Indore Mayor Election : पुष्यमित्र की जीत का दारोमदार इंदौर के दो विधानसभा क्षेत्रों पर!
– मीडिया वाला के संपादक हेमंत पाल की ग्राउंड रिपोर्ट
नगर निकाय चुनाव का शोर थम गया। अब शांत मन से मतदाता तय करेगा कि आने वाले पांच सालों के लिए उसे शहर की चाभी किसे सौंपना है। इंदौर के संदर्भ में इस बार का चुनाव बेहद अहम कहा जा सकता है। इस सच्चाई को हर वो मतदाता समझ रहा है, जो थोड़ा-बहुत भी चुनाव और इंदौर की मानसिकता को समझता है! पिछले कुछ चुनाव एक तरह से भाजपा के लिए वॉकओवर जैसे थे। कांग्रेस ने भी एक तरह से हारी हुई बाजी की तरह चुनाव लड़ा। पिछला चुनाव जब मालिनी गौड़ महापौर चुनी गई थी, वो पूरी तरह एकतरफा ही कहा गया था। लेकिन, उससे पहले जब कृष्णमुरारी मोघे चुनाव जीते, तब जरूर कांग्रेस ने भाजपा को खासी मशक्कत करवाई थी। उसी का नतीजा था कि मोघे किनारे पर चुनाव जीते थे। पर, इस बार चुनाव की फिजां बदली-बदली सी है!
इसके पीछे भी दो कारण नजर आ रहे है! पहला यह कि कांग्रेस ने करीब दो साल पहले ही संजय शुक्ला की उम्मीदवारी की घोषणा कर दी थी। जबकि, भाजपा को अपना उम्मीदवार तय करने में खासी रस्साकशी करना पड़ी। भाजपा के पास दावेदारों की कमी नहीं थी, पर भाजपा ने कुछ अलग करने की कोशिश में पुष्यमित्र भार्गव को मुकाबले में उतारा! ये फैसला भी आसानी से नहीं हुआ! जिस तरह की कवायद हुई, उसने दावेदारों के दिलों पर खरोंच जरूर डाल दी। इस खींचतान में भाजपा उम्मीदवार को प्रचार के लिए सिर्फ 20 दिन का समय मिला। भाजपा ने नए चेहरे को टिकट दिया, जिसे इंदौर की जनता ने नेता के रूप में नहीं देखा। इसके पीछे कोई राजनीतिक मज़बूरी थी या रणनीति ये किसी को आजतक समझ नहीं आया!
भाजपा को पिछले चुनाव में अच्छा जनसमर्थन मिला है, इसलिए उसके उम्मीदवार के लिए महापौर का चुनाव जीतना मुश्किल नहीं था, बशर्त चेहरा पहचाना होता! भाजपा के टिकट के दावेदारों की लिस्ट में कम से कम आधा दर्जन नेता ऐसे थे, जिनके लिए ये चुनाव इतना मुश्किल नहीं था, जितना पूरे चुनाव प्रचार के दौरान दिखाई दिया। ऐसी स्थिति में भाजपा उम्मीदवार पुष्यमित्र भार्गव की जीत पूरी तरह शहर के दो विधानसभा क्षेत्रों के कंधों पर टिकी है। ये क्षेत्र हैं विधानसभा क्षेत्र क्रमांक-2 जहां से रमेश मेंदोला विधायक हैं। उन्होंने 2018 का चुनाव 71011 वोटों से जीता था। दूसरा क्षेत्र है विधानसभा क्षेत्र क्रमांक-4 जहां से मालिनी गौड़ ने 2018 का चुनाव 43090 वोटों से जीता। यही दो विधानसभा क्षेत्र हैं, जहां से मिलने वाली बढ़त भाजपा के महापौर उम्मीदवार की राह आसान करेगी। लेकिन, कहा नहीं जा सकता कि ये दोनों भाजपा विधायक खुद को मिले वोट पुष्यमित्र को पूरी तरह ट्रांसफर करवा सकेंगे। चार साल बाद ये संभव भी नहीं है।
रमेश मेंदोला की क्षेत्र क्रमांक-2 में अपनी पकड़ है और पार्टी से हटकर उनका अपना भी जनाधार है। जबकि, क्षेत्र क्रमांक-4 से मालिनी गौड़ को महापौर चुनाव में बढ़त मिलने का कारण उनका उस दौरान महापौर होना भी रहा। अब वे अपनी बढ़त को पुष्यमित्र के लिए कितना फ़ायदा दे पाती हैं, सभी की नजरें इस पर हैं। विधानसभा क्षेत्र क्रमांक-3 से आकाश विजयवर्गीय ने 5751 वोटों से चुनाव जीता था और क्षेत्र क्रमांक-5 से महेंद्र हार्डिया 2018 का चुनाव सिर्फ 1133 वोटों से जीते थे। इसलिए इन दोनों क्षेत्रों में बढ़त बहुत ज्यादा होगी, इसका अनुमान नहीं है!
