साँच कहै ता!अग्निपथ से ही चलकर निखरेगा भारत का भविष्य!
भारतीय सेना (indian army) की अग्निपथ योजना (agneepath scheme) और अग्निवीरों ( agniveer) की भर्ती, इसको लेकर मचे बवाल और प्रायोजित आक्रोश के गरम तवे पर राजनीतिक दलों द्वारा रोटी सेंकने के बारे में कुछ टीका-टिप्पणी करें इससे पहले एक कहानी। यह सत्यकथा संभव है अग्निवीरों के कुछ काम आए।
मेरे गांव के पड़ोसी और अग्रजतुल्य मित्र हैं अभय लाल मिश्र। पिछले साल ही रीवा से ज्वाइंट कलेक्टर के पद से रिटायर हुए। जब ये 11वीं पढ़ रहे थे तभी देश में भारत-पाक युद्ध छिड़ा था, यानी कि बात 1971 की है। रेडियो में भारतीय सेना के वीर जवानों की शौर्यगाथाएं सुनीं जाती थीं और युवा जोश से फड़क उठते। उन्हीं में से एक युवा थे अभय लाल । 11 वीं की मार्कशीट लेकर सीधे पहुँच गए सेना भर्ती कार्यालय। इन्हें रिक्रूट कर लिया गया। पूरी ट्रेनिंग का वक्त नहीं था सो शार्ट टर्म ट्रेनिंग ली। राजपूताना रेजीमेंट के जवान बनकर तैनात हो गए मोर्चे पर। जो सबक मिला बहादुरी से पूरा किया।
फौज से इस्तीफा देकर की पढ़ाई बन गए नायब तहसीलदार
भारत युद्ध जीत गया, स्थितियां सामान्य होने लगीं। फौजी जीवन के दो ढाई साल बीते होंगे कि अभयजी को लगा कि इससे आगे भी कुछ कर सकते हैं। उन्होंने फौज के अफसरों से विनती की और आपने भविष्य के करियर की योजना के बारे में बताया। इनका इस्तीफा मंजूर हो गया। फौज से लौटे जमकर पढ़ाई शुरू की। एम.एससी की परीक्षा प्रवीण्यता के साथ पूरी की। फिर लग गए बेहतर नौकरी की तलाश में। एफसीआई व बैंक में अच्छे पदों पर चयनित होते गए। फिर पीएससी की परीक्षा में बैठे तो नायब तहसीलदार चुन लिए गए। फौज से इतर यह नया करियर शुरू हुआ। आगे बढ़ते गए, तहसीलदार फिर डिप्टी कलेक्टर और अंततः ज्वाइंट कलेक्टर से सेवानिवृत्त हुए। जिंन्दगी भर फौज के अनुशासन में रहे, स्वयं भी और घर परिवार को भी रखा। करियर और जीवन से पूर्णतया संतुष्ट।
अग्निवीरों के लिए रोल मॉडल हो सकते हैं अभयलाल मिश्र
अभय लाल मिश्र उन अग्निवीरों के लिए रोल मॉडल हो सकते हैं जो फौजी जीवन के इतर भी कुछ करना चाहते हैं और आगे बढ़ना चाहते हैं। पहले फौज में भर्ती होने के बाद सेवाकाल पूरा किए बिना लौटना जटिल था। न जाने कितने और जवान अभयलाल जैसा सपना पाले रहे होंगे पर वे सौभाग्यशाली नहीं निकले। फौज ने उन्हें नहीं छोड़ा। अब फौज ही अपने सैनिकों के आगे के करियर की योजना के साथ तत्पर है। चार साल की नौकरी और 12 लाख के हैंडसम पैकेज के साथ फिर नया करियर चुनने का चांस।
अग्निपथ योजना का विरोध करने वाले देशघाती
आज के युग में कामचोर और आलसी को दास मलूका ही पाल सकते हैं। अब यह न परिवार के बस की बात रही और न सरकार के। कुछ तो करना पड़ेगा। भारतीय सेना की इस महत्वकांक्षी योजना को लेकर आग भड़काने वाले लोग देशघाती हैं, पापी हैं और युवा पीढ़ी की ऊर्जा व शक्ति के नाशक हैं। उन्होंने युवाओं को अपने भ्रमजाल में फँसा लिया। लेकिन मैं यह बात गारंटी के साथ कहना चाहता हूँ..कि अग्निवीरों के नाम पर विध्वंस मचाने वाली टोली में एक भी ऐसा युवा शामिल नहीं हुआ होगा जिसके परिवार की पृष्ठभूमि सेना की रही है। वह युवा भी पत्थरबाजों में नहीं मिलेगा जिसने स्कूल व कालेज में एनसीसी लिया है। ये जो थे वे आवारा हवाओं के झोंके थे जिनके पीछे देश को कमजोर करने वाले, राजनीति की रोटी सेंकने वाले अपने-अपने पंखों से हवा कर रहे थे।
