नीलम संजीव रेड्डी की प्रस्तावक बनीं फिर चुनाव में उन्हीं को पटखनी दी इंदिरा ने।
देश में इन दिनों राष्ट्रपति पद के लिए सोलहवीं बार चुनाव प्रक्रिया चल रही है। ऐसे में इतिहास के सबसे हंगामाखेज और रोचक चुनाव पर बात करना भी समीचीन होगा।
पहली किस्त में आपने पढ़ा कि इंदिरा गांधी ने पार्टी के घोषित प्रत्याशी नीलम संजीव रेड्डी को अपने निर्दलीय प्रत्याशी वी वी गिरि को जिता कर इतिहास रच दिया था।
इसी चुनाव के कुछ और दिलचस्प किस्से जान लीजिए।
असल में लालबहादुर शास्त्री के निधन के बाद प्रधानमंत्री बनी इंदिरा गांधी को कांग्रेस के तत्कालीन दिग्गज अपने इशारों पर नाचना चाहते थे। पार्टी अध्यक्ष एस निजलिंगप्पा, के कामराज, मोरार जी देसाई, अतुल्य घोष, एस के पाटील, तारकेश्वरी सिन्हा जैसे सूरमाओं का एक ग्रुप ‘सिंडीकेट’ कहलाने लगा था।
सिंडिकेट इंदिरा को गूंगी गुड़िया कह कर प्रचारित करता था। निजलिंगप्पा ने एक पत्राचार में यहां तक लिखा कि इंदिरा PM के योग्य ही नहीं हैं। असल में ये लोग शास्त्री के निधन के बाद मोरारजी देसाई को पीएम बनाना चाहते थे
¶ रेड्डी की प्रस्तावक बनी इंदिरा फिर हरवा दिया..!
डॉ ज़ाकिर हुसैन के आकस्मिक निधन के कारण 1969 में राष्ट्रपति का चुनाव आ गया।
बस यही वह मौका था जब इंदिरा गांधी ने सिंडीकेट को धूल चटाने के लिए कमर कस ली।
सिंडीकेट अपनी मर्ज़ी का राष्ट्रपति बनाने पर तुला था जबकि इंदिरा गांधी के मन में कुछ और चल रहा था।
सिंडेकेट की मर्ज़ी पर कांग्रेस ने नीलम संजीव रेड्डी को प्रत्याशी घोषित कर दिया।
यह वह दौर था जब सिंडीकेट और इंदिरा गांधी की रार, तकरार खुल कर सामने आ चुकी थी। यहां तक कि पार्टी अध्यक्ष निजलिंगप्पा की बुलाई बैठकों तक में
इंदिरा गांधी ने जाना बंद कर दिया था।
लेकिन जब पार्टी ने रेड्डी को प्रत्याशी घोषित कर दिया तब उनके नामांकन पर इंदिरा गांधी ने प्रस्तावक क्रमांक एक के तौर पर दस्तखत किए। वे प्रधानमंत्री के साथ कांग्रेस संसदीय दल की नेता भी थीं अतः परंपरा के अनुसार उन्हें प्रस्तावक होना था।
¶ तारकेश्वरी सिन्हा के ऐलान से सनसनी..!
