

Indore Media Conclave 2025: ‘अखबारों से सिमटता साहित्य’ विषय पर मंत्री सिलावट, मीडियावाला की एक्जीक्यूटिव एडिटर डॉ स्वाति तिवारी सहित वरिष्ठ पत्रकारों ने विचार रखें
इंदौर। Indore Media Conclave 2025: इंदौर प्रेस क्लब दौरा आयोजित पत्रकारिता महोत्सव इंदौर मीडिया कॉन्क्लेव 2025 में एक सत्र’अखबारों से सिमटता साहित्य’
पर आयोजित हुआ। इस विषय पर प्रदेश के जल संसाधन मंत्री तुलसीराम सिलावट, मीडियावाला की एक्जीक्यूटिव एडिटर डॉ स्वाति तिवारी,दैनिक जागरण दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार अनन्त विजय,एनडीटीवी इंडिया के सीनियर एक्जीक्यूटिव एडिटर प्रियदर्शन और वरिष्ठ पत्रकार निर्मला भुराडिय़ा ने विचार रखें।
इस अवसर पर जल संसाधन मंत्री तुलसीराम सिलावट ने कहा कि इंदौर में इस तरह के आयोजन होना केवल सराहनीय नहीं बल्कि प्रशंसनीय भी हैं। इंदौर की पहचान साफ-सुथरे शहर से बढ़कर देश में भाषाई पत्रकारिता के क्षेत्र में भी है। मीडिया कॉन्क्लेव से जो निष्कर्ष निकलेगा उसका प्रभाव देश-दुनिया की पत्रकारिता पर भी पड़ेगा।
दैनिक जागरण दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार अनन्त विजय ने कहा कि हमें सबसे पहले यह समझना होगा कि हम साहित्य किसे मान रहे हैं। सिनेमा, रंगमंच, लघुकथा क्या यही साहित्य हैं। आज देश में स्वतंत्र रूप से लिखने वालों की कमी हो गई है। अगर हम यह सोचें कि साहित्य के नाम पर अखबारों में फूहड़ता लिखें तो सच में स्थान की कमी हो गई है। अगर घटिया साहित्य को ही लेखन मान लिया जाएगा तो बचेगा क्या। उन्होंने कहा कि लेखन में आज गुणवत्ता की कमी है। हरीशंकर परसाई, शरद जोशी, श्रीलाल शुक्ल जैसे कितने ही मूर्धन्य साहित्यकार हैं, जिनका आज भी तोड़ नहीं हैं। अगर हम अपनी लेखनी पर स्वयं ध्यान देकर सब आरोप अखबारों पर लगा देंगे तो यह ज्यादती होगी।
एनडीटीवी इंडिया के सीनियर एक्जीक्यूटिव एडिटर प्रियदर्शन ने कहा कि आजादी की जंग में पत्रकारिता की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यह पत्रकारिता जेलों में गढ़ी गईं और उसका अपना संघर्ष रहा है। समय और काल के साथ पत्रकारिता में बड़ा बदलाव आया है, जिससे साहित्य का स्थान अपने आप कम हो गया। आज की कविताओं में न कविता है और ना ही गजल में गजल है। कहानियों से कहानी गायब जो साहित्य के लिए चिंतनीय है। जीवन की घटनाओं से साहित्य का जन्म होता है और साहित्य का अपना दृष्टिकोण भी होता है। वक्त के साथ पत्रकारिता और साहित्य दोनों के दृष्टिकोण बदल गए। आज का साहित्य रसहीन है। आज अखबार तो पढ़े जा रहे हैं, लेकिन मुद्दे की बात यह है कि उसमें छप क्या रहा है। एक दौर था जब पत्रकारिता ही साहित्य का हिस्सा हुआ करती थी। फिर पत्रकारिता में साहित्य का दौर आया और आज दोनों की धुरी अलग-अलग है।
वरिष्ठ साहित्यकार एवं मीडियावाला न्यूज़ पोर्टल की एग्जीक्यूटिव एडिटर डॉ. स्वाति तिवारी ने कहा कि एक दौर था, जब अखबार भी साहित्य का हिस्सा हुआ करते थे, लेकिन समय के साथ इसमें भी बदलाव आया। अब पत्रकारिता से साहित्य कम होता जा रहा है। किसी घटना को देखकर साहित्यकार जो सृजन करता था, उसमें संवेदना हुआ करती थी। यह संवेदना ही समाज को गति प्रदान करती थी, लेकिन आज के साहित्य में संवेदना गायब है। साहित्य की किसी भी विधा की रचना में संवेदना को बचाना जरूरी है, तभी सही मायनों में साहित्य बच सकेगा। आज का समय कॉपी पेस्ट व कट पेस्ट का है और साहित्य में भी यही सब हो रहा है। यही कारण है कि अखबारों से साहित्य कम होता जा रहा है।
वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार निर्मला भुराडिय़ा ने कहा कि साहित्य से मनुष्य में चेष्टा जागृत होती थी, लेकिन समय के साथ यह कम हो गई। अखबारों से साहित्य में कमी आई जो चिंता की बात है। कार्पोरेट कल्चर आने के बाद पत्रकारिता से साहित्य दिनों-दिन गुम होता जा रहा है। युवाओं का ध्यान भी साहित्य पर नहीं है, जो चिंतनी है। एक दौर था जब युवाओं में साहित्य के प्रति ललक होती थी, आज यह सब खत्म हो गई। कार्यक्रम मॉडरेट डॉ. अमिता नीरव थी। कार्यक्रम में विशेष रूप से उपस्थित नईदुनिया के स्टेट एडिटर सद्गुरुशरण अवस्थी एवं संपादक डॉ. जितेन्द्र व्यास और नवभारत समूह के संपादक क्रांति चतुर्वेदी का स्वागत भी किया गया।
अतिथियों का स्वागत मुकेश तिवारी, डॉ. कमल हेतावल, सुधाकर सिंह, विनिता तिवारी, संध्या राय चौधरी ने किया। प्रतीक चिन्ह व्योमा मिश्रा, अलका सैनी, वैशाली शर्मा और स्मृति आदित्य ने प्रदान किए। कार्यक्रम का संचालन डॉ. अर्पण जैन ने किया।