
IPS & ASI Suicide: वरिष्ठ अधिकारी का दर्द और अधीनस्थ की पीड़ा, दोनों ने पुलिस के भीतर छिपी खामियों को किया उजागर
विक्रम सेन
नई दिल्ली। हरियाणा पुलिस में हुए अभूतपूर्व घटनाक्रम ने पूरे देश के प्रशासनिक ढांचे को झकझोर दिया है। वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी वाई पूरन कुमार की रहस्यमय मौत के सिर्फ आठ दिन बाद, उनके अधीनस्थ एएसआई संदीप लाठर की आत्महत्या ने पूरे सिस्टम को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है।
रोहतक में आईजी ऑफिस के साइबर सेल में तैनात ASI संदीप लाठर पांच बहनों के इकलौते भाई थे, और उनके पिता भी पुलिस इंस्पेक्टर थे। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के हाथों सम्मानित संदीप ने अपनी आत्महत्या से पहले IPS वाई पूरन कुमार, उनकी पत्नी आईएएस अमनीत पी कुमार और बेटी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए, जिससे पूरन कुमार के परिवार के प्रति बनी सहानुभूति पर सवाल खड़ा हो गया।
अमनीत पी कुमार और उनके समर्थन में खड़े संगठनों व दलों की जिद ने वाई पूरन कुमार के शव का पोस्टमार्टम अब तक रोके रखा, जबकि बिना जांच के पुलिस महानिदेशक शत्रुजीत कपूर को लंबी छुट्टी पर भेजा गया। अमनीत पी कुमार हरियाणा सरकार में आयुक्त एवं सचिव स्तर की अधिकारी हैं और पति-पत्नी दोनों कैथल में डीसी-एसपी रह चुके हैं।
*घटनाक्रम की पृष्ठभूमि*
7 अक्टूबर 2025 — वरिष्ठ IPS वाई पूरन कुमार अपने आवास पर मृत पाए गए। प्रारंभिक रिपोर्ट में इसे आत्महत्या बताया गया, लेकिन उनकी IAS अधिकारी पत्नी ने साजिशन हत्या का आरोप लगाया और कई वरिष्ठ अधिकारियों पर मानसिक उत्पीड़न और जातिगत भेदभाव के आरोप लगाए।
पूरन कुमार के सुसाइड नोट में डीजीपी शत्रुजीत कपूर, मुख्य सचिव अनुराग रस्तोगी, पूर्व मुख्य सचिव टी.वी.एस.एन. प्रसाद, पूर्व डीजीपी मनोज यादव, पी.के. अग्रवाल, राजीव अरोड़ा सहित 15 वरिष्ठ अधिकारियों के नाम दर्ज थे। उन्होंने नोट में लिखा: “मैं लगातार जातिगत भेदभाव और सामाजिक बहिष्कार का शिकार रहा। प्रमोशन, पोस्टिंग और छुट्टियों में भी अन्याय हुआ। जो लोग मुझे इस स्थिति तक लाए, वही मेरी मौत के जिम्मेदार हैं।”
उन्होंने डीजीपी शत्रुजीत कपूर पर आरोप लगाया कि एसपी नरेंद्र बिजरानिया को झूठे मामलों में फंसाने के लिए “ढाल” के रूप में इस्तेमाल किया गया। पिता के निधन पर छुट्टी न मिलने को उन्होंने “मानवता पर चोट” बताया।
परिवार ने पोस्टमार्टम से इनकार करते हुए कहा: “जब तक आरोपी अफसर गिरफ्तार नहीं होते, शव का पोस्टमार्टम नहीं कराया जाएगा।”
इस वजह से आठ दिन तक जांच रुकी रही। सरकार ने सातवें दिन डीजीपी शत्रुजीत कपूर को लंबी छुट्टी पर भेजा, और आईपीएस ओमप्रकाश सिंह को कार्यकारी डीजीपी नियुक्त किया। विवाद बढ़ने के कारण प्रधानमंत्री मोदी का 17 अक्टूबर का सोनीपत दौरा रद्द कर दिया गया। विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने मृतक आईपीएस के परिवार से मुलाकात कर न्यायिक जांच की मांग की।
*एएसआई संदीप लाठर की आत्महत्या*
14 अक्टूबर 2025 — IPS पूरन कुमार के गनमैन को गिरफ्तार करने और भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों की जांच कर रहे ASI संदीप लाठर ने रोहतक जिले के गांव लाढ़ोत में खेत में बने कोठरे में अपनी सर्विस पिस्टल से आत्महत्या कर ली। घटना स्थल से मिले तीन पन्नों के सुसाइड नोट और एक वीडियो संदेश ने प्रशासनिक हलचल मचा दी।