इंदिरा गांधी ने भले ही रेड्डी के नामांकन फार्म पर प्रस्तावक के रूप में दस्तखत कर दिए थे लेकिन वे आर पार की लड़ाई में उतर चुकी थीं।
उनके इशारे पर तत्कालीन उपराष्ट्रपति वी वी गिरि ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामांकन दाखिल कर दिया।
साफ़ हो गया था कि अब सिंडीकेट या कांग्रेस के घोषित उम्मीदवार रेड्डी को इंदिरा गांधी के प्रत्याशी गिरि से दो दो हाथ करना है।
बढ़ते तनाव के बीच सिंडीकेट की मुखर सदस्य और इंदिरा की घोर आलोचक तारकेश्वरी सिन्हा ने बयान दे दिया कि राष्ट्रपति चुनाव के बाद प्रधानमंत्री बदला जाएगा।
इस बयान ने आग में घी का काम किया। इंदिरा गांधी ने वाम दलों, अकाली दल, डीएमके आदि के समर्थन से अपनी ही पार्टी के प्रत्याशी को हराने के लिए जान लड़ा दी।
इस दौर में कांग्रेस के ‘युवा तुर्क’ इंदिरा गांधी का साथ देने आगे आए। इनमें चंद्रशेखर,मोहन धारिया, कृष्णकांत आदि बेहद मुखर थे।
तारकेश्वरी के बयान के बाद इंदिरा गांधी ने रेडियो से देश भर के सांसद और विधायकों को वह ऐतिहासिक संदेश दिया जिसमें ‘अंतरात्मा की आवाज़’ पर वोट देने की अपील की।
¶ प्रधानमंत्री रहते कांग्रेस से बर्खास्त हुईं इंदिरा..!
इंदिरा गांधी अंततः अपने प्रत्याशी वी वी गिरि को राष्ट्रपति बनवाने में सफल रहीं। सिंडीकेट बुरी तरह मात खा गया और उसने इंदिरा गांधी को ही कांग्रेस पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया।
चुनाव के कुछ समय बाद 12 नवंबर 1969 को पार्टी अध्यक्ष एस निजलिंगप्पा ने इंदिरा गांधी को पार्टी की पार्टी की सदस्यता से निष्कासित कर दिया। पार्टी पूरी तरह विभाजित हो गई।
तब इंदिरा गांधी ने कांग्रेस(R) बनाई। सिंडीकेट ने अपनी पार्टी का नाम कांग्रेस(O) रखा।
बाद में 1971- 72 आते आते सिंडीकेट खतम हो गया। इसके कई दिग्गज चुनाव हार कर हाशिए पर चले गए।
¶ कौन थीं ‘बेबी ऑफ हाउस’ तारकेश्वरी सिंह
सन 1969 के दिलचस्प और हंगामाखेज राष्ट्रपति चुनाव में जिन तारकेश्वरी सिन्हा के बयान ने सनसनी फैलाई थी वे उस दौर में भारत की राजनीति की तारिका ही थीं।
बिहार के नालंदा में जन्मी तारकेश्वरी मात्र सोलह साल की उम्र में भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हो गईं थीं।
सन 1947 में दंगों के दौरान महात्मा गांधी नालंदा आए तब उन्होंने गांधी जी की अगवानी की थी।
1952 के पहले आमचुनाव में पटना सीट से दिग्गज शील भद्र याजी को हरा कर मात्र 26 वर्ष की आयु में वे संसद में पहुंचीं।
अपनी कम उम्र और अतीत सौदर्य के कारण वे ‘बेबी ऑफ हाउस’ , ‘ग्लैमर गर्ल ऑफ इंडियन पॉलिटिक्स’ के नाम से मशहूर हो गईं। यहां तक कहा जाता है कि लोग सिर्फ उन्हें देखने संसद भवन आते थे।
वे शानदार वक्ता थीं और उन्हें हजारों शेर, कवितायें जुबानी याद रहते थे।
सन 58 में वे नेहरू मंत्रिमंडल में उप वित्त मंत्री बनीं। वित्त मंत्री मोरारजी देसाई थे। वे 1957,62,67 में बाढ़ सीट से सांसद बनीं।
1971में बेगुसराय सीट से हार गईं। बाद के दो और लोकसभा चुनाव में उन्हें जीत नसीब नहीं हुई।
आजीवन इंदिरा गांधी की आलोचक रहीं तारकेश्वरी सिन्हा अपातकाल में इंदिरा गांधी के साथ गईं लेकिन चुनावी जीत नहीं मिली।
अंततः उन्होंने राजनीति से किनारा कर लिया। अगस्त 2007 में उनका निधन हो गया।
अगली किस्त में में पढ़िए…
राष्ट्रपति चुनाव की बेला में बैंकों का राष्ट्रीयकरण..!