महाराष्ट्र में यह पांच साल “बाला साहेब के हिंदुत्व और सेना” के नाम …

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बाला साहेब

महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री एक नाथ शिंदे बन गए हैं। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में कॉमन फैक्टर “नाथ” है। मध्यप्रदेश से “नाथ” की विदाई हुई थी। महाराष्ट्र में “नाथ” की ताजपोशी हुई है। मध्यप्रदेश में मजदूर से मुख्यमंत्री बनने का सफर तय किया था बाबूलाल गौर ने। महाराष्ट्र में मजदूर और ऑटो रिक्शा चालक से मुख्यमंत्री बनने का सफर तय किया है “ठाणे के ठाकरे” के नाम से प्रसिद्ध शिंदे ने। पूरे सस्पेंस के बाद पिक्चर सिर्फ इतनी सी है कि “मुंबई के ठाकरे” को “ठाणे के ठाकरे” ने रिप्लेस कर दिया। शिंदे ने गुवाहाटी में बैठकर कहा था कि मैं शिवसेना में हूं और बाला साहब ठाकरे ही हमारे आदर्श हैं। वह इस पर कायम रहे।

इसके साथ ही महाराष्ट्र में “पवार फार्मूला” चल गया और एक नाथ अब राजनीति में महाराष्ट्र के नए “नाथ” यानि कि मुख्यमंत्री बन गए हैं। महाराष्ट्र में “मुंबई से गुवाहाटी वाया सूरत” के ग्यारह दिन के हाई प्रोफाइल पॉलिटिकल ड्रामा में “एक-नाथ” का उदय ग्यारहवें दिन के सूर्यास्त से पहले हो ही गया। पूरे परिदृश्य में जिन फडणवीस को फिल्म का हीरो माना जा रहा था और अभी तक की भाजपा की रीति-नीति के मुताबिक वह होना भी तय था, आखिर में उसे सह-अभिनेता की भूमिका में खुद को फिट करने के लिए सहर्ष मजबूर होना पड़ा। वह भी यह कहते हुए कि पार्टी ने मुझे सर्वोच्च पद दिया है और अब पार्टी का जो आदेश है, वह मेरे लिए सर्वोपरि है। जिसे दर्शकों-राजनैतिक विश्लेषकों ने मुख्यमंत्री माना था, वह उप मुख्यमंत्री बन गया और जिसे उप मुख्यमंत्री समझा जा रहा था, वह मुख्यमंत्री निकला। यह बात भी साबित हो गई कि भाजपा कैडर बेस पार्टी है,यहां व्यक्ति की हैसियत कुछ भी नहीं है। तो अब यह जुमला भी चल निकलेगा कि देश का पीएम चाय बेचने वाला है, तो महाराष्ट्र का सीएम रिक्शा चलाने वाला बन गया। यही भारत के लोकतंत्र की खुबसूरती है।

महाराष्ट्र में यह पांच साल "बाला साहेब के हिंदुत्व और सेना" के नाम ...

फिल्मांकन कितना बेहतरीन है। सूरत और गुवाहाटी में बैठे रहे शिंदे और पार्टी विधायकों से उद्धव ठाकरे ने अनुरोध किया था कि वह पार्टी अध्यक्ष और मुख्यमंत्री पद छोड़ने को तैयार हैं। शिंदे मुंबई आकर बात करें। तो ट्रेलर के तौर पर शिव सैनिकों के आक्रोश का सीन भी दिखा दिया था। और पहले दिन ही सीएम हाउस छोड़कर मातोश्री की शरण में भी पहुंच गए थे। कानूनी दावपेंच के दृश्य भी जीवंत फिल्माए गए। पर खेल भावना के साथ सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद फ्लोर टेस्ट ठुकराने के साथ ही ठाकरे ने मुख्यमंत्री और विधान परिषद सदस्य के पद को भी ठुकरा दिया। इसके बाद शिंदे और कथित बागी विधायकों के मुंबई आने पर शिव सैनिक भी नहीं भड़के।

सबके होश तब उड़े, जब देवेंद्र फडणवीस ने ऐलान किया कि एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री होंगे। तो एकनाथ शिंदे ने कहा कि भाजपा के साथ हमारा स्वाभाविक गठबंधन है। महाराष्ट्र के विकास के लिए दोनों पक्ष साथ आए हैं। जनता की अपेक्षाओं को पूरा करेंगे। बालासाहेब का विज़न और राज्य का विकास हमारी प्राथमिकता है। राज्य के हित और उज्ज्वल भविष्य के लिए एमवीए यानि महाविकास अघाड़ी से अलग हुए हैं। उद्धव ठाकरे भी मान गए। शायद सोच रहे होंगे कि ढाई साल के लिए ही तो मुख्यमंत्री पद मांगा था फडणवीस से। उसी समय मान जाता, तो अब मुख्यमंत्री का पद तो वैसे भी उसके हिस्से में आ गया होता।

