

प्रसिद्ध साहित्यकार स्व श्री बटुक चतुर्वेदी जी की चतुर्थ पुण्यतिथि पर
बाबूजी नहीं आए !
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बाबूजी को गए
चार बरस हो गए
लेकिन बाबूजी नहीं आए ।
उनके जाने के बाद
घर में सब कुछ
बदल गया ।
नहीं बदला
तो सिर्फ़
बाबूजी का कमरा ।
उनके कमरे में
आज भी एक टेबल,
एक कुर्सी,
टेबल पर कुछ काग़ज़,
चश्मा और एक कलम
रखी हुई है ।
दीवार पर
उनका बड़ा सा फोटो
टंगा हुआ है ।
मैं रोज़
उस कमरे में
जाता हूं।
इस उम्मीद से
कि बाबूजी एक दिन
उस टंगे फोटो से
बाहर आएंगे,
कुर्सी पर बैठेंगे,
चश्मा लगाएंगे,
कलम उठाएंगे
और लिखेंगे
कोई कहानी
या कोई कविता ।
चार बरस बीत गए
पर बाबूजी नहीं आए ।
मैं उदास हूं,
दुखी हूं ।
पर नाउम्मीद नहीं ।
मुझे विश्वास है
बाबूजी एक दिन
जरूर आएंगे ।
वो जरूर आएंगे,
इसलिए कि
उन्हें पूरी करना है
“मौत” के शीर्षक वाली
वो अधूरी कविता
जिसे वे
अपनी मृत्यु के पूर्व
लिखकर छोड़ गए थे
मौत से
साक्षात्कार के बाद
लिखने के लिए ।