Invisible Soul’s Conference: अदृश्य आत्माओं का गोलमेज सम्मलेन

रहस्य और रोमांचक किस्सागोई –

Invisible Soul’s Conference:अदृश्य आत्माओं का गोलमेज सम्मलेन

डॉ .स्वाति तिवारी 

मैंने उनका नाम अपनी एक लेखक  मित्र से सुना था ,उसने बताया था  कि वे ऑथर्स क्लब के अध्यक्ष है और तुमसे मिलना चाहते हैं.मेरे लिए यह थोड़ी प्रसन्नता और थोड़ी  विस्मय भरी खबर थी .मुझसे क्यों मिलना चाहते हैं ?
मेरी मित्र ने पूछा “वो तुम्हारा नंबर मांग रहे हैं क्या दे सकती हूँ. ‘
“हाँ ! नम्बर देने में क्या परेशानी है,दे दो ,हो सकता है कोई बात करनी हो.”
शाम को उनका फोन आ गया था ,वे मुझे कहानी पाठ के लिए आमंत्रित कर रहे थे, ऑथर्स क्लब के एक आयोजन के लिए. मैंने उन्हें सहज स्वीकृति देते हुए धन्यवाद दिया .हमारी बातचीत यहीं से शुरू हुई थी .मैं उनके कार्यक्रम में समय पर कहानी पाठ के लिए पंहुच गई थी .उस संस्था के ज्यादातर सदस्य प्रौढ़ उम्र के ही थे .और तब मेरी उम्र शायद चालीस के आसपास रही होंगी .कहानी पाठ अच्छा रहा. मेरी आवाज लोगों को पसंद आती है और कहानी कहने का अंदाज भी .मेरी कहानी उनके सदस्यों को खूब पसंद आई और उन्होंने एक और कहानी की डिमांड रख दी .उस उम्र में लिखना भी और कहानी सुनाना भी एक जोश था जो कहानी लिखने को प्रेरित करता था .इस आयोजन का एक प्रभाव तो मुझे तत्काल ही दिखा उनके सदस्यों के बीच मेरी लोकप्रियता को देखते हुए उन्होंने मुझे  उस क्लब की मानद सदस्यता देने की  घोषणा ही कर दी .इस तरह से  मेरा उनके साथ संवाद शुरू हुआ था .
क्लब की अगली मीटिंग में भी मुझे कहानी पाठ कर रहे लेखक की कहानी पर समीक्षात्मक टिप्पणी के लिए आमंत्रित कर लिया.इस बार उनसे  मेरा परिचय थोड़ा और बढ़ गया. इस बार मीटिंग उनके घर पर थी .मीटिंग के बाद उन्होंने बताया कि वे मनोविज्ञान विभाग के डीन हैं,और परामनोविज्ञान पर उनकी सतत रिसर्च चल रही है .
मेरे लिए उनके काम के प्रति जिज्ञासा यही से शुरू हुई .वे  लगभग रिटायरमेंट के आसपास ही होंगें .इतना लंबा अनुभव और वह भी  बिलकुल अलग  ही विषय पर ! मैंने उनसे जानना चाहा कि ये विषय क्या है और उनके अनुभव कैसे रहे रिसर्च में .और मनोविज्ञान और परा मनोविज्ञान में क्या अंतर है ?
वे बातचीत करते हुए हंस दिए “एक पागलों का विषय और दूसरा पागल कर देने वाला विषय !”
मैं भी हंस दी ,”मैं भी इसी में आगे पढ़ना चाहती थी पर पेरेंट्स ने कहा लड़कियों के विषय ससुराल जाने के नहीं होते पागल खाने जाने का रास्ता होता है.तुम्हे जॉब करना है ना तो जॉब को देखते हुए इसमें ज्यादा गुंजाइश नहीं है. तुम साइंस का कोई विषय लो ,और मैं मनोवैज्ञानिक बनने के बजाय विज्ञानी बन गयी .”
वे फिर हंसें “अरे लेखक तो वैसे ही मनोविज्ञानी होता है ,परकाया प्रवेश करता है ,फिर आप तो  डबल फायदे में है, विज्ञानी होने से मनोविज्ञान को भी क्रमबद्ध कर लेती हैं कहानियों में .”
“लेकिन आप मुझे दोनों में अंतर समझाइये सर !’
