Italian Folk Tale: “पैसा सब कुछ कर सकता है”(इताल्वी लोककथा पर आधारित)

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Italian Folk Tale: “पैसा सब कुछ कर सकता है”(इताल्वी लोककथा पर आधारित)

 

इताल्वी लोककथा पर आधारित एक बार एक बहुत रईस शहजादे ने राजा के महल के ठीक सामने उससे भी शानदार एक महल बनवाने का निश्चय किया। महल जब बनकर पूरा हो गया तो उसने सामने की तरफ बड़े-बड़े अक्षरों में लिखवा दिया कि “पैसा सबकुछ कर सकता है।’
राजा ने बाहर आकर जब इसे देखा तो फौरन शहजादे को बुला भेजा जो शहर में अभी नया ही था और अभी तक उसने दरबार में हाजिरी नहीं बजाई थी।
“मुबारक हो,’ राजा ने कहा। “तुम्हारा महल तो सचमुच अजूबा है। उसके सामने मेरा गरीबखाना तो झोपड़ी जैसा लगता है। मुबारक! लेकिन यह लिखाना क्या तुम्हें ही सूझा था कि पैसा सब कुछ कर सकता है?’
शहजादे ने महसूस किया कि शायद वह हद पार कर गया था।
“जी हां यह मेरा ही खयाल था,’ उसने जवाब दिया, “लेकिन जहांपनाह को यदि यह नागवार लग रहा हो तो मैं उसे मिटवा देता हू्ं।’
“अरे नहीं, मुझे लगा कि यह तुम्हारा खयाल नहीं रहा होगा। मैं बस तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता था कि इस बात से तुम्हारा क्या मतलब था। मिसाल के तौर पर क्या तुम्हें ऐसा लगता है कि अपने पैसों से तुम मुझे कत्ल भी करा सकते हो?’
शहजादे को लगा कि वह कायदे से फंस चुका था।
“मुझे माफ कीजिए हुजूर। मैं फौरन उन लफ्जों को मिटवा देता हूं। और अगर आपको मेरा महल नापसंद हो तो बस हुक्म कीजिए, मैं उसे भी जमींदोज करवा दूंगा।’
“नहीं, नहीं उसे वैसा ही बना रहने दो। लेकिन चूंकि तुम दावा करते हो कि एक पैसे वाला शख्स कुछ भी कर सकता है, मुझे यह साबित करके दिखाओ। अपनी बेटी से बात करने की कोशिश करने के लिए मैं तुम्हें तीन दिन का मौका देता हूं। अगर तुम उससे बात करने में कामयाब रहे तो ठीक है, तुम्हारी उससे शादी करवा दी जाएगी। अगर नहीं। तो मैं तुम्हारा सर कलम करवा दूंगा। समझ गए?’
शहजादा इतना परेशान हो उठा कि उसका खाना, पीना और सोना तक हराम हो गया। रात-दिन वह सोचा करता कि वह कैसे अपनी गर्दन बचाए। दूसरे दिन तक तो उसे अपनी नाकामयाबी के प्रति इतना इत्मीनान हो चुका था कि वह अपनी वसीयत करने के बारे में सोचने लगा। उसके हालात भी नाउम्मीद करने वाले थे क्योंकि राजा की बेटी सौ पहरेदारों से घिरे किले में बंद रहती थी। किसी चिथड़े की तरह पीला और ढीला सा वह बिस्तर पर पड़े-पड़े अपनी मौत का इंतजार कर रहा था जब उसकी बूढ़ी दाई उससे मिलने आई। इस जर्जर बूढ़ी दाई ने उसे बचपन में खिलाया था और अब भी उसके यहां काम कर रही थी। उसका मरियल सा चेहरा देखकर इस बूढ़ी औरत ने पूछा कि क्या गड़बड़ थी। हकलाते हुए शहजादे ने उसको पूरी कहानी कह सुनाई।
“तो क्या हुआ?’ दाई ने कहा, “तुम इस तरह उम्मीद छोड़े बैठे हो? तुम पर तो मुझे हंसी आ रही है। देखो मैं क्या कर सकती हूं!’
वह डगमगाते कदमों से शहर के सबसे काबिल सुनार के पास पहुंची और उससे ठोस चांदी का एक हंस बनाने के लिए कहा जो अपनी चोंच खोले-बंद करे। हंस को आदमकद और अंदर से खोखला होना था। ‘और हां यह कल तक तैयार हो जाना चाहिए,’ उसने जोड़ा।
“कल? तुम होश में तो हो!’ सुनार चिल्लाया।
“मैंने कहा न कल!’ उस बूढ़ी औरत ने सोने की अशर्फियों से भरा एक बटुआ निकाला और बोलती गई “जरा सोचो। यह पेशगी रकम है। बाकी तुम्हें कल मिल जाएगी जब तुम हंस तैयार करके मेरे सुपुर्द कर दोगे।’
सुनार हक्का-बक्का रह गया। “यही चीज तो है दुनिया में जिसकी बात ही और है,’ उसने कहा। “मैं कल तक हंस तैयार करने की कोशिश करूंगा।’
अगले दिन तक हंस तैयार हो गया और बहुत खूब तैयार हुआ।
बूढ़ी औरत ने शहजादे से कहा, ‘अपनी वायलिन लेकर हंस के भीतर बैठ जाओ। जैसे ही हम सड़क पर पहुंचें तुम वायलिन बजाने लगना।’
हंस के भीतर बैठा शहजादा वायलिन बजाता रहा और बूढ़ी दाई चांदी के उस हंस को एक फीते के सहारे खींचती हुई शहर का चक्कर लगाने लगी। उसे देखने के लिए सड़कों पर लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी : शहर में ऐसा कोई भी न बचा जो उस खूबसूरत हंस को देखने के लिए दौड़ा न आया हो। यह बात उस किले तक भी पहुंची जहां राजा की बेटी बंद थी, उसने अपने अब्बा हुजूर से बाहर निकलकर यह अनोखा दृश्य देखने की अनुमति मांगी।
राजा ने कहा, “उस शेखीबाज शहजादे को मिला मौका कल खत्म हो जाने दो। तब तुम बाहर निकलना और हंस देख लेना।’
लेकिन राजा की बेटी ने सुन रखा था कि कल तक हंस वाली बूढ़ी औरत चली जाएगी। इसलिए राजा ने हंस को किले के अंदर ले जाने दिया ताकि उसकी बेटी हंस को देख सके। बूढ़ी दाई को इसी बात की उम्मीद थी। जैसे ही शहजादी ने चांदी के उस हंस के साथ अकेले में उसकी चोंच से निकल रहे संगीत का आनंद लेना शुरू किया, अचानक हंस खुल पड़ा और उसमें से एक नौजवान ने बाहर कदम रखा”डरो मत,’ उस आदमी ने कहा, ‘मैं वही शहजादा हूं जो अगर तुमसे बात न कर सका तो कल सुबह तुम्हारे अब्बा हुजूर मेरा सर कलम करवा देंगे। तुम उनसे यह बताकर मेरी जान बचा सकती हो कि

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‘(एक इतालवी लोक कथा)
अनुवाद : मनोज पटेल