
Interesting story:अजगर करे न चाकरी,पंछी करे न काम, दास मलूका कह गए सबके दाता राम” कहाँ से बना ये जुमला?
प्रवीण दुबे बता रहे हैं इस जुमले की कथा —
हमारी पीढ़ी का शायद ही ऐसा कोई होगा, जिसे अपने घर में ये सुनने न मिला हो “सारा दिन अज़गर जैसे पड़े रहते हो” मुझे भी कभी अम्मा,कभी बाबूजी तो कभी दीदी लोगों से ये सुनने में मिला… मैं जवाब में चिपका देता था (सामने वाले का मूड देखकर वरना शर्तिया पिटना तय होता था) कि “अजगर करे न चाकरी,पंछी करे न काम, दास मलूका कह गए सबके दाता राम” कहाँ से बना ये जुमला..?
इसकी बड़ी दिलचस्प कथा है…मलूक दास जी का जन्म प्रयाग से लगभग 36 मील दूर गंगा के दाहिने किनारे पर बसे हुए कड़ा नामक कस्बे में हुआ था..इनकी एक कथा बड़ी प्रचलित है कि पहले ये संतों को सीधे आदर देने के बजाय उन्हें अपनी तर्क की कसौटी में कसते थे..एक बार इनके गाँव में कोई संत आए जिन्होंने राम नाम जपने की महिमा का बखान किया…मलूक दास जी पहुंचे उनके पास और बोले, बिना कुछ करे राम भोजन मुहैया करा देंगे क्या..? संत बोले ज़रूर करा देंगे…मलूक दास जवाब से संतुष्ट नहीं हुए..बोले मैं पूरे 24 घंटे कोई प्रयास नहीं करता… खुद से भी नहीं खाऊंगा… यदि भगवान् ने फिर भी मुझे भोजन करा दिया तो मैं आपको गुरू मान लूँगा,वरना आपको मेरे हिसाब से चलना होगा..संत राजी हो गए.

मलूक दास गए और एक जंगल में नदी किनारे वट वृक्ष के ऊपर बैठ गए..सोचा, दिन भर बैठेंगे… देखते हैं भगवान् यहाँ कैसे भोजन भेजेंगे..थोड़ी देर बाद उस जंगल में कुछ व्यापारी आए..देखा पेड़ की छाँव है.. पानी भी है, तो भोजन करने के लिहाज़ से सभी वहां रुक गए..अचानक डाकुओं के आने का शोर हुआ..सारे व्यापारी खाना छोड़कर भागे…डाकुओं के गिरोह ने देखा..सुदूर जंगल में इतना सुस्वादु दिख रहा भोजन..सभी भूखे थे..खाने पर टूट पड़ने ही वाले थे कि उनके सरदार को शक हुआ…इतने सघन जंगल में इतना ताज़ा और स्वादिष्ट भोजन..? कहीं खाने में ज़हर या नशीला पदार्थ तो नहीं मिला है.. डाकुओं को पकड़ने का जाल तो नहीं बिछाया गया है…? सरदार ने फ़ौरन हुक्म दिया कि आस-पास तलाशो ज़हर यदि मिला है, तो मिलाने वाला ज़रूर यहीं कहीं होगा..तलाशने में पेड़ के ऊपर बैठे मलूक दास जी मिल गए..उन्हें नीचे उतारा गया..सरदार ने परखने के लिए इन्हें कहा कि “सबसे पहले तुम खाओ खाना” बेचारे मलूकदास जी प्रभु को परखने के फेर में 24 घंटे भूखे रहने का संकल्प करके आए थे…बार बार मना करने लगे कि कुछ भी कर लो,भोजन करने को मत कहो..डाकुओं के सरदार का शक़ और गहरा गया..उसने अपने साथियों से कहा “इनको बलात खिलाओ,पूरा खाना..कोई चीज छूटे न” अब डाकू मलूकदास जी को खिलाते जाएँ और मलूकदास प्रभु की महिमा देख रोते जाएँ… उन्हें रोता देखकर डाकुओं के सरदार ने पूछा कि “ज़हर मिला खाना खाकर मरने के डर से रो रहे हो न ..?”
मलूकदास जी बोले, इस खाने में कोई ज़हर नहीं है…उन्होंने अपना सारा संकल्प और उसकी पृष्ठभूमि डाकुओं के सरदार को बताई…पूरी कहानी सुनकर डाकू भी भावुक हो गए और उन्हें आज़ाद कर दिया… मलूकदास जी ने प्रभु की महिमा देखकर सोचा कि जो घने जंगल में भी भोजन उपलब्ध करा दें वो हैं प्रभु…उस दिन के बाद से वे प्रभु सेवा में लीन हो गए और बहुत बड़े संत हुए..कई कालजई रचनाएँ भी उनकी हैं…कथा समाप्त हुई..आप चाहें तो अक्षत पुष्प मेरी वॉल पर छिड़क सकते हैं या फिर इसी फलसफे को अपना कर अज़गर की तरह पड़े भी रह सकते हैं..लेकिन शर्त यही है कि ईश्वर में आपका भरोसा अगाध होना चाहिए….जय हो [फेसबुक वाल से]

प्रवीण दुबे
वरिष्ठ पत्रकार ,भोपाल
फेसबुक वाल से




