JAYAS Politics : ‘जयस’ की कुक्षी महापंचायत प्रदेश में कांग्रेस के समीकरण बिगाड़ेगी!
Bhopal : आदिवासी संगठन ‘जयस’ (Jay Aadiwasi Sangathan) ने कांग्रेस के खिलाफ बागी तेवर दिखाते हुए 20 अक्टूबर को धार जिले के कुक्षी में महापंचायत बुलाई है। अनुमान है कि इस बैठक के फैसले कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकते हैं। ‘जयस’ के संरक्षक और कांग्रेस विधायक डॉ हीरालाल अलावा ने राज्य की 80 सीटों पर जयस के झंडे तले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। ‘जयस’ की इस घोषणा से पूर्व मुख्यमंत्री और PCC अध्यक्ष कमलनाथ के चुनावी समीकरण बिगड़ सकते हैं। क्योंकि, 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को ‘जयस’ का समर्थन मिला था। लेकिन, अब यदि ‘जयस’ अलग से चुनाव लड़ेगी तो अगले (2023) के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को झटका लग सकता है।
2023 के आगामी मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में अब कुछ ही महीनों का समय बचा है। भाजपा और कांग्रेस यहां दो मुख्य पार्टियां मानी जाती है, जिनके बीच सरकार बनाने का मुकाबला होता है। लेकिन, उससे पहले कांग्रेस को एक बड़ा झटका लगता दिख रहा है। जानकारी के अनुसार आदिवासी संगठन ‘जयस’ के संरक्षक डॉ हीरालाल अलावा ने घोषणा की कि उनका संगठन 2023 में अपने दम पर चुनाव लड़ेगा। इसके लिए हीरालाल अलावा ने धार के कुक्षी में ‘जयस’ की महापंचायत बुलाई है। बताया जा रहा है कि इस महापंचायत में आगामी चुनाव को लेकर रणनीति बनाई जाएगी।
‘जयस’ का फिलहाल कांग्रेस पार्टी को समर्थन है और मनावर विधानसभा सीट से डॉ हीरालाल अलावा यहां से विधायक हैं। लेकिन, अब हीरालाल अलावा के बागी तेवरों ने कांग्रेस की चिंता बढ़ा दी। 2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासियों का समर्थन ‘जयस’ के कारण कांग्रेस को मिला था, जिसका भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा था। लेकिन, यदि ‘जयस’ अपने दम पर चुनाव मैदान में उतरता है तो कांग्रेस को आदिवासी वोटों का नुकसान हो सकता है।
प्रदेश की राजनीति में आदिवासी वोट बैंक निर्णायक माना जाता है। यहां कुल जनसंख्या का 22% आबादी आदिवासियों की है। प्रदेश की कुल 230 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। साथ ही 80 से ज्यादा सीटों पर आदिवासी मतदाताओं का प्रभाव है। इसलिए यही वजह है कि प्रदेश में सत्ता पाने के लिए आदिवासी वर्ग को साधना जरूरी होता है।
प्रदेश के आदिवासी वर्ग में ‘जयस’ की लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है। जानकारी के अनुसार जयस के कार्यकर्ताओं की संख्या बढ़कर 6 लाख तक पहुंच गई। इसके अलावा देशभर में इस संगठन के कार्यकर्ताओं की संख्या करीब 25 लाख हो गई है। भाजपा को 2018 के चुनाव में आदिवासी बहुल सीटों सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा था। ऐसे में पार्टी ने धार, झाबुआ, खरगोन, बड़वानी जैसे आदिवासी बहुल जिलों की हर एक विधानसभा सीट पर विशेष तैयारी की है। वहीं 2018 के विधानसभा चुनाव में 107 सीटें मिली थीं, जिससे पार्टी बहुमत से दूर रह गई थी। ऐसे में भाजपा ने भी हारी हुई 100 सीटों पर विशेष फोकस करने का प्लान बनाया है।
2018 चुनाव के परिणामों में सामने आया था कि आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों में से भाजपा केवल 16 सीटें जीत सकी थी। लेकिन, कांग्रेस ने 30 सीटों पर जीत हासिल की। आदिवासी वोट बैंक के बल पर ही 2003 के चुनाव में बीजेपी सत्ता में वापसी की थी। लेकिन, 2018 में इसी वोट बैंक की वजह से बीजेपी को 15 साल बाद सत्ता से बाहर होना पड़ा।