वे थोडा सा रुके जैसे दुविधा में हों, फिर बोले- एक जटिल विषय को एक विद्यार्थी को समझाना सरल होता है, लेकिन एक लेखक को समझाना थोड़ा सा कठिन ! पर समझ  लीजिये कि परामनोविज्ञान, मनोविज्ञान की शाखा है, जो असाधारण या मानसिक घटनाओं की वैज्ञानिक जांच से संबंधित है. इसकी सामान्य अनुसंधान द्वारा जानकारी  एकत्र की जाती है. दूरदर्शिता, पुनर्जन्म या पूर्वाभास भी हो सकते है इसमें .
“कह सकते हैं कि यह एक गुप्त विद्या ही है . “गुप्त विद्या”, जैसा कि इसे लोकप्रिय रूप से कहा जाता है, मेरे पास शोध करने में सहायता के लिए कई अनुरोध आते रहते हैं.लेकिन  व्यक्ति की रुचि, भूत प्रेत , जादू, हस्तरेखा विज्ञान, टोना-टोटका , यूएफओ, बिगफुट या योग जैसे विषयों में हो तो ही वह “गुप्त विद्या” में काम कर सकता है ।
यों भी समझ सकती हैं जैसे किसी व्यक्ति की रुचि परा-मनोविज्ञान में हो सकती है, जो दूरदर्शिता, पुनर्जन्म और अन्य असाधारण घटनाओं की वैज्ञानिक जांच से संबंधित होती है । वे बताने लगे उनकी रूचि केवल मनोविज्ञान और क्लिनिकल मनोविज्ञान तक ही थी ,लेकिन जब वे एक शोध के सिलसिले में वे अमेरिका गए और वहां उन्होंने परामनोविज्ञान और मनोवैज्ञानिक अनुसंधान का विश्वकोश {न्यूयॉर्क: पैरागॉन हाउस, 1991} देखा जिसमें परामनोविज्ञान में पाठ्यक्रम प्रदान करने वाले स्कूलों की एक विस्तृत ग्रंथ सूची और परिशिष्ट मिले थे ।वही से मेरी रूचि इस तरफ मूढ़ गई .फिर तो जैसे मेरे शोध के विषय की दिशा ही बदल गई क्योंकि मैंने वहां  गुइली, रोज़मेरी की भूत-प्रेतों का विश्वकोश . (न्यूयॉर्क: फैक्ट्स ऑन फाइल, 1992) । भूतों, आत्माओं और अन्य असामान्य भूतों से संबंधित सभी विषयों की  विस्तृत जानकारी देखी और मैं इस तरफ खींचता चला गया था  । तब मैंने वहां बर्जर, आर्थर एस.की  लाइव्स एंड लेटर्स इन अमेरिकन पैरा साइकोलॉजी: ए बायोग्राफिकल हिस्ट्री पढी .”
मैंने सहज सा प्रश्न कर डाला “आपको डर नहीं लगा ?”
शुरू शुरू में तो लगा पर फिर मेरे लिए यह एक विषय हो गया लेकिन एक बार जब में एक रिसर्च कर रहा था अपनी ही लाइब्रेरी कम लेबोरेटरी में तब मैंने पहली बार साक्षात मृत्यु जैसा ही  डर महसूस किया  था.
मेरे रोंगटें खड़े होने लगे “बाप रे ! ऐसा भी क्या शोध का चस्का .”
वे  मुस्कुरा दिए ,रुक गए बात करते करते जैसे बताना भी चाह रहे थे और रहस्य की तरह छुपाना भी .
मैंने उन्हें उकसाया और भय मिश्रित स्वर में पूछ ही लिया “फिर”
“फिर क्या उनसे मैंने बातें की ”
“मतलब ”
“मतलब उन सभी आत्माओं से और फिर अपनी शोध पूरी की .”
“लेकिन यह कैसे हो सकता है ?”मैंने कुर्सी का हेंडल कस कर पकड लिया. एक पल को उनके चहरे का भाव उनका नहीं रहा लगा .एक पल को यह भी लगा कि मेरे सामने जो बैठे हैं मनोविज्ञान के प्रोफ़ेसर वे मनुष्य नहीं कोई आत्मा ही तो नहीं ,एसा भाव चहरे पर जो आलौकिक भी था और परालौकिक भी. वो शाम का समय था ,शाम इसी तरह तो अजीब भाव लेकर अँधेरे में प्रवेश कराती है . यह यह भावपूर्ण निपुणता का ही था क्योंकि पूर्ण निपुणता के लिए, हमें आध्यात्मिक और वैज्ञानिक, दोनों प्रकार की समझ की आवश्यकता होती है।जो उनमे दिख रही है  जैसा कि ईशा  कहती है: {ईशा उपनिषद , श्री अरबिंदो अनुवाद, 1996, पृ. 21-22)

