चुनाव में बढ़ती तल्खी और घटते वोट
दृष्यावली चलचित्र के कथानक की भांति पल पल बदल रही है। आरोप प्रत्यारोप और भी तल्ख होते जा रहे हैं। चुनावी कुरुक्षेत्र में महाभारत की भांति युद्ध के सारे नियम एक-एककर टूटते जा रहे हैं। गड़े मुर्दों को उखाड़कर सामने खड़ा किया जा रहा है। देश में मतदान के पांच चरण और प्रदेश में दो चरण शेष हैं, समझा जा सकता है कि 1 जून को होने वाले आखिरी चरण के मतदान तक क्या – देखने सुनने को मिल सकता है।
सुर्ख खबर यह कि राहुल गांधी ने रायबरेली से अपना पर्चा दाखिल कर दिया। एक दिन पहले भाजपा ने यहां से योगी सरकार के मंत्री दिनेश प्रताप सिंह को बतौर उम्मीदवार घोषित किया था। प्रियंका वाड्रा चुनाव लड़ने की बजाय चुनाव में जुबानी हमले करेंगी। कल उन्होंने कोविड के वैक्सीन को मुद्दा बनाया और भाजपा पर आरोप थोपा कि जिस कंपनी के टीके से हार्टअटैक हो रहे हैं उस कंपनी से भाजपा ने चुनावी चंदा खाया। ये वही कोविड वैक्सीन है जिसके आधार पर भारत में विश्व का सबसे बड़ा और नि: शुल्क वैक्सीनेशन अभियान चला था। यही नहीं भारत ने तीसरी दुनिया के देशों को मानवता के आधार पर यही वैक्सीन मुफ्त उपलब्ध कराई थी, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जिसकी भूरि भूरि प्रशंसा की थी। चुनाव के वक्त वैक्सीन को लेकर खड़े किए जा रहे इस नैरेटिव के पीछे कौन सी ताकतें हैं यह भी समझना होगा।
इधर मध्यप्रदेश की सागर की चुनावी सभा में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने इन्डी गठबंधन के स्वरूप पर सवाल खड़ा किया। उसके ज्यादातर नेता भ्रष्टाचार के मामलों में या तो बेल पर हैं या जेल में सलाखों के पीछे। उन्होंने इसे ठगबंधन कहा। राहुल गांधी कर्नाटक के नेता पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा के पोते प्रज्ज्वल रवन्ना को लेकर चुनाव अभियान हांके हुए हैं। रवन्ना पर कई महिलाओं के साथ ज्यादती के आरोप हैं, वे हासन से एनडीए के प्रत्याशी थे अब फरार हैं। राहुल, रवन्ना के साथ मोदी को भी यह कहते हुए सांट रहे हैं कि मोदी ने मास रेपिस्ट को लिए वोट मांगे।
नरेन्द्र मोदी ने आरक्षण को लेकर जो बहस खड़ी की थी कि कांग्रेस एसी,एसटी,ओबीसी के कोटे से मुसलमानों को आरक्षण देना चाहती है, वह रह रहकर सभाओं में उभरती रहेगी। नया हमला यह कि पाकिस्तान शहजादे को भारत का प्रधानमंत्री देखना चाहता है। यानी कि इस चुनाव में हिन्दू – मुसलमान, पाकिस्तान सबकुछ आ गया।
चुनाव के भाषणों की नित नई पटकथा लिखी जा रही है। इस बीच एक आंकड़े ने चौंकाया कि लोकसभा चुनाव का हर चौथा प्रत्याशी करोड़पति हैं। अब इसके दो ही मायने हैं या तो देश बहुत तेजी से धनाढ्य होता जा रहा है या फिर गरीब नेता चुनाव की प्रक्रिया से उत्तरोत्तर खारिज होते जा रहे हैं।
चलते चुनाव में जो सबसे बड़ी चिंता है वह हैं मतदान प्रतिशत में आई गिरावट की। पूरे देश के पैमाने पर देखा जाए तो दो चरणों में हुए मतदान में 2019 के मुकाबले कुल जमा 4 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। मध्यप्रदेश के संदर्भ में देखें तो दूसरे चरण में छह सीटों पर मतदान हुआ जिसमें 58.59 फ़ीसदी वोटिंग हुई। ये पहले के मुक़ाबले 9.41 फ़ीसदी कम था। मध्यप्रदेश में पहले चरण की छह सीटों में 66.44 प्रतिशत वोटिंग हुई थी जो पिछले चुनाव से 8.79 प्रतिशत कम थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में इन सीटों में लगभग 75.23 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। तीसरे और चौथे चरण में प्रदेश की सत्रह सीटों पर मतदान होना है।
