संसद के विशेष सत्र का उद्देश्य क्या कुछ विधेयक पास कराना मात्र है ?
गोपेन्द्र नाथ भट्ट की खास रिपोर्ट
नई दिल्ली: 18 सितंबर से 22 सितंबर तक आहूत संसद के विशेष सत्र का मूल उद्देश्य मात्र कुछ विधेयक पास कराना नही है बल्कि इसका असली उद्देश्य गणेश चतुर्थी से नए संसद में राज्यसभा और लोकसभा की कार्यवाही का शुभारंभ किया जाना बताया जा रहा है। इस क्रम में संसद के ऊपरी सदन राज्यसभा के सभापति और उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड ने रविवार को नए संसद भवन पर राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई संसद का विगत 28 मई को उद्घाटन किया था,लेकिन मॉनसून सत्र संसद की पुरानी इमारत में ही हुआ था। नई संसद को 970 करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया है। ये सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का अहम हिस्सा है।
केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने विशेष सत्र बुलाए जाने की जानकारी देते हुए दोनों संसद भवन की एक तस्वीर साझा की थी. तब भी कहा गया था कि ये पुरानी संसद से नई संसद में जाने के लिए सत्र बुलाया गया है। पिछले बुधवार को नई संसद में संसद के कर्मचारियों की नई यूनिफॉर्म की तस्वीरों को भी साझा किया था। नई संसद में इसी यूनिफॉर्म में कर्मचारी दिखेंगे। हालाकि यूनिफॉर्म में कमल का फूल होने पर कुछ विवाद भी उठा है ।
संसद का विशेष सत्र पहली बार नही बुलाया गया है। इसके पहले भी कई बार आज़ादी के 50 साल पूरे होने पर भी 15 अगस्त 1997 को संसद का विशेष सत्र बुलाया गया था। कुछ दिन पहले कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पीएम मोदी को चिट्ठी लिखकर संसद के विशेष सत्र बुलाए जाने का एजेंडा पूछा था।इसी चिट्ठी का ज़िक्र करते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने ट्वीट किया करते हुए लिखा, ”सोनिया गांधी के पीएम को चिट्ठी लिखने के बाद पड़े दबाव के कारण आख़िरकार मोदी सरकार ने 5 दिन के विशेष संसदीय सत्र के एजेंडे की घोषणा की है! इस वक़्त जो एजेंडा प्रकाशित किया गया है, उसमें कुछ नया नहीं है। इसके लिए नवंबर में होने वाले शीतकालीन सत्र तक रुका जा सकता था।”
लोकसभा सचिवालय ने आधिकारिक रुप से बताया है कि संसद के विशेष सत्र के पहले दिन 18 सितंबर को दोनों सदनों में संसद के 75 साल के सफ़र पर चर्चा की जाएगी। इसके तहत संविधान सभा से लेकर संसद की उपलब्धियों, अनुभवों और यादों की चर्चा की जाएगी। केंद्र सरकार भारत की आज़ादी के 75 साल पूरे होने पर अमृत काल भी मना रही है। इस तरह केंद्र सरकार का एजेंडा इस ओर इशारा करता है कि संसद का विशेष सत्र पुरानी से नई संसद में जाने के लिए बुलाया गया है। हालाकि मॉनसून सत्र नई बिल्डिंग में क्यों नहीं बुलाया गया, इस बारे में कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई । विशेष सत्र से एक दिन पहले रविवार को पीएम नरेंद्र मोदी का जन्मदिन को सर्वदलीय बैठक भी आयोजित की गई।
राज्यसभा के बुलेटिन के मुताबिक़, संसद के विशेष सत्र में तीन बिल पर चर्चा होगी। लोकसभा में भी दो बिल पर चर्चा होगी।ये बिल पोस्ट ऑफिस विधेयक 2023,मुख्य चुनाव आयुक्त एवं चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति, सेवाओं और कार्यकाल से संबंधित विधेयक,निरसन एवं संशोधन विधेयक 2023,अधिवक्ता संशोधन विधेयक 2023
और प्रेस एवं पत्र पत्रिका पंजीकरण विधेयक 2023 हैं।
इन बिलों में सबसे चर्चित है मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति से जुड़ा विधेयक है। बताया जा रहा है कि मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया में चीफ़ जस्टिस ऑफ इंडिया को हटाने का सरकार का इरादा है और इसीलिए ये बिल लाया जा रहा है।
वर्तमान व्यवस्था के अनुसार मुख्य चुनाव आयुक्त को चुनने वाली कमिटी में प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और मुख्य न्यायाधीश होते हैं।नए विधेयक में मुख्य न्यायाधीश की जगह कैबिनेट मंत्री को शामिल किए जाने की बात कही गई है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा है कि, ”मुझे यक़ीन है कि विधायी हथगोलों को छिपाया जा रहा और हमेशा की तरह उसे अचानक आख़िर में सामने लाएंगे. पर्दे के पीछे कुछ और है।’कांग्रेस नेता ने बताया कि इंडिया गठबंधन से जुड़ी पार्टियां मुख्य चुनाव आयुक्त विधेयक का विरोध करेंगी।
संसद का विशेष सत्र बुलाने के फौरन बाद केंद्र सरकार ने ‘एक देश एक चुनाव’ पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमिटी बनाई है।
इस कमिटी को बनाए जाने के बाद यह कयास लगाए गए कि संसद के विशेष सत्र में सरकार ‘एक देश एक चुनाव’ से जुड़ा बिल ला सकती है। हालांकि बुधवार को संसद की ओर से जारी बुलेटिन में एक देश एक चुनाव का कोई ज़िक्र नहीं है फिर भी विपक्ष इसे संदेह की निगाह से देख रहा है।
वैसे संसद का विशेष सत्र जैसे ही बुलाया गया था, वैसे ही ये कयास शुरू हो गए थे कि इसका मकसद क्या है?
सत्र बुलाने के एलान के बाद केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में ‘एक देश एक चुनाव’ पर कमिटी बनाई थी। इस पर उठे कयासों पर संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा था, “अभी तो कमिटी बनाई है. इतना घबराने की क्या ज़रूरत है? कमेटी बनाई है, फिर इसकी रिपोर्ट आएगी।कल से ही हो जाएगा, ऐसा तो हमने नहीं कहा है।
भारत में साल 1967 तक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए चुनाव एक साथ ही होते थे. साल 1947 में आज़ादी के बाद भारत में नए संविधान के तहत देश में पहला आम चुनाव साल 1952 में हुआ था.
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में ये भी कहा गया था कि सरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड पर भी बिल ला सकती है। इसके अलावा जी-20 समारोह के दौरान राष्ट्रपति की ओर से दिए जाने वाले भोज के निमंत्रण पत्र में इंडिया की बजाय भारत लिखे होने के बाद भी ये चर्चा छिड़ी थी कि विशेष सत्र में देश का नाम सिर्फ भारत कर दिया जाएगा।
हालांकि केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने इससे इनकार किया था और कहा था कि जी-20 की ब्रैंडिंग में इंडिया भी है और भारत भी
इधर विपक्षी दलों का कहना है कि सरकार विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया से डर गई है और इसलिए नाम बदलने जैसी चर्चाओं को छेड़ रही है।
——