

Insensitive Comment on Rape : दुष्कर्म पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की असंवेदनशील टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट असहमत, फैसले पर रोक!
हाईकोर्ट ने कहा था ‘नाबालिग का ब्रेस्ट पकड़ना, नाड़ा तोड़ना दुष्कर्म नहीं!’
New Delhi : इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी, जिसमें हाई कोर्ट ने कहा था कि नाबालिग लड़की के ब्रेस्ट पकड़ना और उसके पायजामे के नाड़े को तोड़ना दुष्कर्म या दुष्कर्म का प्रयास नहीं है। यह बहुत गंभीर मामला है और जिस जज ने यह फैसला दिया, उसकी तरफ से बहुत असंवेदनशीलता दिखाई गई। हमें यह कहते हुए बहुत दुख है कि फैसला लिखने वाले में संवेदनशीलता की पूरी तरह कमी थी।
जस्टिस बीआर गवई और एजी मसीह की बेंच ने बुधवार को इस मामले की सुनवाई की। बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट के ऑर्डर में की गई कुछ टिप्पणियां पूरी तरह असंवेदनशील और अमानवीय नजरिया हैं। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य पक्षों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही है। कुछ फैसलों को रोकने के कारण होते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने एक दिन पहले इस मामले पर खुद नोटिस लिया। एक दिन पहले मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर खुद सुनवाई करने का फैसला किया। इस फैसले पर कानूनी विशेषज्ञों, राजनेताओं और अलग-अलग क्षेत्रों के एक्सपर्ट्स के विरोध के बाद सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा था। पहले इस केस पर दायर एक याचिका पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कि था। याचिका में जजमेंट के विवादित हिस्से को हटाने की मांग की गई थी।
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हाई कोर्ट ने ये टिप्पणी की थी
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा था कि किसी लड़की के निजी अंग पकड़ना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ देना और जबरन उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश से रेप या ‘अटेम्प्ट टु रेप’ का मामला नहीं बनता। सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने ये फैसला सुनाते हुए 2 आरोपियों पर लगी धाराएं बदल दीं। वहीं 3 आरोपियों के खिलाफ दायर क्रिमिनल रिवीजन पिटीशन स्वीकार की थी। हाईकोर्ट ने कहा था कि आरोपियों पर ‘अटेम्प्ट टु रेप’ का चार्ज हटाया जाए। उन पर यौन उत्पीड़न की अन्य धाराओं के तहत केस चलाने का आदेश दिया था।
यह था 3 साल पुराना मामला
कासगंज की एक महिला ने 12 जनवरी, 2022 को कोर्ट में एक शिकायत दर्ज कराई थी। उसने आरोप लगाया था लगाया कि 10 नवंबर, 2021 को वह अपनी 14 साल की बेटी के साथ कासगंज के पटियाली में देवरानी के घर गई थी। उसी दिन शाम को अपने घर लौट रही थी। रास्ते में गांव के रहने वाले पवन, आकाश और अशोक मिल गए। पवन ने बेटी को अपनी बाइक पर बैठाकर घर छोड़ने की बात कही। मां ने उस पर भरोसा करते हुए बाइक पर बैठा दिया। लेकिन, रास्ते में पवन और आकाश ने लड़की के प्राइवेट पार्ट को पकड़ लिया। आकाश ने उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास करते हुए उसके पायजामे की डोरी तोड़ दी। लड़की की चीख-पुकार सुनकर ट्रैक्टर से गुजर रहे सतीश और भूरे मौके पर पहुंचे। इस पर आरोपियों ने देसी तमंचा दिखाकर दोनों को धमकाया और फरार हो गए।
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पीड़ित की मां एफआईआर दर्ज कराने गई, लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। जब पीड़ित बच्ची की मां आरोपी पवन के घर शिकायत करने पहुंची, तो पवन के पिता अशोक ने उसके साथ गाली गलौज की और जान से मारने की धमकी दी। महिला अगले दिन थाने में एफआईआर दर्ज कराने गई। जब पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की, तो उसने अदालत का रुख किया।
21 मार्च 2022 को कोर्ट ने आवेदन को शिकायत के रूप में मानकर मामले को आगे बढ़ाया। शिकायतकर्ता और गवाहों के बयान रिकॉर्ड किए गए। आरोपी पवन और आकाश के खिलाफ IPC की धारा 376, 354, 354B और POCSO एक्ट की धारा 18 के तहत केस दर्ज किया गया। वहीं आरोपी अशोक पर IPC की धारा 504 और 506 के तहत केस दर्ज किया।
आरोपियों ने समन आदेश से इनकार करते हुए हाईकोर्ट के सामने रिव्यू पिटीशन दायर की। यानी कोर्ट से कहा कि इन आरोपों पर दोबारा विचार कर लेना चाहिए। जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की सिंगल बेंच ने क्रिमिनल रिवीजन पिटीशन स्वीकार कर ली थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 17 मार्च को मामले की सुनवाई की थी।