प्रसंगवश – पुण्यतिथि पर शब्दांजली: स्वर कोकिला – भारत रत्न जी लता मंगेशकर

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प्रसंगवश – पुण्यतिथि पर शब्दांजली: स्वर कोकिला – भारत रत्न जी लता मंगेशकर

( डॉ घनश्याम बटवाल , मंदसौर )

सदियों में ऐसा स्वर संगीत सरिता में पैदा होता है जो जन – मन से जुड़कर भारत की आत्मा हो जाता है । बात है स्वर कोकिला , भारत रत्न अलंकृत लता मंगेशकर की ।

92 वर्ष की आयु में वह भौतिक शरीर से हमारे बीच से विदा होगई पर स्वर और सुरों के साथ कभी विस्मृत नहीं हो पाएंगी ।

सामान्य मध्यम परिवार में इंदौर में जन्मी लताजी बाल्यकाल के संघर्षों से उभरी और स्वयं के साथ परिवार के छोटे भाई बहनों को स्थापित कर मिसाल क़ायम की है , ज्ञात हो कि बाल्यकाल में ही पिता दीनानाथ मंगेशकर का निधन होगया था , तत्कालीन समय जो आज़ादी के पहले के भारत समाज की बेड़ियों की जकड़न को भेदने का उत्कृष्ट उदाहरण भी है । स्वयं के अस्तित्व को भूल संगीत साधना पथ पर अग्रसर होकर नई ऊंचाई हांसिल की और बहनों आशा उषा मीना और भाई हृदयनाथ को मुक़ाम तय कराया ।

 

जितनी पवित्र और निर्मल आवाज़ लताजी की रही वैसा ही शुचिता पूर्ण जीवन आपका रहा । सुर संधान के साथ आपके स्वर तार सप्तकों तक देश – विदेश में गूंजते रहे और आने वाली सदियों तक गूंजते रहेंगे ।

 

जन्म नाम तो हेमा रखा गया पर बाद में लतिका से लता में पहचाना गया ।

1942 से 1949 के बीच फिल्मों में भी काम किया , 1938 में पहली बार बालकलाकार के रूप में शोलापुर के नूतन थियेटर में अभिनय और गायन किया । हिंदी और मराठी फिल्मों में काम किया । अपने जीवन में पहला बड़ा ब्रेक 1949 में बनी फ़िल्म महल से मिला , फ़िल्म की हिरोइन मधुबाला थी और गीत के बोल थे

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” आयेगा आने वाला ” बहुत लोकप्रिय हुआ ओर उसके बाद लताजी ने मुड़कर नहीं देखा । उनके गले की रेंज अतुलनीय थी । वे फ़िल्मी गीतों के लिए ही नहीं सुगम संगीत , शास्त्रीय संगीत , कर्नाटकी संगीत के लिए भी जानी जाती रही ।

हिंदुस्तानी संगीत की विभिन्न विधाओं ध्रुपद , खयाल , धमार , ठुमरी , टप्पा आदि गायन में भी आपको महारत हांसिल रही , सहजता , सरलता के साथ सुरों की साधना कर यह उपलब्धि प्राप्त की ।

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हिंदुस्तान में कोई साठ वर्षों तक

लताजी के स्वरों में तीस हजार से अधिक 30 से अधिक भाषाओं में गीत गूंजे । 1974 में 25 हजार गीत गायन होने पर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड बनाया ।

आपको पद्मभूषण , पद्मविभूषण के बाद सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया गया । इसी प्रकार फ्रांस सरकार द्वारा भी सर्वोच्च नागरिक सम्मान से लताजी को नवाजा गया । 1999 में आपको राज्यसभा के लिए नामांकित किया गया , सदन में नहीं गई और कोई वेतन भत्ते भी नहीं लिए ।

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6 फरवरी 22 को लताजी ने अंतिम सांस ली और देश की स्वर कोकिला के सुर थम गए । रह गए उनके संग्रहित स्वर – संगीत और आराधना की आवाजें ।

गाने वाले – आनेवाले समय में भी अवश्य अपना योगदान करते रहेंगे , क्षेत्र विशेष में ऊंचे पायदानों पर भी चढ़ेंगे पर लताजी जैसी विलक्षण हस्ति भविष्य में शायद ही हों ।

 

पुण्यतिथि के अवसर पर भाव पूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए , उनके गीत को याद करते हैं – – – –

” मेरी आवाज़ ही पहचान है ”

 

सच , लताजी के सुर और स्वर ही हमारी पहचान बन गई है , कभी भुलाया नहीं जासकेगा ।