अग्निवीर योजना युवाओं के कायाकल्प की योजना
देश में राजस्थान के झुंझुनूं के बाद फौज में अपना करियर चुनने वाले सबसे ज्यादा जवान हमारे विन्ध्य के हैं। इनके शौर्य का गौरवशाली इतिहास है। पिछले साल ही रीवा के फरेदा गाँव के दीपक सिंह गलवान घाटी में चीनी सेना के खिलाफ अद्वितीय पराक्रम दिखाते हुए शहीद हुए। मरणोपरांत देश के राष्ट्रपति ने उन्हें दुर्लभ अलंकरण वीर चक्र से अलंकृत किया। दीपक सिंह भी 17 की उमर में सेना में भर्ती हुए थे। दो साल के करियर में वह सब कुछ कर दिखाया जिसका अवसर बहुतों को बुढ़ापे तक नहीं मिल पाता और वे रोग-व्याधियों से लड़ते-लड़ते गुमनामी में मर जाते हैं।
शहीद दीपक सिंह (वीरचक्र)
कारगिल के योद्धा विक्रम बत्रा (जिन पर शेरशाह मूवी बनी), कैप्टन कालिया, मनोज पान्डे ये भी सेना में दो साल ही रह पाए। लेकिन इन्हें देव दुर्लभ अमरता मिली। आज जो हैं इसके आगे के चार साल के जीवन की गारंटी कौन ले सकता है। आज शहरों में सत्रह से बीस साल के युवा नशे की गिरफ्त में हैं। एक-दूसरे को छुरा-चाकू-कट्टा मार के मर रहे हैं या फिर किडनी और लीवर खराब करके माँ-बाप के जीवनभर की कमाई अस्पतालों में स्वाहा कर रहे हैं। यह बड़े घरों में भी है और गरीब घरों में भी। सो अग्निपथ की अग्निवीर योजना युवाओं के कायाकल्प की योजना है। देशभक्ति के जज्बे के साथ सार्वजनिक जीवन शुरू करने की पूर्वपीठिका है।
अग्निपथ के विरोधियों कभी किसी शहीद के परिवार की आंखों में झांकना
अग्निपथ योजना को लेकर पूरे देश से बवाल की खबरें सुनने को मिलीं। लेकिन राजस्थान के झुंझुनूं और मध्यप्रदेश के विन्ध्य अंचल से एक भी नहीं जहाँ से सबसे ज्यादा युवाओं का सेना में जाने का रिकॉर्ड है। जानते हैं क्यों..क्योंकि यहाँ की माटी आबोहवा और खून में सेना के संस्कार हैं। सतना जिले का एक गाँव है चूँद, शायद ही कोई घर बचा हो जहाँ एक न एक ने मोर्चे पर अपनी शहादत न दी हो। अग्निपथ योजना के विरोधियों से मैं पूछना चाहता हूँ- चूँद गए कभी, किसी शहीद परिवार के गर्वाश्रुओं को देखा कभी, उन बच्चों की आँखों में झाँककर जाना कभी कि पिता की शहादत के बाद भी बेटा क्यों फौज में जाने का सपना पाले बैठा है।
आज हर दसवां कमिशन्ड अफसर रीवा सैनिक स्कूल का है
रीवा सैनिकों की शक्तिभूमि है। भारत-चीन युद्ध के बाद जब एक सोच बनी कि क्यों न स्कूल से ही सैन्य शिक्षा शुरू की जाए। मध्यप्रदेश से पहला प्रस्ताव रीवा से गया। रीवा नरेश मार्तण्ड सिंह ने पंडित नेहरू से कहा- खोलिए यहां सैनिक स्कूल जितनी जमीन कहेंगे उतनी हम देंगे। और भी जो कुछ चाहेंगे, हम देने को तत्पर हैं। रीवा में सैनिक स्कूल खुल गया। आज देश का हर दसवां कमिशन्ड अफसर रीवा सैनिक स्कूल का है।