अंधे अंधेरे में वे प्रवेश करते हैं जो अज्ञान का अनुसरण करते हैं 1 , वे मानो
और भी बड़े अंधेरे में जाते हैं जो खुद को केवल ज्ञान के लिए समर्पित करते हैं।
… जो उसे ज्ञान और अज्ञान दोनों के रूप में एकसा  जानता है, वह
अज्ञान के द्वारा मृत्यु को पार कर जाता है और ज्ञान के द्वारा अमरता का आनंद लेता है।

कहीं ये उसी दिशा में तो प्रवेश नहीं कर चुके परम आनंद की रहस्यात्मक शक्ति के साथ ,मैं संशय में आ गयी थी अब उठ कर जा भी नहीं सकती थी ,और सुनने की  हिम्मत भी जवाब दे रही थी .रात कोई डरावनी फिल्म देख कर तकिये के निचे सरोता ,चाकू और राई रखने वाली मैं  इस समय इनके भूत प्रेत किस्से के बाद गाड़ी चला कर घर तक जाउंगी कैसे ?

वे धीरे से बोले “पानी ‘
उनकी पत्नी हमारे लिए चाय नाश्ता लगा रही थी वे पानी का ग्लास उन्हें पकड़ा कर बैठ गई .उन्होंने पति को रोकना चाहा ‘आप कहाँ की रामायण ले बैठे ,इन्हें जाने दो छोटे बच्चे हैं इनके ,बेकार में डर गई तो मुश्किल में पड जायेंगी .’
उन्होंने बंद आँखे खोल दी ,”अरे बहुत हिम्मत वाली है ,लेखक हैं इन्हें डर से लड़ना आना चाहिए ,नहीं तो लिखेंगी कैसे किसी भूतहां प्रसंग को .”
“क्या हुआ कि–” बोलते बोलते वे रुक गए
“मैं अपनी  रिसर्च के 100  में से केवल दो प्रसंग सुनाऊंगा आपको ‘एक आज एक फिर कभी .
शायद कभी आप इन्हें कहीं अपने लेखन में उदाहरण के रूप में प्रयुक्त कर सकें .लेखक के पास हर विषय की थोड़ी बहुत समझ होनी ही चाहिए .उन दिनों में भूत और प्रेत आत्माओं पर काम कर रहा था मेरे पास दुनिया भर से लगभग से 20 रिसर्च पेपर आये हुए थे जो इन पर तैयार किये गए थे लेकिन वे  किसी अवधारण तक नहीं पंहुच पाए थे .उनमे एक भी पेपर काल्पनिक नहीं था ,वह घटना  कहीं न कहीं घटित हुई थी  ,सभी रिसर्च पेपर मेरी लेबोरेट्री कम लाइब्रेरी में थे ,उन दिनों मैं विदेश में अध्ययन कर रहा था .मुझे बार बार न्यूयार्क की पब्लिक लाइब्रेरी जाना पड़ता था क्योंकि वहां गुप्त विद्या पर सामग्रियों का व्यापक संग्रह है.
दिन भर मैं अलग अलग लाइब्रेरियों में पढ़ता .नोट्स बनाता और रात को अपनी  लेबोरेट्री में आ जाता .रात इस तरह के अध्ययन के लिए उपयुक्त समय होता है ,यह मुश्किल विषय होते है और कई बार मन को विचलित भी कर देते है ,इन्हें शान्ति से गहराई से और एकाग्रता से ही समझना और समाधान तक जाना संभव होता है .
उस रात लगभग 11 बजे होंगे मेरा घर महानगर से दूर एक नदी किनारे था जो एक गाँव में मिला था, मुझे कम पैसे में और ज्यादा दिनों के लिए रहने के लिए वह उपयुक्त लगा था .उस समय अमेरिका भी आज जैसा नहीं था .साधन और सुविधाएं भी कम ही थे .मैं ग्रैंड सेंट्रल टर्मिनल  तक बस  से जाता और फिर स्टेशन से  ट्रेन लेता और अपने स्टेशन पर उतर कर वहां से एक पगडण्डी पर चलता हुआ उस सुनसान रास्ते को क्रॉस कर  45 मिनिट का वाक करते हुए घर जाता . रेंटल कार मिलती थी, पर उन दिनों मुझे ड्राइविंग नहीं आती थी और पैसे बचाने का ख्याल तो हम भारतीयों पर भूत की तरह  सदा रहता है.
पगडंडी वाले रास्ते में एक  कब्रिस्तान भी आता था .अमेरिका में कब्रिस्तान सुन्दर पार्कों वाले होते है .सजावटी भी. फूलों से कोई ना कोई कब्र सजी ही रहती मैंने देखी थी .मेरे मन में एक अच्छा ख्याल आया था उस दिन एक कब्र को देख कर. कितना अच्छा है इस  संस्कृति में जब अपने किसी प्रिय की याद आये तो उसकी कब्र पर जा सकते है, बैठ सकते है कुछ देर उसके पास .अपने मन की बातें वहां कह कर मन हल्का कर सकते है .एक हमारे यहाँ कि परम्परा हैं जहाँ राख और फूल भी सब सौरसार कर नदियों में प्रवाहित कर देते है,कुछ भी बाद के लिए नहीं रखते ,एक दिन का श्राद्ध करो बस,याद करने का एक कोना भी नहीं रखते घर में .

