तिरुपति प्रसाद मिलावट कांड से मंदिरों पर सरकारी कब्जे से मुक्ति और दोषियों को कठोर दंड से जुड़े मुद्दे

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तिरुपति प्रसाद मिलावट कांड से मंदिरों पर सरकारी कब्जे से मुक्ति और दोषियों को कठोर दंड से जुड़े मुद्दे

 

आंध्र प्रदेश के तिरुपति मंदिर के लड्डूओं में मिलावट पर देश दुनिया में हंगामा हो गया है | आंध्र के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने स्वयं बाकायदा लेबोरटरी की प्रामाणिक रिपोर्ट के साथ यह भंडाफोड़ किया | उन्होंने बताया कि पिछली वाईएसआरसीपी के नेतृत्व वाली जगनमोहन रेड्डी सरकार के दौरान तिरुपति के श्रीवेंकटेश्वर मंदिर में पवित्र प्रसाद लड्डू बनाने में घटिया सामग्री और जानवरों की चर्बी , मछली के तेल आदि का उपयोग किया गया। स्वाभाविक है कि इस गंभीर मामले पर राजनीतिक , सामाजिक , धार्मिक संगठनों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की | वहीँ इस पूरे विवाद के बीच एक बार फिर से देशभर के मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त किए जाने की मांग उठने लगी है। प्रसाद में मिलावट पर राजनीति से हटकर एक और गंभीर मुद्दा देश भर में दूध , घी , तेल , मसाले , सब्जी , फल सहित अनेक खाद्य वस्तुओं में मिलावट के मामलों पर कठोर सजा न होने , सरकारी खाद्य संरक्षण संस्थानों और नियम कानूनों की कमियों , मामलों के मामले लटके रहने का है | जनता की आस्था ही नहीं उनके स्वास्थ्य और जीवन से जुड़ी बातों पर प्राथमिकता के साथ अभियान की आवश्यकता है |
आंध्र में जून में सत्ता परिवर्तन हुआ था। जिसके बाद चंद्रबाबू नायडू की पार्टी सत्ता में वापस आई है। मुख्यमंत्री का पद संभालने के बाद चंद्रबाबू नायडू ने मंदिर के लड्डुओं में मिलावट की आशंका जाहिर की थी। जिसके बाद मंदिर प्रशासन ने सप्लाई किए गए घी के सैंपल लेकर जांच के लिए गुजरात स्थित डेयरी विकास बोर्ड की लैब ‘सेंटर ऑफ एनालिसिस एंड लर्निंग इन लाइव स्टॉक एंड फूड’ ( भेजे थे। जिसके बाद लैब की रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे हुए। एनडीडीबी लैब की रिपोर्ट से पता चला कि शुद्ध घी में शुद्ध दूध में वसा की मात्रा 95.68 से लेकर 104.32 तक होना चाहिए था। लेकिन सैंपल्स में मिल्क फैट की वेल्यू 20 ही पाई गई थी। जिससे इस मिलावटी घी के बारे में खुलासा हुआ। जिसके बाद बड़ा विवाद उठ खड़ा हुआ। लैब की रिपोर्ट के मुताबिक इन सैंपल में सोयाबीन, सूरजमुखी, जैतून का तेल, गेंहू, मक्का, कॉटन सीड, मछली का तेल, नारियल, पाम ऑयल, बीफ टैलो, लार्ड जैसे तत्व पाए गए हैं। इस घी को चेन्नई की एक कंपनी की कंपनी ने सप्लाई किया था। आरोप यह भी आया कि उस कंपनी के प्रबंधन में पूर्व मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी के रिश्तेदार भी शामिल हैं | आंध्र के पूर्व सीएम जगन मोहने ने कहा कि, घी की सप्लाई के लिए हर 6 महीने में टीटीडी टेंडर जारी करता है। रूटीन के तहत ही जो लोग चुने जाते हैं, उन्हें टेंडर दिया जाता है। ये मानदंड कोई आज तय नहीं हुए है। वे 10 साल से इसी तरह चले आ रहे हैं।
