International Tiger Day:बाघों की दहाड़ से गूंजा भारत: मध्य प्रदेश बना बाघों का सिरमौर

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International Tiger Day:बाघों की दहाड़ से गूंजा भारत: मध्य प्रदेश बना बाघों का सिरमौर

– राजेश जयंत

बाघ, भारत की जैव विविधता और प्राकृतिक संपदा के अभिन्न प्रतीक हैं। इनकी उपस्थिति न सिर्फ पारिस्थितिक संतुलन का संकेत देती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि हमारी भूमि, जंगल और नदियां कितनी स्वस्थ हैं। हाल के वर्षों में बाघों के संरक्षण की कहानी भारत में नई उम्मीद और अद्वितीय उपलब्धियों की गवाही देती है, जिसमें मध्यप्रदेश की भूमिका सबसे आगे है। देश के वन, सरकार, समाज और विज्ञान के अद्भुत तालमेल ने भारत को आज ‘टाइगर कैपिटल’ की पहचान दिलाई है।

*भारत में बाघ संरक्षण का सफर और Project Tiger*

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1973 में केंद्र सरकार ने जब ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ की नींव रखी, तब देश में सिर्फ 9 टाइगर रिजर्व थे। सतत संरक्षण प्रयासों के चलते जुलाई 2025 तक यह संख्या बढ़कर 58 टाइगर रिजर्व (लगभग 82,000 वर्ग किमी) हो गई, जो 18 राज्यों तक फैले हैं। इन संरक्षित क्षेत्रों ने न केवल बाघ, बल्कि पूरे वन्य जीवन के लिए सुरक्षित आश्रय और जैवविविधता के संरक्षण में बड़ी भूमिका निभाई।

*बाघों की संख्या: गिरावट से पुनरुत्थान तक*

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2006 में देश में सिर्फ 1,411 बाघ बचे थे, यह भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय था। मजबूत संरक्षण नीतियों, अवैध शिकार पर शिकंजा और स्थानीय समुदायों को जोड़ने से यह आंकड़ा 2018 में 2,967 हुआ और 2022 में रिकॉर्ड 3,682 तक पहुंच गया। एक सदी में जहां बाघों की आबादी एशिया भर में 97% घट गई थी, भारत इस संकट को सफलतापूर्वक पलटने वाला प्रमुख देश बना है।

*Madhya Pradesh: देश का Tiger State*

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मध्य प्रदेश ने बाघ संरक्षण को केवल आंकड़ों की बढ़ोतरी नहीं, बल्कि भूमि और पारिस्थितिकी आधारित संरक्षण मॉडल में भी बदल दिया। राज्य में 2006 में 300 बाघ थे, जो 2010 में घटकर 257 रह गए थे। लेकिन सतत प्रयासों, मैदान स्तर की अनुशासनिक रणनीति, गांवों के पुनर्वास और स्थानीय सहभागिता की वजह से 2022 तक यह संख्या 785 तक पहुंच गई, यानी 16 साल में 485 बाघों की शानदार बढ़ोतरी।

 

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एमपी के 9 टाइगर रिजर्व (कान्हा, बांधवगढ़, सतपुड़ा, पन्ना, संजय, पेंच, मेलघाट, वीरांगना दुर्गावती, रातापानी) जैव विविधता के सबसे समृद्ध क्षेत्र बन चुके हैं। पन्ना रिजर्व, जहां 2009 में एक भी बाघ नहीं था, अब पुनर्स्थापना व वैज्ञानिक पहल से 60+ बाघों की वापसी का अद्भुत उदाहरण बन गया है।

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*सुरक्षा उपाय और संरक्षण की राह*

– नए रिजर्व और पुराने क्षेत्रों का विस्तार

– गांवों के सुनियोजित पुनर्वास, जिससे अधिक जंगल, कम टकराव

– अत्याधुनिक तकनीकी निगरानी, जैसे-कैमरा ट्रैप, ड्रोन, सॉफ्टवेयर

– एन्टी-पोचिंग यूनिट्स, सतर्क प्रशासन

– स्थानीय समुदायों की भागीदारी और पारदर्शी मुआवजा नीति

 

*पर्यटन और बाघ सफारी में नया रोमांच*

बढ़ती बाघ संख्या ने मध्यप्रदेश, खासकर कान्हा, बांधवगढ़ और पन्ना में “टाइगर टूरिज्म” का नया दौर शुरू किया है। देश-दुनिया के सैलानी इन जंगलों की वाइल्डलाइफ सफारी का अनुभव लेने पहुंचते हैं। इससे राज्य में स्थानीय स्तर पर हजारों लोगों को रोज़गार मिला और गांवों में आर्थिक समृद्धि आई। टाइगर सफारी के दौरान वनों की जैव विविधता, पक्षियों और अन्य जीवों का संरक्षण संदेश भी सहज मिल जाता है।

 

*चुनौतियां*

बावजूद इन उपलब्धियों के, भारत अब भी वन क्षेत्र की कटान, वन्यजीव तस्करी, मानव-बाघ संघर्ष, सीमित संसाधन और जलवायु परिवर्तन जैसी गंभीर चुनौतियों से जूझ रहा है। बाघ गलियारों को जोड़ना, नए जंगल विकसित करना, सीमा पार अपराधों पर सख्ती लाना और स्थानीय वृत्तियों को और जागरूक करना जरूरी है।

 

*एक नजर में*

– 1973: 9 टाइगर रिजर्व, 2025: 58 टाइगर रिजर्व

– 2006: 1,411 बाघ, 2022: 3,682 बाघ

– मध्यप्रदेश: 2006 में 300, 2022 में 785 बाघ (कुल में सबसे आगे)

– पन्ना में 0 से 60+ बाघ

– संरक्षण की मिसाल- गांव पुनर्वास, तकनीक, जनभागीदारी

– चुनौतियां- कटा जंगल, शिकार, तस्करी, संघर्ष

*अपनी बात*

भारत ने बाघ संरक्षण के क्षेत्र में जो अविस्मरणीय छलांग लगाई है, उसमें मध्यप्रदेश का योगदान राष्ट्रीय गौरव और वैश्विक प्रेरणा का विषय बना है। यह साबित करता है कि यदि शासन, विज्ञान और समाज मिलकर और भूमि व प्रकृति के साथ तालमेल में काम करें, तो न सिर्फ बाघ, बल्कि पूरी प्रकृति को बचाया जा सकता है। आज ज़रूरत है सतत प्रयास, जागरूकता और कड़ी निगरानी की, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी जंगल के वास्तविक राजा की दहाड़ सुन सकें।