बुंदेलखंड महाकुंभ में हुई भक्ति की बरसात…
यहां पिछले सात दिन से भक्ति की बरसात हो रही थी। गढ़ा स्थित बागेश्वर धाम में बुंदेलखंड महाकुंभ में भक्ति के रस में सराबोर होने के लिए देश के दूरस्थ क्षेत्रों से श्रद्धालु एक सप्ताह से डेरा डाले थे। 7 मार्च 2024 को इंद्रेश महाराज के मुखारविंद से चल रही भागवत कथा का समापन हुआ। और 8 मार्च 2024 को 155 बेसहारा कन्याओं के विवाह का साक्षी हजारों श्रद्धालुओं के साथ बुंदेलखंड महाकुंभ बनने जा रहा है। विशिष्ट हस्तियों का यहां आकर महाकुंभ में शामिल होने का सिलसिला लगातार जारी रहा। 7 मार्च को मध्यप्रदेश शासन के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, विश्वास सारंग, राकेश शुक्ला, दिलीप अहिरवार और पूर्व मंत्री पंडित गोपाल भार्गव ने इस महाकुंभ में शिरकत की। तो मनिंदर बिट्टा सहित सैकड़ों विशिष्ट अतिथि यहां मौजूद रहे। महाकुंभ का दृश्य ऐसा था कि भव्यता भी फीकी पड़ जाए। मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने सच ही कहा था कि बागेश्वर महाराज धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने यहां “जंगल में मंगल” कर दिया है। पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव बोले कि बुंदेलखंड का नाम देश-दुनिया में अगर किसी ने सबसे ज्यादा रोशन कर हम सभी को गौरवान्वित किया है तो वह पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री हैं। मंत्री राकेश शुक्ला ने कहा कि सनातन धर्म की पताका पूरी दुनिया में फैलाने का काम महाराज धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री कर रहे हैं। तो मंत्री विश्वास सारंग बोले कि महाराज धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री मानवमात्र की सेवा कर सबसे बड़ा पुण्य कार्य कर रहे हैं। बेसहारा बेटियों की शादी जितना पुण्य कार्य कोई दूसरा नहीं है। महाराज जी भगवा पताका देश-दुनिया में फहरा रहे हैं। और यहां के श्रोताओं की किस्मत कि कथावाचक इंद्रेश महाराज ने तो यह भी कह दिया कि बैकुंठ में इन्हीं श्रोताओं के साथ नारायण को वह कथा सुनाएंगे, तो अग्रज धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री राम कथा सुनाएंगे। तो महाराज धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने भी मंत्री सारंग को बैकुंठ धाम में कथा के लिए टेंट लगाने की जिम्मेदारी भी सौंप दी। और श्रोता यह प्रसंग सुन भक्ति रस में डूब गए। बुंदेलखंड महाकुंभ का यह दृश्य अलौकिक, दिव्य और भव्य था।
इंद्रेश कुमार के मुखारविंद से कथा के अंतिम दिन कृष्ण का त्याग, समर्पण और भक्तों की रक्षा के लिए खुद को रणछोड़ बनाकर उपहास का पात्र बनना भी उन्हें मंजूर है। कृष्ण ने जन्म लिया तो कष्ट कि मां को छोड़कर उन्हें जाना पड़ा। छह दिन के थे, तब पूतना ने जहर ही पिला दिया। 11 साल 56 दिन बाद कृष्ण मथुरा पहुंचे, तब शिव द्वारा कंस को दिया धनुष तोड़कर कृष्ण एक बार रघुनाथ के स्वरूप में आ गए। सामान्य श्रोताओं को शायद ही कृष्ण के जीवन का यह प्रसंग स्मरण में आता हो। फिर कृष्ण ने कंस का वध किया और मां देवकी से मिले। उधर मां यशोदा का कष्ट कि मुझे छोड़कर जा रहे हो, पर मां देवकी से मिलो तो उन्हें छोड़कर फिर कभी मत जाना। तब भी कृष्ण को ब्राह्मणों की रक्षा के लिए रणछोड़ दास बनकर द्वारिका जाना पड़ा। दरअसल जरासंध को कृष्ण 17 बार हरा चुके थे। 18 वीं बार जरासंध ब्राह्मणों को यज्ञ में बैठाकर आया और सैनिकों को यह आदेश दिया कि यदि मैं युद्ध हारा तो ब्राह्मणों की हत्या कर देना। तब ब्राह्मणों ने कृष्ण को जपा और कृष्ण ने रण छोड़कर ब्राह्मणों की रक्षा की। बलराम-रेवती विवाह, कृष्ण-रुकमणि विवाह, शिव का वृंदावन में गोपेश्वर स्वरूप में आना और कृष्ण का अन्य लीलाओं सहित अंत में बहेलिया के बाण से घायल होकर बैकुंठधाम लौटना।
इंद्रेश महाराज के मुख से कथा का श्रवण और बागेश्वर धाम की महिमा से वास्तव में बुंदेलखंड महाकुंभ में भक्ति रस की बरसात हो रही थी। सात दिन तक भागवत कथा का श्रवण करने वाले भक्त इतने भाग्यशाली रहे कि इंद्रेश महाराज ने उन्हें बैकुंठ में कथा सुनाने का वचन भी दे दिया। महाकुंभ की महिमा कि कथा की पूर्णाहुति महाशिवरात्रि पर 155 बेसहारा बेटियों के सामूहिक विवाह से हो रही है। विवाह, बारात और कन्याओं को उपहार की भी ऐसी व्यवस्था कि सरकार भी ईर्ष्या करने लगे। इसीलिए पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री का आशीर्वाद लेने देश-दुनिया से लोग तीर्थराज बागेश्वर धाम पहुंच रहे हैं और अपने कष्टों का निवारण कर रहे हैं…।