

Indore’s Bad Traffic System : देश के सबसे स्वच्छ शहर पर बदहाल यातायात व्यवस्था के धब्बे!
Indore : शहर का अस्त-व्यस्त ट्रैफिक सड़क पर चलने वालों के लिए दिनों-दिन मुसीबत बन रहा है। जिस रास्ते पर निकल जाओ वाहनों की बेतरतीब भीड़, नियमों का खुलेआम उल्लंघन, फुटपाथों पर कब्जा, खुदे पड़े रास्ते और यातायात पुलिस नदारद। कब दुर्घटना का शिकार होकर कोई अस्पताल पहुंच जाए, कहा नहीं जा सकता।
लाखों के कैमरे चौराहों पर लगा कर यातायात पुलिस को बेफिक्र कर दिया गया। पता नहीं वे चौराहे के किस कोने में कौन से काम में व्यस्त रहते हैं? यातायात को दुरुस्त करने के लिए कागजों पर योजनाएं खूब बन रही हैं। लेकिन, एक भी योजना कारगर साबित होती नहीं दिख रही। महानगर बनने की दौड़ में शामिल प्रदेश की व्यावसायिक राजधानी इंदौर की सड़कों पर चलना और वाहन चलाना हंसी खेल नहीं है।
फुटपाथ पर दुकान वालों का कब्जा है, इसलिए पैदल चलने वालों को वाहनों के बीच रास्ता तलाश कर सड़कों पर चलना पड़ रहा है। ऐसे में तेज रफ़्तार दौड़ते वाहनों की चपेट में आने का जोखिम हर पल बना रहता है। आए दिन नागरिक सड़क दुर्घटनाओं में घायल होकर अस्पताल भी पहुंच रहे हैं। यातायात पुलिस को तो पता भी नहीं चल पाता कि सड़क दुर्घटना में घायल कोई अस्पताल भी पहुंच चुका है।
शहर की प्रयोगशाला बना चौराहा
मधुमिलन चौराहे का हाल तो इंदौर में रहने वाला हर नागरिक अच्छी तरह से जानता ही है। इसलिए इस रास्ते से गुजरने में डरता है कि कहीं किसी वाहन की चपेट में न आ जाए। छह रास्तों वाले इस चौराहे को जिम्मेदार अधिकारियों ने प्रयोगशाला बनाकर रख दिया। यातायात को सुधारने के अब तक न जाने कितने प्रयोग यहां किए जा चुके हैं। लेकिन, एक भी सफल नहीं हो सका है। यह चौराहा जिस आरएनटी मार्ग पर है, उसे नगर निगम आदर्श सड़क बनाना चाहता है। सड़क कब तक आदर्श बन सकेगी, यह कोई नहीं जानता।
सबसे बदहाल बंगाली चौराहा
रिंग रोड का बंगाली चौराहा शहर के बदहाल इलाक़ों में से एक है। यहां ओवर ब्रिज बनने के बाद ट्रैफिक पुलिस ने यह समझ लिया कि यहां की सारी समस्या हल हो गई। जबकि, उससे बढ़ी ज्यादा है। अब यहां कोई ट्रैफिक जवान नजर नहीं आता। कनाड़िया रोड की तरफ से आने वाले और जाने वाले ट्रैफिक पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं है। ओवर ब्रिज की सर्विस रोड भी भगवान भरोसे है। ऐसे में सिटी बसों ने खड़े होकर ट्रैफिक की जान निकाल ली। खजराना की तरफ से आकर पिपलियाहाना की तरफ जाने वाली सिटी बसें दिनभर बंगाली चौराहा आकर सर्विस रोड में घुसते ही खड़ी हो जाती है, जिससे सबसे ज्यादा परेशानी है। इन्हें चौराहे से 100 मीटर दूर खड़ा किया जाए, तो सर्विस रोड के ट्रैफिक को सहूलियत होगी। पर, यहां कोई जवान तक दिखाई नहीं देता। कभी कोई आता भी है, तो वह ब्रिज के नीचे सुस्ताता नजर आता है।
एकांगी मार्ग घोषित, पर है नहीं
ऐसे ही हाल शहर के अनेक हिस्सों में हैं। आश्चर्य की बात यह है कि यातायात पुलिस अपने ही बनाए नियमों का पालन करवाने में भी सफल नहीं हो पा रही है। इसका एक उदाहरण देखिए, शहर के पश्चिम क्षेत्र में उर्दू स्कूल से कलेक्टर ऑफिस चौराहे वाला करीब 500 मीटर का रास्ता सालों से एकांगी मार्ग घोषित है। यानी उर्दू स्कूल की ओर से कलेक्टर ऑफिस चौराहे की ओर वाहन ले जाना प्रतिबंधित है।
हालत यह है कि इस मार्ग पर पूरे दिन इस नियम की धज्जियां उड़ रही हैं। कोई देखने वाला नहीं है। रजिस्ट्रार ऑफिस और उससे जुड़े काम करवाने वालों के ऑफिसों के बाहर लगा कारों और दुपहिया वाहनों का जमावड़ा भी सुगम यातायात में व्यवधान डाल रहे हैं। बड़े वाहन तक इस रास्ते पर नियम तोड़कर दौड़ते देखे जा सकते हैं।
इसे क्या कहें
आश्चर्य की बात यह है कि इसी रोड पर कलेक्टर ऑफिस भी है। दिन में कम से कम दो बार कलेक्टर सहित अनेक बड़े अधिकारी यहां से गुजरते हैं, लेकिन सालों से हो रहे नियम के इस उल्लंघन पर किसी ने नोटिस नहीं लिया। खेद की बात यह भी है कि कलेक्टर ऑफिस से निकलने वाली गाड़ियां भी पलसीकर कॉलोनी या महू नाके की ओर जाने के लिए कम से कम 20-25 मीटर एकांगी मार्ग पर चलती हैं। अब इसे क्या कहें?
बदहाल यातयात में मुसीबत की जड़ ई-रिक्शा
ई-रिक्शा के बेतहाशा परमिट बांटकर जिम्मेदारों ने मुसीबत मोल ले ली। चाहे जहां खड़े होकर सवारियां बैठाना, कहीं भी खड़े होकर सवारियों की राह देखना और यात्री वाहनों को लोडिंग वाहन की तरह उपयोग करना इनका शगल है। ई-रिक्शे पर उसके वजन से कहीं अधिक भार ढ़ोते शहर की सड़कों पर कभी भी देखा जा सकता है। राजबाड़े पर ऑटो रिक्शा, ई-रिक्शा और बड़े वाहन प्रतिबंधित हैं, लेकिन ई-रिक्शा जुगाड़ लगाकर इस प्रतिबंधित क्षेत्र में घुसपैठ कर ही लेते हैं।
ई-रिक्शा वालों ने तो इस नियम का तोड़ भी निकाल लिया है, प्रतिबंधित क्षेत्र से बाहर तो उन्हें खड़े रहने से कोई नहीं रोक सकता। पुरानी अहिल्या लायब्रेरी (अब ध्वस्त) के नीचे इतने ई-रिक्शा वाले सवारियों से सौदे करते दिख जाएं तो हैरत नहीं होगी। वहां खड़े होने से उन्हें कोई यातायात पुलिस कर्मी नहीं रोकता। शहर को स्वच्छता में नंबर एक बनाने में जितना जोर लगाया है, उतना ही शहर के यातायात को दुरुस्त करने में लगाना जरूरी है। वरना देश के सबसे साफ़ शहर को देखने आने में लोग बिदकेंगे। जो लोग यहां से लौटेंगे उनके साथ शहर की अच्छी यादें नहीं होंगी।