इस पूरे मामले पर मंदिर समिति तिरुमला तिरुपति देवस्थानम की ओर से भी बयान जारी किया गया है। तिरुमला तिरुपति देवस्थानम मंदिर के एक्जीक्यूटिव ऑफिसर श्यामला राव ने भी स्वीकार किया है कि ‘ हमारे मंदिर की पवित्रता भंग हुई है। पिछली सरकार ने मिलावट की जांच के लिए कोई कदम नहीं उठाए थे।जब मैंने टीटीडी की कार्यकारी अधिकारी का पदभार संभाला था, तो मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने खरीदे गए घी और लड्डू की गुणवत्ता पर चिंता व्यक्त की थी। राव ने कहा कि, वह चाहते थे कि मैं यह सुनिश्चित करने के लिए कड़े कदम उठाऊं। हमने इस पर मामले पर काम करना शुरू किया है। तब हमने पाया कि हमारे पास घी में मिलावट की जांच करने के लिए कोई आंतरिक प्रयोगशाला नहीं है। बाहरी प्रयोगशालाओं में भी घी की गुणवत्ता की जांच करने की कोई व्यवस्था नहीं है। इसके अलावा भगवान को चढ़ने प्रयोग किए जा रहे शुद्ध घी कीमत 320 रुपये रखी गई थी। जो संदेह पैदा कर रही थीं। शुद्ध घी की कीमत कम से कम 500 रुपये प्रति किलो होने चाहिए थी। ” तिरुपति बालाजी के प्रसाद में मिलने वाले लड्डू पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं। इन्हें जीआई का टैग भी मिला है। मंदिर प्रशासन हर रोज शुद्ध देसी घी के 3.50 लाख लड्डू तैयार करता है। इन लड्डुओं को बनाने में शुद्ध बेसन की बूंदी, चीनी, काजू और शुद्ध घी का इस्तेमाल किया जाता है। यहीं लड्डू तिरुपति मंदिर का मुख्य प्रसाद होते है। मंदिर के प्रसाद को बनाने के लिए मंदिर हर साल करीब 5 लाख किलो और हर महीने 42000 किलो घी तिरुमला तिरुपति देवस्थानम की ओर से खरीदता है। इस घी की खरीद के लिए मंदिर प्रशासन टेंडर जारी करता है। नए मुख्यमंत्री ने कहा है कि इस भ्रष्टाचार में शामिल किसी भी व्यक्ति को बख्शा नहीं जाएगा। इस मामले में सरकार की ओर से कई लोगों के खिलाफ कार्रवाई शुरु हो गई है |कंपनी को सरकार की ओर से प्रतिबंधित कर दिया गया है। हालांकि कंपनी ने इस मामले पर सफाई देते हुए कहा कि ‘ , जून-जुलाई में जो घी हमने भेजा था। उ कलेक्ट किया था। हमारे घी में किसी भी तरह की कोई मिलावट नहीं है। ‘केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू से इस मामले में विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने कहा कि है उन्होंने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू से बात की है और तिरुपति लड्डू मुद्दे पर रिपोर्ट मांगी है। उन्होंने कहा कि केंद्र इस मामले में खाद्य सुरक्षा नियमों के तहत कार्रवाई करेगा। भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) इसकी जांच करेगा, रिपोर्ट देगा और फिर हम कार्रवाई करेंगे।
सवाल यह है कि यह प्राधिकरण कितना सक्षम है | उसके प्रशासन , व्यवस्था , अधिकार आदि पर केंद्र सरकारों ने कितना ध्यान दिया | गड़बड़ियों और भ्र्ष्टाचार की शिकायतों पर कितनी कार्रवाई हुई ? वहीँ मिलावट पर राज्य सरकारों और स्थानीय नगर निगम पालिका मिलावट रोकने के लिए क्या पर्याप्त कार्रवाई कर रही हैं ?लचर प्रशासनिक कार्यप्रणाली के कारण मिलावटखोरों पर पूरी तरह से शिकंजा नहीं कस पाता है। मिलावट के लगभग सभी मामलों में जुर्माना लगता है, सजा नहीं हो पाती है। पिछले पांच साल में सजा का कोई बड़ा फैसला नहीं हुआ है। हालांकि, भारतीय दंड संहिता में मिलावटखोरों पर कड़ी सजा का प्रावधान है, लेकिन मिलावट से संबंधित 90 फीसदी मामले प्रशासनिक कोर्ट में स्थानांतरित हो जाते हैं, जिस कारण वह न्यायालय की कार्रवाई से बच जाते हैं।भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद खाद्य पदार्थों में मिलावट को रोकने के लिए सख्त सजा की सिफारिश की है। खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण द्वारा 2006 के खाद्य सुरक्षा एवं मानक कानून में प्रस्तावित संशोधनों के अनुसार खाद्य उत्पादों में मिलावट करने वालों को आजीवन कारावास और 10 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है |खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006 के क्रियान्वयन और प्रवर्तन का दायित्व राज्य सरकारों का है। राज्य खाद्य सुरक्षा अधिकारियों द्वारा खाद्य पदार्थों के नमूने लिए जाते हैं और विश्लेषण के लिए द्वारा मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं में भेजे जाते हैं। जिन मामलों में नमूनों में मिलावट पाई जाती है, वहां अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार कार्रवाई की जाती है।
मजेदार बात यह है कि यह प्राधिकरण केवल भारत की खाद्य बल्कि विश्व भर से आने वाली खाद्य वस्तुओं , सौंदर्य प्रसाधन की मान्यता स्वीकृति देने का अधिकार रखता है | विदेशी वस्तुओं के आयात की अनुमति में गड़बड़ी और भ्रष्टाचार पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता है | जबकि भारत कोडेक्स ( खाद्य पदार्थों के संरक्षण की संहिता का विश्व संगठन का सदस्य है | भारत के विशेषज्ञों को विदेशों में ज्ञान देने बुलाया जाता है | लेकिन भारत में अपनी ही सरकार उनकी लिखित सिफारिशों को समुचित महत्व देकर लागू नहीं कर पा रही है |
दूसरा मुद्दा देश के मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण का है | देशभर में मंदिरों पर से सरकार के नियंत्रण से मुक्त करने की मांग को लेकर पिछले एक दशक से आंदोलन हो रहे हैं। लोगों की मांग है कि सरकार इन मंदिरों को अपने नियंत्रण से मुक्त करे। इससे मंदिर बोर्ड में हो रहे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। कई लोग मानते हैं, ‘हिंदू मंदिरों की स्वतंत्रता’ आंदोलन न तो 2014 के बाद शुरू हुआ कोई नया संघर्ष है और न ही यह सांप्रदायिक एजेंडे का हिस्सा है। सुधार के बाद के भारत में जहां राज्य अपनी अधिकांश संपत्तियों, कंपनियों और अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को उदार बना रहा है, मंदिर अभी भी उसके नियंत्रण में हैं। मंदिरों को मुक्त करने के आंदोलन से जुड़े लोगों का कहना है कि हिंदू मंदिरों पर नियंत्रण धार्मिक क्षेत्र में ‘लाइसेंस परमिट राज’ का दर्श उदाहरण है। सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की मांग कर रहे लोगों का कहना है कि भारतीय लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष राज्य 1947 से अस्तित्व में है जबकि अधिकांश हिंदू मंदिर सदियों पुराने हैं। यह तथ्य कि वे अभी भी फल-फूल रहे हैं, इस बात का प्रमाण है कि दशकों तक स्थानीय भक्तों द्वारा उनका प्रबंधन कैसे किया गया था। दूसरी तरफ सरकार की तरफ से नए-नए कानून के जरिये मंदिरों पर नियंत्रण का दायरा बढ़ाया जाता रहा है। मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुकी है। शीर्ष अदालत की तरफ से भी मंदिरों पर सरकार के नियंत्रण को अनुचित ठहराय जा चुका है। सुप्रीम कोर्ट में जज रहे रिटार्यड जस्टिस एसए बोबडे ने 2019 में पुरी के जगन्नाथ मंदिर से संदर्भ में कहा था कि मैं नहीं समझ पाता कि क्यों सरकारी अफसरों को मंदिर का संचालन करना चाहिए? एक अनुमान के अनुसार देशभर के करीब 4 लाख मंदिरों पर सरकार का नियंत्रण है। इससे पहले साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में तमिलनाडु के नटराज मंदिर को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने को लेकर फैसला भी सुनाया था। उत्तराखंड में यह चुनावी मुद्दा बन गया था |

Author profile
ALOK MEHTA
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।