*सुसाइड नोट और वीडियो की प्रमुख बातें:*
50 करोड़ की डील और गैंगस्टर राव इंद्रजीत का जिक्र: संदीप ने आरोप लगाया कि पूरन कुमार ने सदर थाना मर्डर केस में 50 करोड़ की डील कर राव इंद्रजीत को बचाया।
संदीप का आरोप है कि IPS पूरन कुमार ने रोहतक रेंज में अपनी जाति के भ्रष्ट पुलिसकर्मियों को आईजी ऑफिस में तैनात किया, जबकि ईमानदार अफसरों को साइडलाइन कर दिया।
ASI ने राजनीतिक और पारिवारिक प्रभाव का उल्लेख करते हुए कहा कि – पूरन कुमार कहते थे, “मेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा, घरवाली आईएएस है, साला एमएलए है, परिवार एससी आयोग में है।”
संदीप ने लिखा कि डीजीपी ईमानदार हैं और भ्रष्टाचार पर रोक लगाने की कोशिश कर रहे हैं। संदीप ने खुद को भगत सिंह से प्रेरणा लेते हुए “पहली आहूति” बताया।
गनमैन सुशील कुमार — साझा कड़ी
दोनों घटनाओं में गनमैन सुशील कुमार का नाम प्रमुखता से सामने आया है, जो फिलहाल रंगदारी के केस में जेल में बंद है। पूरन कुमार की मृत्यु से पहले अंतिम कॉल सुशील को की गई थी। एएसआई लाठर के सुसाइड नोट में भी सुशील के वसूली और धमकी के आरोप दर्ज हैं। संभावना है कि जांच का असली सिरा इसी नेटवर्क से जुड़ा हो।
*दो सुसाइड नोट, दो दृष्टिकोण — प्रशासनिक दरार*
पूरन कुमार का नोट “सिस्टम के खिलाफ शहादत” के रूप में देखा जा रहा है।
संदीप लाठर का नोट “सिस्टम के भीतर विद्रोह” का प्रतीक बन गया है।
वरिष्ठ अधिकारी का दर्द और अधीनस्थ की पीड़ा, दोनों ने मिलकर हरियाणा पुलिस के भीतर छिपी खामियों को उजागर किया।
राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य :
भारत में हाल के वर्षों में कई घटनाएँ सामने आई हैं जहाँ ईमानदार अधिकारियों को सिस्टम के भीतर संघर्ष करना पड़ा। हरियाणा का यह मामला केवल दो आत्महत्याओं की कहानी नहीं, बल्कि उस संवेदनहीन तंत्र की दरारों का प्रमाण है जो “सेवा, सुरक्षा और न्याय” के आदर्शों पर टिका है।
*राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया*
यह प्रकरण अब “जातिवाद बनाम पारदर्शिता” और “सिस्टम बनाम सच” की राष्ट्रीय बहस में बदल चुका है। कई वरिष्ठ नेताओं ने न्यायिक जांच की मांग की है, जबकि सामाजिक संगठनों ने इसे “ब्यूरोक्रेसी के भीतर की काली परतें” बताते हुए प्रशासनिक जवाबदेही और सुधार की आवश्यकता जताई। सोशल मीडिया पर सवाल गूंज रहा है — “क्या सच बोलने की सज़ा अब मौत है?”
सूत्रों के अनुसार, चंडीगढ़ एसआईटी दोनों मामलों को एक ही केस फाइल में जोड़ने की तैयारी में है। गृह मंत्रालय ने भी इस पूरे घटनाक्रम की रिपोर्ट तलब की है। दोनों सुसाइड नोट्स और वीडियो फॉरेंसिक जांच के लिए भेजे जा चुके हैं।
*समानताएं और गंभीर प्रश्न*
दोनों अधिकारियों ने रिवाल्वर से आत्महत्या की।
दोनों ने कई पृष्ठों के फाइनल नोट छोड़े।
दोनों परिवार पोस्टमार्टम को लेकर जिद पर अड़े।
दोनों घटनाओं में राजनीतिक और प्रशासनिक दबाव की झलक।
अब पूरा देश जानना चाहता है:
क्या जांच एजेंसियां सच को सामने लाएँगी, या यह भी “एक और फाइल, एक और सुसाइड नोट” बनकर रह जाएगा?
हरियाणा पुलिस की यह दोहरी त्रासदी अब केवल आत्महत्या का मामला नहीं है, बल्कि यह उस “सिस्टम का आईना” है जहाँ एक अधिकारी असहाय महसूस करता है और एक अधीनस्थ “सच के लिए प्राण देने” को तैयार हो जाता है।
दोनों की अंतिम पंक्तियों में “सच” लिखा था, लेकिन प्रश्न अब भी वही है — असली सच किसका है और कब आएगा सामने?