Invisible Soul's Conference

यही सब सोचते हुए मैं उस कब्रिस्तान को देखने उसके अन्दर चला गया था .लेकिन जैसा मुझे बाहर से दिख रहा था वैसा मेरा केवल ख्याल ही था अन्दर कई कब्रें उपेक्षित ,जर्जर और कांटे उगी हुई दिखी .वातावरण शांत था. मेपल के पेड़ जगह जगह लगे थे ,कोई पक्षी बड़ी मधुर आवाज में गा रहा था उसे ना सुन कर मैं एक कोलाहल को सुन रहा था .मुझे बैचेनी होने लगी मैंने पानी की बोतल निकाली और एक घूँट पानी पिया ही था कि मुझे लगा मेरे चारों तरफ प्यासे लोगों के हाथ फ़ैल गए है .आई वांट वाटर , आई वांट वाटर ,—-जैसे वे सदियों से प्यासे हैं लोग यहाँ फूल तो यदाकदा रख जाते है पर पानी पिलाने की परम्परा नहीं है . हम भारतीय तर्पण करके जल अर्पित करते है .पानी का घड़ा .लोटा भर कर देहरी के पास भी रखते रहे हैं .बोतल जैसे पानी सोख रही थी . खाली होने लगी और भय से घबराया हुआ मैं वहां से निकलना चाहने लगा तो बोतल गिर गई और दो लीटर जल धरती  ने पल भर में  सोख लिया .जब मैं निकल रहा था तो कब्रें जैसे सिसक रही थी .मैं सुन रहा था उस क्रंदन को . करुण था वह क्रंदन .किसका था ,क्यों था .कदम जैसे मन भर भारी हो गए थे .तभी मुझे वहां देख एक व्यक्ति गेट से अंदर मेरे पास आया .

