Investigation is Not Necessary Before FIR : शासकीय सेवकों पर FIR से पहले मामले की जांच जरूरी नहीं, SC के आदेश से झटका लगा!

भ्रष्टाचार से जुड़े मामले में प्रारंभिक जांच का बहाना बनाकर कई कर्मचारी कार्रवाई से बच रहे!

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Investigation is Not Necessary Before FIR : शासकीय सेवकों पर FIR से पहले मामले की जांच जरूरी नहीं, SC के आदेश से झटका लगा!

New Delhi : सरकारी कर्मचारियों पर एफआईआर से पहले मामले की जांच की जरूरत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से कर्मचारियों को बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश उन सभी कर्मचारियों के लिए एक बड़ा झटका है, जो भ्रष्टाचार से जुड़े मामले में एफआईआर दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच का बहाना बनाकर अपने खिलाफ कार्रवाई से बच रहे थे।

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि भ्रष्टाचार के आरोपी लोक सेवक के खिलाफ मामला दर्ज करने (एफआईआर) के लिए प्रारंभिक जांच करना अनिवार्य नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि किसी भी सरकारी सेवक के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आने वाले किसी भी मामले में प्राथमिकी दर्ज करने से पहले उसके खिलाफ शुरुआती जांच कराना जरूरी नहीं है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में एफआईआर दर्ज करने से पहले किसी भी आरोपी के पास प्रारंभिक जांच का दावा करने का कोई कानूनी अधिकार भी नहीं हो सकता है।

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि यह स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आने वाले मामलों सहित कुछ श्रेणियों के मामलों में प्रारंभिक जांच वांछनीय है। पर, यह न तो आरोपी का कानूनी अधिकार है और न आपराधिक मामला दर्ज करने के लिए कोई जरूरी शर्त है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक कोर्ट ने कहा कि जब किसी सूचना से संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तब एफआईआर से पहले प्रारंभिक जांच अनिवार्य नहीं होती है। लेकिन, मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर जांच एजेंसी के लिए यह पता लगाना जरूरी है कि सरकारी सेवक द्वारा किया गया अपराध संज्ञेय है या नहीं। शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रारंभिक जांच का उद्देश्य प्राप्त सूचना की सत्यता को सत्यापित करना नहीं है, बल्कि केवल यह पता लगाना है कि क्या उक्त सूचना से संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है या नहीं।

इस तरह की जांच का दायरा स्वाभाविक रूप से संकीर्ण और सीमित है, ताकि अनावश्यक उत्पीड़न को रोका जा सके और साथ ही यह सुनिश्चित किया जा सके कि संज्ञेय अपराध के वास्तविक आरोपों को मनमाने ढंग से दबाया न जाए। इस प्रकार, यह निर्धारण कि प्रारंभिक जांच आवश्यक है या नहीं, प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के अनुसार अलग-अलग होगा।