ऐसा लगा था कि वह ‘डॉक्टर’ नहीं ‘मानसिक रोगी’ है…

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ऐसा लगा था कि वह ‘डॉक्टर’ नहीं ‘मानसिक रोगी’ है…

कौशल किशोर चतुर्वेदी

छतरपुर जिले का वह वायरल वीडियो, जिसमें एक डॉक्टर, मरीज को घसीटकर ले जा रहा है…वास्तव में बहुत ही शर्मनाक था। उसे देखकर ऐसा लगा था कि वह व्यक्ति डॉक्टर होने की पात्रता कहीं से भी नहीं रखता। वैसा कृत्य तो अपराधी ही कर सकता है। ऐसा लग रहा था कि उस डॉक्टर को घसीटकर अस्पताल से बाहर फेंक देना चाहिए। और सफाई देने वाला व्यक्ति तो उस आसुरी व्यवहार वाले डॉक्टर से भी बड़ा अपराधी नजर आ रहा था। जिसमें वह कह रहा था कि आरोपी डॉक्टर को समझा दिया है कि मरीजों के साथ दुर्व्यवहार न किया जाए। और इससे ज्यादा शर्मनाक बयान क्या हो सकता है कि डॉक्टर को समझ नहीं आया कि जिसको घसीटकर ले जा रहा है, वह बुजुर्ग है। भला हो मध्यप्रदेश सरकार का, कि वायरल वीडियो पर संज्ञान लेते हुए त्वरित कठोर कार्यवाही कर एक संदेश देने की कोशिश की है कि ऐसे आसुरी प्रवृत्ति के लोगों को भगवान के दर्जे वाले डॉक्टर के रूप में कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। सरकार की इस कार्यवाही ने यह भरोसा जगाने का काम किया है कि ऐसे केस की पुनरावृत्ति की मध्यप्रदेश में कोई जगह नहीं है।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने 19 अप्रैल 2025 को ही कहा था कि जनकल्याण के लिए अधिकारी मैदान में उतरें। नागरिकों को आवश्यक सेवाएं प्रदान कर, सुशासन की दिशा में अपना प्रभावी योगदान दें। वायरल वीडियो मुख्यमंत्री के जनकल्याण और सुशासन के भाव पर कालिख पोतता नजर आ रहा था। पर यह समाचार पढ़कर तसल्ली हुई कि छतरपुर ज़िला चिकित्सालय में लापरवाही एवं दुर्व्यवहार पर चिकित्सा अधिकारी डॉ. राजेश मिश्रा, रेडक्रॉसकर्मी राघवेन्द्र खरे सेवा से पृथक किए गए और सिविल सर्जन डॉ. अहिरवार को निलंबित किया गया। उप मुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ल ने जिला चिकित्सालय छतरपुर में 77 वर्षीय उद्धवलाल जोशी एवं उनकी पत्नी के साथ हुई घटना को अत्यंत गंभीरता से लेते हुए दोषियों पर त्वरित एवं कठोर कार्रवाई के निर्देश दिये। उप मुख्यमंत्री शुक्ल ने कहा कि छतरपुर जिला चिकित्सालय में बुजुर्ग दंपत्ति के साथ हुई अमानवीय घटना को अत्यंत निंदनीय बताया। और साफ किया कि सरकार मरीजों के साथ संवेदनशील, सम्मानजनक और गरिमामय व्यवहार को स्वास्थ्य सेवाओं की प्राथमिक शर्त मानती है। इस तरह की घटनाएं बर्दाश्त नहीं की जाएंगी। इसके साथ ही मामले में त्वरित कार्रवाई के निर्देश दिए। इसके बाद दोषियों के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई। उप मुख्यमंत्री शुक्ल ने कहा कि मध्यप्रदेश सरकार का संकल्प है कि प्रत्येक नागरिक को चिकित्सा संस्थानों में बिना भेदभाव, भय या अपमान के गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हों। अस्पतालों को सेवा, सहानुभूति और संवेदना के केंद्र के रूप में कार्य करना चाहिए। सभी स्वास्थ्यकर्मियों से अपेक्षा है कि वे मरीजों के साथ मानवीय मूल्यों के अनुरूप व्यवहार करें। हम ऐसे वातावरण का निर्माण कर रहे हैं जहाँ मरीजों को सुरक्षा, सम्मान और करुणा मिले यही हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था की बुनियाद है।