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“everything is fine, you seem upset” सब ठीक है ,आप परेशान लग रहे हैं.
मेरी स्थिति ना निगलने की ना उगलने की ,बदहवास हालत रही होगी शायद .उसने फिर पूछा
“do you need any help”  क्या आपको कोई सहायता चाहिए?
मैं उस व्यक्ति को ध्यान से देखने लगा कहीं यह कोई —? वह एक पढ़ा लिखा सभी और समझदार लगा .मुझे भी वहां से बाहर निकलने का सहारा चाहिए ही था .
“are you ok”आप ठीक है ?
Yes, I needed water.जी पानी चाहिए था .
Okay, it’s in my car, let me give you water.ओके मेरी कार में है चलिए देता हूँ .
मैं उसके साथ गेट से बाहर निकल आया था ,कार में पानी की  कई बोतल डिक्की में थी. मैंने एक और बोतल ली और खोल कर गेट के अन्दर रख दी .वह व्यक्ति मुझे देख रहा था ,वह मेरे सामान्य होने तक किसी बहाने रुका रहा फिर कुछ फूल उठाकर एक कब्र पर रख आया .तब तक मैं पहले से बेहतर महसूस कर रहा था .पसीना भी कम होने लगा और हार्ट बीट भी अब अपनी गति पकड़ रही थी .
“If you need a lift, I’ll go here.” आप को लिफ्ट चाहिए ,मैं इधर ही जाऊँगा.
‘”Yes, maybe my blood pressure has gone down after some time.”जी मेरा ब्लड प्रेशर थोड़ा बढ़ गया है शायद .
पता चला वे एक डॉक्टर हैं ,और मेरे घर के आगे गाँव है जहाँ उनका क्लीनिक है . मैं अब उनकी कार में था .हम एक दुसरे के बारे में बता चुके थे और वे यह जानकर मैं इस अजीब से विषय पर इंडिया में काम करता हूँ .आश्चर्य करने लगे . थोड़ी देर बातें होती रही अब हम मित्र बन गए थे .उन्होंने मुझे मेरे घर ड्राप किया और वे चले गए .
उस रात मेरे साथ जैसे कोई अदृश्य मेरे घर मेरी लेबोरेटरी तक आ गया था. ऐसा मैंने देखा नहीं पर मुझे महसूस हुआ था .मैं थक गया था और मानसिक परेशान भी था. बिना खाए पिए मैं सो गया ,.देर रात जब नींद खुली तो कुछ आहटें थी घर में .जैसे बातें कर रहें है कुछ लोग . यह तो समझ आ गया था कि मैं किसी संकट में हूँ इस वक्त .वैसे मैं डरता नहीं, लेकिन जब एक से ज्यादा स्वर हों तो डरना तो स्वाभाविक था .

