पत्थर और झरनों से भरे इस पठार में …

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पत्थर और झरनों से भरे इस पठार में …

यह शीर्षक उस काव्य ऋषि की कविता का हिंदी रूपांतरण है, जो असम के जन-जन के मन में बसता है। असमिया, बांग्ला और हिंदी में परस्पर अनुवाद एवं लेखन में सुपरिचित लेखिका पापोरी गोस्वामी ने इन कविताओं का असमिया से हिंदी में अनुवाद किया है। कविता इस तरह है –

पत्थर और झरनों से भरे पठार में जब बारिश होती है

वो लोग मुझे अकेला छोड़ जाते हैं।

आड़ी तिरछी बरसती बूंदें मुझे भीतर से ढहाने लगती

आधी रात की हवाएं उन लोगों की आँखों में खोल देते हैं

बाँध टूटकर बह जाने वाले नावों के पाल।

रात की मूसलाधार बारिश के बीच किसी की यंत्रणा भरी चीख सुनता हूँ।

पत्थरों के दबाव से निकलना मुश्किल है,

कोई चीख रहा है।

पत्थर और झरनों से भरे इस पठार में जब बारिश होती है

खेतों को हरा-भरा करने वाले जलातंक अँधेरे में दिखने लगता है

गले तक डूबी हुई कमला कुंवरी का चेहरा।

(नोट- कमला कुंवरी एक किंवदंती की स्त्री है जिसने जनकल्याण के लिए आत्म-बलिदान किया था।)

हां हम बात कर रहे हैं सुविख्यात असमिया कवि नीलमणि फूकन (जूनियर) की। वह सात दशकों तक कविता कर्म में सक्रिय रहे। उन्होंने असमिया कविता को नया अंदाज़ और मुहावरा दिया। कहा गया कि वे फ्रांसीसी प्रतीकवाद से प्रभावित रहे, जो उनकी कविता में भरपूर नज़र भी आता है। मगर सच्चाई यह है कि उनकी अपनी शैली रही और उस पर उनका ज़बर्दस्त अधिकार भी था। वह प्रगतिशील सोच वाले आधुनिक कवि थे और उनकी कविता का असर बाद की पीढ़ियों में भी साफ़ तौर पर देखा जा सकता है। फूकन की बात इसलिए क्योंकि आज उनका जन्मदिन है। असम के गोलघाट जिले में 10 सितंबर 1933 को जन्मे नीलमणि फूंकन मूलत: असमिया भाषा के भारतीय कवि और कथाकार हैं। उनका कैनवास विशाल है, उनकी कल्पना पौराणिक है, उनकी आवाज लोक-आग्रह बोली है, उनकी चिंताएं राजनीतिक से लेकर कॉस्मिक तक, समकालीन से लेकर आदिम तक हैं। वह जिन परिदृश्यों का उदाहरण देते हैं वे महाकाव्यात्मक और मौलिक हैं। वह आग और पानी, ग्रह और तारा, जंगल और रेगिस्तान, मनुष्य और पर्वत, समय और स्थान, युद्ध और शांति, जीवन और मृत्यु की बात करते हैं फिर भी उनके यहां न केवल एक ऋषि की तरह चिंतनशील वैराग्य है, बल्कि तात्कालिकता के साथ-साथ पीड़ा और हानि की गहरी भावना भी है। इसीलिए नीलमणि फूकन को असमिया साहित्य में ‘काव्य ऋषि’ की उपाधि दी गई है। प्रसिद्ध असमिया कवि नीलमणि फूकन को वर्ष 2020 के लिए भारत का सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार 56वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से 2021 में नवाजा गया। वयोवृद्ध कवि के स्वास्थ्य को देखते हुए पहली बार इस पुरस्कार का आयोजन असम में किया गया। उन्हें उनके कविता संग्रह, कविता (कोबिता) के लिए असमिया में 1981 का साहित्य अकादमी पुरस्कार भी दिया गया था। उन्हें 1990 में भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया था और साहित्य अकादमी , भारत की राष्ट्रीय साहित्य अकादमी द्वारा 2002 में दिए जाने वाले भारत के सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान, साहित्य अकादमी फैलोशिप से सम्मानित किया गया। 19 जनवरी 2023 (आयु 89) में गुवाहाटी में फूकन ने अपनी जीवन यात्रा पूरी की।उन्हें प्रतिष्ठित ब्रम्हपुत्र वैली पुरस्कार के अलावा बहुत सारे सम्मान मिले। फूकन के 13 कविता संग्रह और आलोचना पर भी उनकी कई पुस्तकें हैं। उनकी आत्मकथा भी प्रकाशित हुई है। सूर्य हेनो नामि अहे एई नादियेदी, मानस-प्रतिमा और फुली ठका, सूर्यमुखी फुल्तोर फाले आदि उनकी कुछ महत्वपूर्ण कृतियां हैं।

तो अंत में एक बार फिर काव्य ऋषि की अनुवादित कविता में गोता लगाते हैं…

‘क्या कोई जबाव मिला तुम्हें’

क्या कोई जबाव मिला

अपने ही खून में खुद को तैरता हुआ क्या देख पाए

ये भी है एक तरह के चरम अनुभवों का क्रूर उद्दीपन।

जीवन के साथ जीवन का अप्रत्याशित,भयानक रक्तरंजित साक्षात्कार।

क्या वापस पाया खुद को

तुम्हारी प्यास

तुम्हारा शोक।

डरे हुए भूखे अनाथ बच्चे की

आंसू भरी आँखों को

क्या कोई जवाब दे पाए तुम।

क्या अपने खून में खुद को तैरता हुआ देखा तुमने।

बहुत समय बीता,

बहुत समय।

हे परितृप्त मानव।

तो नीलमणि फूकन हमेशा जिंदा रहेंगे अपनी कविताओं में और काव्य ऋषि बन साहित्य के नीले गगन में चमकदार तारे की तरह टिमटिमाते रहेंगे…।