकर इस बार जनगणना के दौरान नागरिक की जाति का प्रश्न रहने से दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों की संख्या के आंकड़े देश दुनिया के सामने आ जाएंगे | सत्ता ही नहीं प्रतिपक्ष भी जातिगत जनगणना के निर्णय का श्रेय लेने की होड़ में लगे हैं | सबको लगता है कि इससे आगामी चुनावों में उन्हें पिछड़ों का एकमात्र संरक्षक माने जाने का लाभ मिलेगा | यह भी तथ्य है कि पिछले 75 वर्षों के दौरान कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेता जातीय राजनीति और जाति के आधार पर संविधान के प्रावधान से अधिक आरक्षण को अनुचित बताते रहे हैं और जनगणना के जातिगत आकलन को सामने नहीं रखा गया | कांग्रेस में महात्मा गाँधी के आदर्शों के नाम पर इंदिरा और राजीव गाँधी जाति धर्म आदि के आधार पर भेदभाव को लेकर आवाज उठाते रहे | भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के आदर्शों के अनुरुप जाति धर्म के बजाय सबको हिन्दू और भारतीय माने जाने की दुहाई देती रही |

इसलिए हमेशा यही कहा गया कि जातिगत जनगणना से देश का सामाजिक ढांचा प्रभावित होगा | लोगों के बीच वैमनस्यता का भाव बढ़ सकता है. जाति व्यवस्था और अधिक मजबूत होगी | भारत में हजारों जातियां हैं, इनमें से हरेक जाति को परिभाषित करना कठिन है | पिछली 2011 की जनगणना में तो बताया जाता है कि लोगों ने 25 लाख से अधिक जातियां उप जातियां लिखवा दी |

इसे विडम्बना ही कहा जाएगा कि देश के भविष्य 2047 के विकसित भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के लक्ष्य की पूर्ति के लिए जनगणना से समाज में शिक्षा , स्वास्थ्य और रोजगार की सही स्थिति और उसके आधार पर योजना कार्यक्रम बजट के आकलन के लाभ की चर्चा सत्तारुढ़ गठबंधन के नेता भी नहीं कर रहे हैं | जबकि शिक्षा स्वास्थ्य को सर्वोच्च प्राथमिकता दिए बिना सम्पूर्ण समाज को कोई लाभ नहीं मिल सकता है | शिक्षित और स्वास्थ्य रक्षा के बिना तो रोजगार ही नहीं खेतीबाड़ी और मजदूरी भी ठीक से नहीं हो सकती है | प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़े पैमाने पर विचार विमर्श के बाद नई शिक्षा नीति 2020 और आयुष्मान भारत जैसी क्रन्तिकारी नीति योजनाएं लागू कर दी | इसलिए ऐसी योजनाओं के क्रियान्वयन और दूरगामी लाभ के लिए बहुत काम करने और वित्तीय संसाधनों की व्यवस्था करनी है | इस तरह के महत्वपूर्ण कार्य के लिए राज्य सरकारों , विधान सभाओं , स्थानीय निगमों , पंचायतों की भूमिका और सहयोग की आवश्यकता होगी | दलगत स्वार्थों के लिए राष्ट्रीय नीतियों कार्यक्रमों का विरोध विकास में बाधक रहेगा |अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के आंकड़ों के मुताबिक 2011 में जब भारत में पिछली जनगणना हुई थी तब हमारी अर्थव्यवस्था का आकार 1.8 लाख करोड़ डॉलर था। यह संभव है कि जिस समय तक अगली जनगणना पूरी होगी या उसके परिणाम आने शुरू होंगे तब तक भारत पांच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बन चुका होगा।

आज़ादी के बाद यह पहला मौका होगा जब जनगणना के दौरान जाति के आंकड़े संग्रहीत किए जाएंगे। हालांकि अनुसूचित जाति और जनजाति के आंकड़े दर्ज किए जाते हैं लेकिन व्यापक स्तर पर जातिगत आंकड़े इससे पहले 1931 की जनगणना में एकत्रित किए गए थे। वास्तव में 2024 के लोक सभा चुनावों में जाति जनगणना कांग्रेस सहित विपक्षी दलों के सबसे प्रमुख चुनावी वादों में से एक था।

अब जनगणना से संविधान के मुताबिक संसदीय सीटों के नए परिसीमन का आधार बनेगा । ऐसे में इसके परिणाम देश में सामाजिक विभाजन को बढ़ाने वाले साबित हो सकते हैं और उनका बहुत सर्तकता के साथ प्रबंधन करना होगा। दक्षिण भारत के राज्यों ने भी यह चिंता जताई है कि उत्तर भारत के राज्यों की आबादी की संख्या अधिक होने पर लोक सभा में उनकी हिस्सेदारी कम की जा सकती है। यह संभव है कि कुछ राजनीतिक दल विधायिका में भी जाति आधारित आरक्षण की मांग करें। जाति जनगणना के अन्य संभावित परिणामों में अधिक आरक्षण की मांग भी शामिल है। वास्तव में इसकी शुरुआत हो भी चुकी है। लोक सभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने मांग कर दी है कि आरक्षण पर सीमा समाप्त की जानी चाहिए और निजी शैक्षणिक संस्थानों में भी कोटा लागू किया जाना चाहिए।