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मैंने लेम्प जलाएं .और अपने लिए  ब्लैक कॉफी बनाई .तब मोबाइल नहीं आये थे. सर्दियों की रात थी वह. मैं लेबोरेट्री मतलब मेरी लाइब्रेरी की तरफ गया तो आवाजें स्पष्ट होने लगी. वे मेरे उन रिसर्च पेपर के ही पात्र थे जो  चर्चा कर रहे थे , मैं वहीँ एक कुर्सी पर बैठ गया .मैंने देखा जब एक फ़ाइल हिलती तो कुछ ध्वनी होती फिर दूसरी फ़ाइल में हरकत होती .वे सभी आत्माएं फाइलों से निकल रही थी और एक टेबल के चारों तरफ मुझे उनकी उपस्थिति महसूस हो रही थी .उनका कोई गोलमेज सम्मेलन हो जैसे. मेरे किचन में भी आहटें थी शायद वे —.मैं हिल भी नहीं पा रहा था .काफी का मग भरा हुआ था पर पी नहीं सकता था . सन्नाटे नहीं मैं सनीपात की स्थिति में था .वे आत्माएं जाग गई थी .मैं अचेतन की तरफ जा रहा था और वे चेतन हो रही थी. शायद मुझे रोका जा रहा था उनके बारे में लिखने से .एक बार तो मुझे आत्महत्या तक कर लेने की अपनी मनस्थिति लगी थी . शायद अब मैं कभी इस दुनिया से बाहर नहीं आ सकूँगा .मैं चिपक गया था उस चेयर से .एक कमरा एक जिन्दा आदमी और अनगिनत हलचले थी मेरे आसपास .
“फिर” —
भय पर जिज्ञासा हावी हुई और मैंने पसीने की रेखाएं चहरे से पोंछते हुए पूछ लिया .उनकी पत्नी एक बार फिर चाय बना लायी थी.कप उठाया हम दोनों ने ही और वे बोले
“उस दिन मेरा टाइप राइटर  कागज़ निगल रहा था.”
मेरी आँखे फ़ैल गई थी .जैसे मैं देख रही हूँ एक दृश्य को .
“सुबह कब हुई मुझे पता ही नहीं चला .जब सुबह अंडे और ब्रेड की डिलेवरी वाला लड़का डोर बेल बजा कर गया तो नींद खुली . उठा तो मैंने अपने आसपास सब कुछ नार्मल देखा उठ कर दरवाजा खोला. पास वाले घर से मिस्टर बुश ने बाहर निकलते हुए गुड मोर्निग की और पूछा “You worked the whole night. The sound of the typewriter kept coming the whole night.” लगता है रात भर काम  किया आपने .टाईप राइटर की आवाज पूरी रात आती रही.
“मैं गुडमोर्निंग बोल कर मुस्कुरा दिया .अन्दर जाने के बजाय वहीँ बरामदे की सीढियों पर देर तक बैठा रहा .जब अन्दर गया तो मैं आश्चर्य चकित था ,मेरा रिसर्च थीसिस अपने निष्कर्ष के साथ टाईप किया हुआ उल्टा रखा था और सिगरेट के कई अध जले टुकड़े एश ट्रे में पड़े थे . वो सब मैंने उन जाग्रत आत्माओं के साथ बिताते हुए किया था .मैं उनसे डर रहा था. वे मुझे डरा रहे थे या मेरी मदद कर रहे थे,कुछ समझ नहीं पाया तब .
रिसर्च जो मुझे सालों साल करनी थी पिछले दो साल से मैं उन्हें पढ़ रहा था उन पात्रों को प्लेनचीट से  बुलाना चाहता था वे उस रात खुद-ब-खुद आई एक साथ. मेरे जेहन में आई थी या कमरे में आज तक नहीं जान सका. और अब कभी नहीं जान सकता . पढ़ना चाहेंगी .”
“जी ”
उन्होंने एक पुस्तक मुझे दी .मैं लेकर आई लेकिन पढ़ नहीं पाई भय का कोई साया साथ आया था मेरे .मैंने पुस्तक हनुमान मंदिर में ले जा कर एक आलीये में रख दी .रात घर में ये जाग्रत हो गई तो ! इस ख्याल से ही पसीने पसीने  हो गई .
अगले दिन मंदिर जाकर पुस्तक उठा लुंगी यह सोच जब मंदिर गई तो पुस्तक कोई और उठा ले गया था .अगले दिन उनका मुझे फोन आया “अरे आपसे किताब गुम हो गयी ?”
“जी, मैं मंदिर गई थी और रख कर भूल गयी.”