भला ही रहा कि 17 अप्रैल 2025 को जिला चिकित्सालय छतरपुर में 77 वर्षीय उद्धवलाल जोशी एवं उनकी पत्नी के साथ अभद्रता एवं दुर्व्यवहार का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। और उक्त प्रकरण को गंभीरता से लेते हुए संबंधित अधिकारियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की गयी है। घटना की जांच तीन सदस्यीय समिति द्वारा की गई, जिसमें संविदा स्नातकोत्तर चिकित्सा अधिकारी डॉ. राजेश कुमार मिश्रा द्वारा बुजुर्ग को अस्पताल परिसर में घसीटने एवं दुर्व्यवहार करना प्रमाणित पाया गया। डॉ. मिश्रा का आचरण राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन मानव संसाधन मैनुअल-2025 के प्रावधानों के विपरीत पाया गया। उनके विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए एमडी एनएचएम डॉ. सलोनी सिडाना ने उनका संविदा अनुबंध तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दिया। उक्त प्रकरण में लिप्त रेडक्रॉसकर्मी राघवेन्द्र खरे को भी दोषी पाया गया। उनका प्रति उत्तर असंतोषजनक पाए जाने के कारण, उन्हें भारतीय रेडक्रॉस सोसायटी, छतरपुर की सेवाओं से तत्काल प्रभाव से पृथक कर दिया गया। प्रकरण में जिला चिकित्सालय में कर्तव्यों के निर्वहन में लापरवाही एवं अधीनस्थों पर नियंत्रण न रखने के कारण डॉ. जी.एल. अहिरवार, प्रभारी सिविल सर्जन सह मुख्य अस्पताल अधीक्षक, छतरपुर को म.प्र. सिविल सेवा नियम 1966 के अंतर्गत तत्काल प्रभाव से निलंबित किया गया। और उससे भी बड़ी सजा यह कि निलंबन अवधि में उनका मुख्यालय बालाघाट निर्धारित किया गया है।

खैर, मरीजों द्वारा दुर्व्यवहार करने के मामले में डॉक्टर जब प्रोटेक्शन एक्ट लागू करने की मांग करते थे, तब सामान्य व्यक्ति भी मन से डॉक्टर्स के पक्ष में खड़ा दिखता था। पर छतरपुर के डॉक्टर की इस अमानवीय, असंवेदनशील और घृणित घटना ने मानो डॉक्टर समुदाय का सिर शर्म से झुकने पर मजबूर कर दिया था। दमोह में फर्जी हत्यारे डॉक्टर से भी अधिक आक्रोश छतरपुर का वायरल वीडियो पैदा कर रहा था। अच्छा ही है कि ऐसे अपराधी कथित डॉक्टर सलाखों के पीछे धकेले जाएं और इन्हें इनके किए की पूरी सजा मिले। वास्तव में ऐसे कथित ‘डॉक्टर’ खुद ही ‘मानसिक रोगी’ हैं और डॉक्टरी पेशे को कलंकित करने वाले ऐसे लोग माफी के लायक कतई नहीं हैं। देखा जाए तो यह डॉक्टरी पेशे को बदनाम करते नजर आते हैं। पर यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि प्रदेश और देश में करोड़ों गरीब मरीजों का हर दिन इलाज सरकारी अस्पतालों में ही हो रहा है। और इनका इलाज कर रहे लाखों डॉक्टर वास्तव में देवदूत की तरह ही मानव सेवा को समर्पित हैं…ऐसी घटनाएं सेवा को समर्पित लाखों सरकारी और निजी अस्पतालों के डॉक्टरों के प्रति जन सामान्य के भरोसे को कभी कम नहीं कर सकतीं।