अंतरराष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच की  पहल: काव्य चौपाल का शुभारम्भ

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अंतरराष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच की  पहल:काव्य चौपाल का शुभारम्भ
कार्यक्रम में 22 कवियों ने अपनी कविताएं प्रस्तुत की

भोपाल: दिनांक 28 सितंबर अंतरराष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच की मध्य प्रदेश इकाई के के द्वारा प्रीत एक्या फाउंडेशन हॉल में आयोजित
काव्य चौपाल का उद्घाटन करते हुए संस्था की अध्यक्ष संतोष श्रीवास्तव ने काव्य चौपाल के उद्देश्यों को बताया -काव्य चौपाल के अंतर्गत कविताओं एवं साहित्य की सभी विधाओं पर प्रतिमास चर्चा होगी। यह लेखको की रचनाओं के आदान-प्रदान का एक माध्यम होगा।उद्घाटन मध्य प्रदेश लेखक संघ के अध्यक्ष राजेंद्र गट्टानी रामायण केंद्र के निदेशक डॉ राजेश श्रीवास्तव,गोकुल सोनी की महत्वपूर्ण उपस्थिति में संपन्न हुआ ।
कार्यक्रम में 22 कवियों ने अपनी कविताएं प्रस्तुत की।
राजेंद्र गट्टानी ने आस्तीन कुर्ते की अब कुछ ढीली सिलवाता हूँ मैं/जो भी रहना चाहें कोई फसस्म फस्सा नहीं रहे । सुना कर श्रोताओं का मन मोह लिया
वहीं संतोष श्रीवास्तव ने अपनी
गज़ल “रुक गई मैं सांस लेने को चढ़ाई देखकर /चीटियों को देखती हूं, चीटियां चलती रहीं ।
सुना कर खूब तालियां बटोरी।
रंजना शर्मा ने नीर नयन में लिए सखि तुम /खड़ीं द्वार पर आस लिए /तुम कौन विरह की देवी हो /रति के स्थान विराग किए।
विनीता राहूरिकर ने दुख में भीगे मन के कागज़/
सूख गई कलम की स्याही/
बीच विरह की लंबी रात है/
कैसे मिलन के गीत लिखूँ./.
महिमा वर्मा श्रीवास्तव ने चाँद पर दोहे सुनाए
रात अमा की बावरी बैठी रहे उदास
ओढ़े काली चूनरी,चंदा पिया न पास
नीलिमा रंजन ने हे पितृगण विशेष!!
नमन है आपकी दिव्य ज्योति को।
रानी सुमिता ने हे बुद्ध !अपलक ताकती हूँ
ध्यान की तुम्हारी वैदुष्य मुद्रा को आह कैसी असीम शांति
एकचित एकाग्र एकांत !ऐसे ही ध्यानरत डूबने को जी चाहता है!
कमल चंद्रा ने पलकों की डोरी पर अहसास की क्लिप से
टांग रही थी सपने।
गोकुल सोनी ने रेत पर नाम लिख कर मिटाते हो क्यों/
मन में मूरत बसी है न मिट पायेगी /
खत जो तुमने लिखे धड़कनों में बसे/
प्यार की वो इबारत किधर जायेगी/गीत सुना कर सबको प्रेम से सराबोर कर दिया।
जया केतकी ने कोलकाता के मौमिता देबनाथ कांड पर लिखी कविता
दहकते धधकते यौवन को सँभाले वह/
एकटक देख रही थी ।सुना कर माहौल गमगीन कर दिया।
डॉ.राजेश श्रीवास्तव ने
कितना मुश्किल रहा होगा तुम्हारा ईश्वर होना
कि बड़े इम्तहान तुमने भी दिए
इतनी कठिन परीक्षा कभी न हुई किसी की।
मधुलिका सक्सेना ने मैं बाँध समय को रखता हूँ /
मैं नहीं गुजरते देता हूँ/
विजयकांत वर्मा ने
बन जाओ युवा तुम भागीरथ/
नदियों को दर्द से उबार दो/
सैकड़ों विलुप्त सुप्त गुमनाम
नदियों का भाग्य/ फिर संवार दो।
चंदा पालीवाल ने हमारे पितरों….
हम तुम्हें नमन करते हैं..!
दे काग को भोजन….
यादों तर्पण करते हैं…..!
मनोरमा पंत ने किसी ने मुझसे पूछा ,दर्द क्या है
मैंने कहा ,जाओ हिमालय से पूछो जो खंड खंड बिखर रहा है।
शेफालिका श्रीवास्तव ने नेपथ्यनेपथ्य से आती आवाज़ें सुन /
अतीत में झाँकना व सुननासुहाना लगता है /जीवन का किरदार समझ में आता है ।
सरस्वती वंदना अंजना श्रीवास्तव ने गई एवं संचालन विनीता राहुरीकर ने किया।
प्रस्तुति
संतोष श्रीवास्तव

Hindi Fortnight : भाषाएं सिर्फ अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं, भावनाओं का भी जरिया! /