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“मैं समझा आप डर गयी और मंदिर में छोड़ आई .”
मेरे लिए घोर आश्चर्य था यह ,ये व्यक्ति क्या जासूस है ,इन्हें कैसे पता ?
आपको कैसे पता चला ,कोई आत्मा बता गयी क्या ,मैंने तंज कसा .
पुजारी जी मुझे जानते हैं. वे मेरा नाम पढ़ कर मुझे वापस दे गए .
ओह ! मैं शाम को लेती हूँ आपसे .
शाम को उन्होंने कल वाली कथा का अगला अंश सुनाया .जानती है यह कहानी यही ख़त्म हो जाती तो ठीक ,पर एसा नहीं हुआ !
क्योंकि मैं अपना शोध सम्मिट कर आया था और वह प्रस्तुत भी हुआ .मैं देश वापस आने वाला था .सोचा एक गिफ्ट और बुके धन्यवाद के लिए कब्रिस्तान में मिले उन डॉक्टर साहब के घर जा कर  देना चाहिए . शाम को जाने से पहले खरीद लूँगा . मैं पब्लिक लाइब्रेरी चला गया कुछ बुक्स वापस करनी थी .काउंटर पर कुछ लोग थे,तो मैं  काउंटर पर जमा हुई पुस्तकें उल्ट पलटने लगा ,तभी एक पुस्तक हाथ आई और उसमें लेखक की फोटो देख एक बार फिर मैं चौंक गया. यह तस्वीर हूबहू उन्ही डॉक्टर साहब  की थी जिनसे मैं मिला था .मैंने पुस्तक का अंतिम पन्ना देखा लेखक का परिचय जानने के लिए .वे एक परा मनोवैज्ञानिक , साइकोलॉजिस्ट  थे .नीचे  उनके जन्म और मृत्यु की भी जानकारी थी .मैंने लाइब्रेरियन से उस लेखक की कुछ जानकारी मांगी .उसने एक पुस्तक मुझे दी जिसमें उनकी जीवनी थी . और सबसे बड़ी चौंका देनेवाली खबर यह थी कि उनकी कब्र वहीँ थी जहाँ वे मुझे मिले थे . हक्का बक्का सा मैं कई  घंटे पुस्तक लिए बैठा रहा .
शाम को एक बुके कुछ  कैंडल लेकर मैं वहां गया उनकी मजार से सूखे पत्ते हटाये सफाई की .कैंडल्स जलाए और फूलों का गुच्छा रख उन्हें धन्यवाद ज्ञापित किया.मैं अब भी सोच नहीं पाता हूँ  क्या था वह?मेरा अवचेतन मन या उनकी चैतन्य आत्मा .महिला मोमबत्ती के साथ काले ग्रेनाइट कब्रिस्तान के पास लाल गुलाब पकड़े हुए — स्टॉक फ़ोटो © NewAfrica #328970444

[काल्पनिक कथा ]
डॉ .स्वाति तिवारी
Author profile
Dr. Swati Tiwari
डॉ .स्वाति तिवारी

डॉ. स्वाति तिवारी

जन्म : 17 फरवरी, धार (मध्यप्रदेश)

नई शताब्दी में संवेदना, सोच और शिल्प की बहुआयामिता से उल्लेखनीय रचनात्मक हस्तक्षेप करनेवाली महत्त्वपूर्ण रचनाकार स्वाति तिवारी ने पाठकों व आलोचकों के मध्य पर्याप्त प्रतिष्ठा अर्जित की है। सामाजिक सरोकारों से सक्रिय प्रतिबद्धता, नवीन वैचारिक संरचनाओं के प्रति उत्सुकता और नैतिक निजता की ललक उन्हें विशिष्ट बनाती है।

देश की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में कहानी, लेख, कविता, व्यंग्य, रिपोर्ताज व आलोचना का प्रकाशन। विविध विधाओं की चौदह से अधिक पुस्तकें प्रकाशित। एक कहानीकार के रूप में सकारात्मक रचनाशीलता के अनेक आयामों की पक्षधर। हंस, नया ज्ञानोदय, लमही, पाखी, परिकथा, बिम्ब, वर्तमान साहित्य इत्यादि में प्रकाशित कहानियाँ चर्चित व प्रशंसित।  लोक-संस्कृति एवं लोक-भाषा के सम्वर्धन की दिशा में सतत सक्रिय।

स्वाति तिवारी मानव अधिकारों की सशक्त पैरोकार, कुशल संगठनकर्ता व प्रभावी वक्ता के रूप में सुपरिचित हैं। अनेक पुस्तकों एवं पत्रिकाओं का सम्पादन। फ़िल्म निर्माण व निर्देशन में भी निपुण। ‘इंदौर लेखिका संघ’ का गठन। ‘दिल्ली लेखिका संघ’ की सचिव रहीं। अनेक पुरस्कारों व सम्मानों से विभूषित। विश्व के अनेक देशों की यात्राएँ।

विभिन्न रचनाएँ अंग्रेज़ी सहित कई भाषाओं में अनूदित। अनेक विश्वविद्यालयों में कहानियों पर शोध कार्य ।

सम्प्रति : ‘मीडियावाला डॉट कॉम’ में साहित्य सम्पादक, पत्रकार, पर्यावरणविद एवं पक्षी छायाकार।

ईमेल : [email protected]

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