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अभी अग्निपथ योजना को लेकर भ्रम का जो वातावरण बना दिया गया था..उस जाले को साफ करने के लिए सेना की ओर से जो एक अधिकृत नाम आपने सुना होगा वह है वायस एडमिरल डीके त्रिपाठी(दिनेश कुमार त्रिपाठी) का। नौ सेना का यह डिप्टी चीफ इसी सैनिक स्कूल का और हमारी माटी का सपूत है। दिनेश त्रिपाठी सतना-अमरपाटन के समीप महुडर गाँव के हैं। गाँव में ही स्कूली शिक्षा पाई वही आवो-हवा आज भी हिलोरें मार रही हैं। लेफ्टिनेंट जनरल उपेन्द्र द्विवेदी के बारे में जानना चाहिए। ये उप थल सेनाध्यक्ष हैं। सेना के कोर कमांडर इसके बाद की तरक्की थलसेना अध्यक्ष की वो भी इसी सैनिक स्कूल के हैं। रीवा जिले के एक गाँव गढ़ में पैदा हुए वहीं के फुटही स्कूल से शिक्षा का ‘सिरी गनेसाए नमहा’ किया। फिर सैनिक स्कूल आए। आज देश के गौरव हैं। हमारी बेटी अवनि चतुर्वेदी को देश की पहली फाइटर पायलट होने का श्रेय औऱ गौरव मिला, वह भी कान्वेंट से नहीं निकली। शहडोल के देवलोंद के फुटही सरकारी स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा हासिल की। जिद-जज्बा-जुनून ने उन्हें शौर्य के फलक तक पहुँचा दिया।
डीके त्रिपाठी (वायस एडमिरल)
इनका उदाहरण देने के पीछे मेरा आशय यह कि आप अग्निपथ में चलते हुए वायस एडमिरल डीके त्रिपाठी, लेफ्टीनेंट जरनल उपेन्द्र द्विवेदी, स्क्वाड्रन लीडर अवनी चतुर्वेदी बन सकते हैं..और जरा सा धैर्य बचाए रखें तो ज्वाइंट कलेक्टर अभयलाल मिश्रा का मुकाम तो पा ही सकते हैं। यूपीएससी की प्रिलिम्स में 80 लाख बच्चे बैठते हैं। अंतिम चयन 800 का होता है, जरा हिसाब लगाइए कितने प्रतिशत..? मध्यप्रदेश की पीएससी में कोई 15 लाख बच्चे बैठते हैं चयनित होते हैं छह से सात सौ यानी कितने प्रतिशत..?
अवनी चतुर्वेदी
सिर्फ नाम ही नहीं बल्कि काम के अग्निवीर गढ़ने की योजना
अग्निपथ योजना में 25 प्रतिशत का सेना में आगे जाना तय। शेष 75 प्रतिशत के लिए पब्लिक, प्रायवेट, व सरकारी सेक्टर में 10 प्रतिशत का आरक्षण। जो आगे बढ़ना चाहता है व अपनी मेधा और पराक्रम से बढ़ेगा,उसके लिए किसी जैक की जरूरत नहीं। और जिसे मुँह चलाने बकवाद करने और राष्ट्रीय संपत्ति का नाश करना ही सुहाता है तो उसकी जगह जेल ही है..बल्कि गुआंतानामो जैसी कोई जेल। सो इसलिए अग्निपथ योजना इस देश के युवाओं को सिर्फ नाम ही नहीं वरन् काम के अग्निवीर गढ़ने की योजना है, युवाओं को भ्रम के कुहासे में रखकर विध्वंस की ओर धकलने वाली ताकतों से वैसे ही निपटना चाहिए जैसे कि राष्ट्रद्रोहियों से निपटा जाता है।
उपेन्द्र द्विवेदी (उप थल सेनाध्यक्ष)
अग्निपथ योजना में अग्निवीरों की भर्ती के लिए वायुसेना ने नोटिफिकेशन जारी कर दिया है। जल्द ही थल और नौ सेना भी नोटिफिकेशन जारी करने वाली हैं। आशा है कि 2023 के प्रभात तक हमारी सेना 40 हजार जुनूनी युवाओं को अग्निवीर के तौर पर गढ़ने का सिलसिला शुरू कर देगी।