कांग्रेस उम्मीदवार संजय शुक्ला के लिए आसान बात ये रही कि पार्टी ने उनका नाम करीब दो साल पहले घोषित कर दिया था, जब कमलनाथ सरकार के कार्यकाल में नगर निकाय चुनाव की हलचल हुई थी। उनके नाम को लेकर पार्टी में कोई मतभेद भी नहीं था। वे इंदौर के क्षेत्र क्रमांक-1 से विधायक भी हैं। उनका अपना संपर्क दायरा इसलिए भी बड़ा है, क्योंकि उनके पिता विष्णुप्रसाद शुक्ला और भाई गोलू शुक्ला दोनों भाजपा से जुड़े हैं। पिता तो ‘बड़े भैया’ के नाम से बरसों से शहर में जाने-जाते हैं। चुनावी साधन-सम्पन्नता के मामले में भी वे भाजपा उम्मीदवार पुष्यमित्र भार्गव पर भारी हैं, जो चुनाव में भी दिखाई दिया।
संजय शुक्ला को क्षेत्र क्रमांक-1 से बढ़त मिलने का अनुमान लगाया जा रहा है। क्योंकि, वे इस क्षेत्र से विधायक हैं और उनका पिछले चार साल का कार्यकाल भी संतोषजनक रहा है। उनके पास अपने समर्थकों की भी अपनी फ़ौज है। उनके प्रचार में कांग्रेस का बहुत बड़ा योगदान भी दिखाई नहीं दिया। इसके अलावा राऊ विधानसभा भी कांग्रेस के पास है। वहां के कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी ने भी पार्टी के महापौर उम्मीदवार के पक्ष में अच्छा माहौल बनाया। कांग्रेस को इसके अलावा क्षेत्र क्रमांक-3 और क्रमांक-5 से बढ़त मिलने का अनुमान लगाया जा रहा है। क्षेत्र-3 शहर के प्रतिष्ठित कारोबारी लोगों का इलाका है। जबकि, क्षेत्र-5 में खजराना और मूसाखेड़ी जैसी मुस्लिम बस्तियां हैं,
जिनका कांग्रेस के पक्ष में रहना तय है। इस विधानसभा क्षेत्र से भाजपा ने विधानसभा चुनाव सिर्फ 1133 वोटों से चुनाव जीता था।
जिस तरह से दोनों उम्मीदवारों ने चुनाव प्रचार किया, फ़िलहाल निश्चित रूप से कह पाना मुश्किल है, कि पलड़ा किसकी तरफ ज्यादा झुकेगा। क्योंकि, दोनों उम्मीदवारों के पास अपनी जीत के दावे करने के सशक्त आधार हैं। भाजपा के पुष्यमित्र भार्गव को चुनाव जिताने के लिए मुख्यमंत्री समेत कई बड़े नेता लगे रहे। साथ ही भाजपा के पिछले चार महापौरों के कार्यकाल का सकारात्मक पक्ष भी भाजपा उम्मीदवार के खाते में दर्ज होगा! लेकिन, इन महापौरों के कार्यकाल की खामियों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता! सम्पति कर, जल कर और कचरा संग्रहण शुल्क में अनाप-शनाप बढ़ोतरी के अलावा नर्मदा के पानी का असामान्य वितरण भी पूरे चुनाव प्रचार के दौरान छाया रहा!
चुनाव प्रचार का सबसे दिलचस्प पहलू रहा ‘पीली गैंग’ की कार्रवाई का चुनावी मुद्दा बनना। कांग्रेस उम्मीदवार ने इसे अपने प्रचार का प्रमुख मुद्दा बनाया, जिसे जनसमर्थन भी मिला। सब्जी और फल बेचने वालों के ठेलों को तोड़े जाने की नगर निगम की कार्रवाई को उन्होंने अनुचित बताया और वादा किया कि वे इससे मुक्ति दिलाएंगे! जबकि, भाजपा चुनावी माहौल में भी नगर निगम की इस कार्रवाई पर अंकुश नहीं लगा सकी। व्यापारियों के लिए नगर निगम से बनने वाले ट्रेड लाइसेंस को संजय शुक्ला ने मुफ्त करने का वादा करके उन्हें भी खुश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कांग्रेस ने स्मार्ट सिटी योजना में सड़क चौड़ीकरण में लोगों को टीडीआर (ट्रांसफर डेवलपमेंट राइट्स) न देने को भी चुनावी मुद्दा बनाया और वादा किया कि इस दिशा में कार्रवाई करेंगे। जबकि, भाजपा अपने चुनाव घोषणा पत्र में भी ये वादा नहीं कर सकी।
इसमें शक नहीं कि विपक्ष में होने के कारण संजय शुक्ला के पास मुद्दों और वादों की कमी नहीं रही! लेकिन, भाजपा उम्मीदवार का कोई जवाबी वादा न करना आश्चर्यजनक रहा! भाजपा के घोषणा पत्र में भी प्रभावित करने वाला कोई ऐसा पक्ष दिखाई नहीं दिया, जो मतदाता को आकर्षित करे। यहां तक कि जब संजय शुक्ला ने शहर में 5 फ्लाईओवर अपनी जेब से बनवाने का वादा किया, तो भी भाजपा ने उसका सटीक जवाब नहीं दिया। कैलाश विजयवर्गीय से जब मीडिया ने इस बारे में सवाल किया तो उन्होंने भी इसे बचकानी बात कहकर टाल दिया। लेकिन, लोगों ने इस वादे की प्रशंसा जरूर की। कोरोना मृतकों 20-20 हज़ार देने के उनके वादे ने भी एक वर्ग को प्रभावित किया है। अब चुनाव प्रचार थम गया और मतदाता अपना मानस बनाने में लगा है। उसे ही तय करना है कि कौन उसके लिए ज्यादा बेहतर महापौर साबित होगा।