कई समूहों के लिए जाति जनगणना और आरक्षण में हिस्सेदारी आगे बढ़ने की एक उम्मीद है। प्रश्न यह है कि क्या इससे देश बेहतर बन सकेगा? और क्या यह सबसे वांछित हल है। असल मुद्दा है आम जनता के लिए शिक्षा की कम गुणवत्ता और आर्थिक अवसरों की कमी। जब तक इन मुद्दों को हल नहीं किया जाएगा, जाति जनगणना और आरक्षण का संभावित पुनर्संयोजन देश को बहुत आगे नहीं ले जाया सकता है |सुप्रीम कोर्ट ने 1992 में इंद्र साहनी बनाम भारत सरकार मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया. कोर्ट ने कुल आरक्षण की सीमा 50 फीसदी तय कर दी. | इसके बाद 2006 में यूपीए सरकार के समय में तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह ने सरकारी शिक्षण संस्थानों में मंडल आयोग की सिफारिश को लागू किया | इनमें आईआईटी और मेडिकल कॉलेज भी शामिल थे. | इस तरह से मंडल कमीशन की रिपोर्ट को पूरी तरह से लागू कर दिया गया |2011 में जाति जनगणना को लेकर एक प्रयास किया गया था. तब यूपीए की सरकार केंद्र में थी. सरकार ने आर्थिक, सामाजिक और जातिगत जनगणना करवाई | जाति संबंधित आंकड़े जुटाए, लेकिन इसे सार्वजनिक नहीं किया गया | ऐसा कहा जाता है कि इनमें कई खामियां थीं | तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने तो यह कहते हुए विरोध किया था कि जो लोग सेंसस में काम करते हैं | उनके पास जातीय जनगणना संबंधित आंकड़े इकट्ठे करने का कोई अऩुभव नहीं है|

सवाल यह है कि इस बार भी जनगणना के दौरान या बाद में राहुल गांधी और उनकी कांग्रेस पार्टी या लालू यादव जैसे नेताओं के क्षेत्रीय दल जनगणना की मशीनरी , तथ्यों और आंकड़ों को ही चुनौती देकर अस्वीकार नहीं करेंगे | राहुल गाँधी तो चुनाव आयोग और वोटिंग मशीन तक का विरोध कर रहे हैं | इस बार तो जनगणना भी इलेक्ट्रानिक यानि मोबाइल फोन और विशेष एप के जरिए होगी | जनगणना के उद्देश्य के लिए सभी प्रगणकों और पर्यवेक्षकों द्वारा इसकी अधिकतम स्वीकार्यता सुनिश्चित करने के लिए मोबाइल ऐप को बहुत ही सरल, सुविधाजनक और उपयोगकर्ता के अनुकूल बनाया गया है। मोबाइल ऐप की मदद से, अनुसूची और आईसीआर प्रसंस्करण के लिए अतिरिक्त लॉजिस्टिक्स की आवश्यकता के बिना, सभी डेटा तत्काल प्रसंस्करण के लिए तैयार हो जाएगा। भारत की जनसंख्या जनगणना ‘डिजिटल जनगणना’ में बदल रही है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाते हुए, आगामी जनगणना अभ्यास के सुचारू संचालन और प्रभावी प्रबंधन तथा निगरानी के लिए भारत के महारजिस्ट्रार का कार्यालय द्वारा सीएमएमएस पोर्टल विकसित किया गया है।देश भर में लगभग 135 करोड़ (1.35 बिलियन) लोगों की गणना करने के लिए लगभग तीस लाख कर्मचारी और पर्यवेक्षक लगेंगे ।वे मुख्य रूप से स्थानीय स्कूल शिक्षकों, केंद्र और राज्य/केंद्र शासित सरकार के अधिकारियों और स्थानीय निकायों से लिए जाते हैं, जो जनगणना कार्य के लिए हर घर का दौरा करेंगे।सरकार ने इस साल के बजट में जनगणना की तैयारी के लिए 574 करोड़ रुपए का प्रावधान कर रखा था | फिर एक से दो वर्ष के काम के लिए 12 हजार करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है | इसलिए आवश्यक है कि देश के दूरगामी हितों को ध्यान में रखा जाए और राजनीतिक स्वार्थों और विवादों से बचाया जाए |

 

जनगणना के उद्देश्य के लिए सभी प्रगणकों और पर्यवेक्षकों द्वारा इसकी अधिकतम स्वीकार्यता सुनिश्चित करने के लिए मोबाइल ऐप को बहुत ही सरल, सुविधाजनक और उपयोगकर्ता के अनुकूल बनाया गया है। मोबाइल ऐप की मदद से, अनुसूची और आईसीआर प्रसंस्करण के लिए अतिरिक्त लॉजिस्टिक्स की आवश्यकता के बिना, सभी डेटा तत्काल प्रसंस्करण के लिए तैयार हो जाएगा। भारत की जनसंख्या जनगणना ‘डिजिटल जनगणना’ में बदल रही है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाते हुए, आगामी जनगणना अभ्यास के सुचारू संचालन और प्रभावी प्रबंधन तथा निगरानी के लिए भारत के महारजिस्ट्रार का कार्यालय द्वारा सीएमएमएस पोर्टल विकसित किया गया है।देश भर में लगभग 135 करोड़ (1.35 बिलियन) लोगों की गणना करने के लिए लगभग तीस लाख प्रगणक और पर्यवेक्षक लगेंगे । प्रगणक और पर्यवेक्षक मुख्य रूप से स्थानीय स्कूल शिक्षकों, केंद्र और राज्य/केंद्र शासित सरकार के अधिकारियों और स्थानीय निकायों से लिए जाते हैं, जो जनगणना कार्य के लिए हर घर का दौरा करेंगे।