तीसरे चरण की नौ सीटों मुरैना,भिन्ड, ग्वालियर, राजगढ़, गुना, बैतूल, विदिशा, भोपाल, सागर में सात मई को मतदान होने हैं। जिन सीटों पर नजरें टिकी हैं उनमें विदिशा से शिवराज सिंह चौहान, राजगढ़ से दिग्विजय सिंह और गुना से ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं। शिवराज सिंह का अभियान दस लाख प्लस मार्जिन को लेकर चल रहा है, ज्योतिरादित्य सिंधिया पिछली बार की हार को बहुत अच्छे से धो देना चाहते हैं। यद्यपि वे पिछला चुनाव कांग्रेस की टिकट पर लड़े थे और अपने ही पुराने चेले से मात खा गए। दिग्विजय सिंह के लिए यह चुनाव उनके राजनीतिक भविष्य की दृष्टि से एक तरह से ‘करो या मरो’ की तरह है। राजगढ़ में ‘आशिक का जनाजा’ जुबान पर हैं। अमित शाह इसे शायराना अंदाज में पेश कर आए तो चतुर दिग्गी राजा इसे ही दोहराते हुए वोटरों से भावुक अपील कर रहे हैं। मुकाबले की सीटों में राजगढ़ और मुरैना को माना जा रहा है।
चौथे चरण की सीटों में देवास, उज्जैन, इंदौर, खरगोन, खंडवा, मंदसौर, देवास, धार में 13 मई को मतदान होना है। इंदौर सीट से कांग्रेस का प्रत्याशी पर्चा वापस करके भाजपा में शामिल हो चुका है। डमी उम्मीदवार ने स्वयं को प्रत्याशी घोषित करने को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर कर रखी है। मुश्किल ही है कि उसे कोई रिलीफ मिले। इस बीच कांग्रेस व उसके सहयोगी संगठनों ने इंदौर में ‘नोटा’ को वोट दिलाने का अभियान छेड़ दिया है। कुछ लोग इस प्रकरण को स्वच्छ इंदौर में कलंक की कालिख बता रहे हैं। चौथे चरण में मुकाबले की सीट रतलाम को माना जा सकता है। यहां से कांग्रेस के खांटी नेता कांतिलाल भूरिया उतरे हैं। भूरिया यहां से चार बार लोकसभा का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। यहां भील बनाम भिलाला फैक्टर के स्वर सुनाई दे रहे हैं।
कम मतदान से परेशान चुनाव आयोग भी है और राजनीतिक दल भी। वैसे कम मतदान से भाजपा ज्यादा चिंतित हैं क्योंकि 2019 के मुकाबले मतदाताओं की बेरुखी सालने वाली है।
मतदान कैसे बढ़े भाजपा में हर स्तर पर इसके जतन हो रहे हैं। प्रायः सभी बड़े नेताओं के भाषण में कम मतदान का उल्लेख हो रहा है। पहले और दूसरे चरण में लाड़ली बहना मुद्दा दर किनार रहा। आने वाले चरणों में यह मेन स्ट्रीम में आ सकता है। प्रदेश में 1.21 करोड़ लाड़ली बहने हैं जिनके खाते में महीने की तनख्वाह जा रही है। इस महीने 5 तारीख को उनके खाते में पैसे डल जाएंगे विधानसभा चुनाव में लाड़ली बहनों ने ही भाजपा को भंवर से निकाला था। 35 सीटों में पुरुषों के मुकाबले ज्यादा वोट दिए थे इनमें से 32 सीटें भाजपा के पक्ष में आईं थीं। 45 लाख लाड़ली लक्ष्मी और 85 लाख वे किसान जिन्हें सम्मान निधि मिल रही है में से नब्बे प्रतिशत भाजपा के पक्ष में गए थे। वोट प्रतिशत बढ़ाना है तो विधानसभा चुनाव के अंदाज में अभियान को दोहराना होगा, यह चिंता किए बगैर कि इसकी क्रेडिट किसे जाती है। पिछले दो चरणों के चुनाव में लाड़ली बहनों की बेरुखी ही मतदान में गिरावट का प्रमुख कारण रहा है, इसे बिना किसी हील-हुज्जत के नोट कर लीजिए।