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अब फडणवीस के लिए नहीं तो एकनाथ के लिए ही पद छोड़ने में क्या हर्ज है। एकनाथ आखिर कहलाएगा तो अपना ही। लोग विभीषण भी मानेंगे तो एकनाथ को ही। उद्धव सोच रहे होंगे कि महाविकास अघाड़ी से भी मन तो हमारा भी भर ही गया था। अंतिम कैबिनेट में शहरों के नाम बदलकर हिंदुत्व विचारधारा का सूरज आखिर दिल से फूट ही पड़ा था। यही हिम्मत तो थी कि इस्तीफा देने खुद गाड़ी चलाकर गए दोनों पुत्रों के साथ और लौटते समय मंदिर में पूजा कर वापस मातोश्री लौट आए। उद्धव को तो पता होगा ही कि अब हमारा एकनाथ संभालेगा महाराष्ट्र। वैसे भी मैं तो कुर्सी पर बैठा था, अभी भी संभाल तो एकनाथ ही रहा था।

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उधर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा परदे पर आए। नड्डा बोले कि देवेंद्र फडणवीस ने एकनाथ को मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा कर बड़ा दिल दिखाया है। मेरा उनसे आग्रह है कि वह महाराष्ट्र के विकास के लिए उपमुख्यमंत्री का पद संभालें। तो नंबर दो अमित शाह ने भी बड़े मन से फडणवीस के बड़े मन की तारीफ दिल खोलकर की। यानि यदि किसी को चोट पर चोट पहुंचाई गई और इस मंशा के साथ कि वह सहानुभूति का पात्र भी न बन पाए। फडणवीस ने बाहर रहकर समर्थन देने का मन बनाया तो वहां भी नहीं चलने दी। पहली बार उद्धव ठाकरे ने अरमानों पर पानी फेरा था, तो दूसरी बार अपनों ने अरमानों को पूरी तरह से कुचलने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

और फिल्म के डायरेक्टर का निर्दयी फरमान कि सब कुछ लुटाना है होंठों पर मुस्कराहट के संग। फडणवीस भले ही मन की बात जुबां पर न ला पाएं, लेकिन सोच जरूर रहे होंगे कि ढाई साल पहले यदि नियति का यह चक्र समझ पाता तो उद्धव को ढाई साल देकर आज सीएम तो बन जाता। एकनाथ के नेतृत्व में महाराष्ट्र में पदावनत होकर उपमुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने को तो मजबूर न होना पड़ता। पर फिर वही बात कि “पुरुष बली नहीं होत है, समय होत बलवान।” फिर बली चाहे द्वापर में अर्जुन हों या फिर कलियुग में देवेंद्र। सब कुछ सामने लुटता जाए और बली कुछ भी नहीं कर पाए। होनी को कोई मिटा नहीं पाया। जितनी ठोकरें नसीब में हों, वह खाने को हर इंसान मजबूर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फडणवीस को बधाई दी है और कार्यकर्ताओं को नसीहत दी है कि फडणवीस से प्रेरणा लें।

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खैर शिवसेना विधायक दीपक केसरकर का यह बयान फिल्म की पूरी स्क्रिप्ट से परदा उठा रहा है। गोवा के पणजी में उन्होंने गुरुवार को कहा कि “कल मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा दे दिया था। हम किसी भी तरह के जश्न में शामिल नहीं हुए, क्योंकि उन्हें हटाना हमारा इरादा नहीं था। हम अभी भी शिवसेना में हैं और उद्धव ठाकरे को चोट पहुंचाना और उनका अपमान करना हमारा इरादा नहीं है।” इससे तस्वीर साफ हो गई है कि महाराष्ट्र के यह पांच साल पूरी तरह से शिवसेना के नाम दर्ज रहेंगे, यदि इसके बाद भी कोई अनहोनी न हुई तो…। बाल ठाकरे की आत्मा को दु:खी करने का किसी का कोई इरादा नहीं था। हिंदुत्व विचारधारा से समझौता कर महाविकास अघाड़ी संग जाने और हिंदुत्व विचारधारा में लौटकर वापस आने की यह कहानी अब महाराष्ट्र और शिवसेना के इतिहास में दर्ज हो गई है। बाला साहेब के हिंदुत्व और राज्य के विकास के संकल्प के साथ एकनाथ मुख्यमंत्री बन गए हैं। मोदी, शाह, नड्डा, राज ठाकरे, शरद पवार सहित सभी ने बधाई दे दी है। बाकी मायानगरी की माया है, सो जानने की कोई कोशिश भी कर ले…तब भी जान पाना मुश्किल ही है।