कहने और सुनने की दिलचस्प गलतफहमियां (Interesting Misconceptions About Saying And Hearing);
कहने और सुनने की गलतफहमियां भी कई बार दिलचस्प परिस्थितियां पैदा कर देती हैं । नौकरी की शुरुआत में जब हम प्रशासन अकादमी में ट्रेनिंग कर रहे थे , तब उत्सुकता वश उस अकादमी के पास की कॉलोनी के कुछ सीनियर अफसरों से जाकर मिला करते थे , ताकि नौकरी में फ़ील्ड की बारीकियों को समझ सकें । हमारे बैचमेट श्री डी डी अग्रवाल ने पता किया कि एक और डी डी अग्रवाल हैं , जो 1100 क्वार्टर्स में ही रहा करते थे , तो वे उनसे मिलने पहुँच गए ।
सुबह का समय था ,इन्होंने घंटी बजाई तो भाभी जी ने दरवाजा खोला और पूछा क्या काम है ? अग्रवाल जी बोले मुझे साहब से मिलना है , भाभी जी ने कहा आप का नाम ? अग्रवाल साहब बोले जी डी डी अग्रवाल । भाभी ने कहा क्या कहा ? अग्रवाल साहब फिर बोले “जी डी डी अग्रवाल” भाभी जी झुंझला कर बोलीं हां भाई डी डी अग्रवाल का ही मकान है आप अपना नाम बताओ ? अग्रवाल साहब ने फिर इत्मीनान से बताया कि मैं भी डी डी अग्रवाल ही हूँ , तब भाभी जी भी हंसीं और बाद में जब डी डी सर को बताया तो वो भी खूब हंसे ।
समझने के फेर का एक और वाक़या है । मेरी ससुराल बुंदेलखंड में है , शादी के कुछ दिन बाद ही ससुराल में श्रीमती जी के चचेरे भाई की शादी तय हुई और मुझे बड़े आग्रह पूर्वक बारात में शामिल होने बुलाया गया । बारात एक बस में जाने वाली थी , मैं कुछ देर अपनी सीट पर बैठा फिर मुझे लगा कि पैर सुन्न हो रहे हैं तो अपनी सीट से उठ कर बीच में खड़ा हो गया , तभी एक सज्जन पीछे से आये और मुझसे बोले “मांय को कढ़ जाओ” मुझे कुछ समझ नहीं आया , उन्होंने फिर दोहराया “मांय को कढ़ जाओ” ।
उन सज्जन के हाथों में खाने पीने का सामान था , मुझे लगा शायद ये मुझसे कुछ खाने पीने का पूछ रहे हैं , मैंने कहा जी नहीं मुझे कुछ नहीं चाहिए । उन्होंने फिर वही वाक्य दुहराया तभी बग़ल की सीट पर बैठे सज्जन ने बतलाया कि वे आपको एक तरफ हटने को कह रहे हैं , मैं थोड़ा झेंपा और एक तरफ हो गया । सुनने और समझने के फेर का एक और क़िस्सा डोंगरगढ़ का है , जहाँ मंत्री बनने के बाद पहली बार विधायक महोदय पधारे ।
उन दिनों गार्ड द्वारा सशस्त्र सलामी देने की प्रथा थी । सलामी के बाद हैड कांस्टेबल ने कहा “संतरी खड़ा रहेगा शेष गार्ड स्वस्थान “ । भोले भाले मंत्री जी ने स के स्थान पर म सुन लिया , सो वे वहीं खड़े रहे , और हम परेशान कि मंत्री जी हट क्यूँ नहीं रहे हैं , थोड़ी देर बाद एस डी ओ पी साहब ने जाकर उनके कान में कहा तब उन्होंने रेस्ट हाउस की ओर प्रस्थान किया । सो कभी कभी कुछ कहने-सुनने में भी मज़ेदार गलतफहमियां हो जाती हैं । आख़िर में इस मिज़ाज से मिलती जुलती ग़ालिब की एक ग़ज़ल पेशे ख़िदमत है , जो नुसरत फ़तह अली खान ने बड़ी मुहब्बत से गायी है ।
कहना ग़लत ग़लत , तो छुपाना सही सही
क़ासिद कहा जो उसने , बताना सही सही ।
ये सुबह सुबह चेहरे की , रंगत उड़ी उड़ी
कल रात तुम कहाँ थे , बताना सही सही ।
दिल ले के मेरा हाथ में , कहते हैं मुझसे वो
क्या लोगे इसका दाम , बताना सही सही ।
आँखें मिलाओ गैर से , दो हमको जाम ए मय
साकी तुम्हें कसम है , पिलाना सही सही ।
अय मय फरोश भीड़ है , तेरी दूकान पर
गाहक हैं हम भी , माल दिखाना सही सही ।
ग़ालिब तो जान ओ दिल से , फ़क़त आपका है बस
क्या आप भी हैं उसके , बताना सही सही ।