महाराणा प्रताप के मुकाबले अकबर को अब भी महान कहने वालों से !

1090
अकबर, महान नहीं निकृष्टता, क्रूरता, चरित्रहीनता और सांप्रदायिक मतलबपरस्ती की पराकाष्ठा था.. महाराणा प्रताप की जयंती पर श्यामनारायण पांडेय की “हल्दीघाटी का युद्ध” कविता को पोस्ट करने के साथ मैंने संक्षिप्त टिप्पणी दी.. इस पर मेरे एक भूतपूर्व मित्र ने “व्हाइटएप विश्वविद्यालय” से निकला  इतिहास बताकर तंज कसा है। साथ ही एक और प्रतिटिप्पणी भी पढ़ने को मिली….
1589013301 8195
.”.वीर रस की एक ओजपूर्ण  पद्म रचना के रूप हल्दी घाटी निश्चित रूप से ऐतिहासिक खंड काव्य है लेकिन इसे प्रामाणिक इतिहास नहीं माना जा सकता है. जहां तक अकबर को महान सम्राट मानने से आपके एतराज का सवाल है और आपने उसके लिए जो विशेषण चुने हैं उनका कोई ठोस आधार नहीं है. दीगर है कि किसी के बारे में अपनी राय बनाने व रखने का आपको पूरा अधिकार है”
 मित्र ने अपनी राय बनाए रखने की स्वतंत्रता की बात कर ही दी है तो फिर मेरी अपनी स्वतंत्र राय फिर पढ़िए…
जो अकबर को अब भी ‘महान’ से एक इंच भी कमतर नहीं मानने को राजी हैं क्या वे…आपका अबुल फजल व बदायूंनी का लिखा इतिहास भी फर्जी मानते हैं।
42008 vjnqpuptjr 1515682979
खैर जो भी हो अकबरनामा में ही उल्लेख है कि 1567 के चित्तौड़ के युद्ध में 30 से 40 हजार आमजनों का कतलेआम इस्लाम के नाम पर अकबर ने कराया और तकरीर दी कि ये सब काफिर थे।
यह इतिहास के सबसे बड़े नरसंहार में एक था। अकबर ने धर्मभ्रष्ट किया, तलवार की नोकपर हिन्दू महिलाओं को अपने हरम पर रखा। अकबर के भाषण का भी उल्लेख अबुल फजल ने किया ..जिसमें चित्तौड़गढ़ के लोगों को काफिर बताते हुए इस्लाम की रक्षा का आह्वान किया। इस आह्वान के फलस्वरूप मुगलसेना ने गर्भवती महिलाओं के पेट भाले से छेदे। मासूम बच्चों और बूढ़ों को मौत के घाट उतारा। अबुल फजल व बदायूंनी दोनों ने अकबर के इस कृत्य की भूरिभूरि प्रशंसा की।
अकबर घोर साम्प्रदायिक, मतलबपरस्त था, अपने बाबा बाबर की तरह हर मसले को इस्लाम, जन्नत व जहन्नुम से जोड़ने वाला।
उन्नीसवी सदी में एक अंग्रेज इतिहासकार ने द ग्रेट मुगल कहा.. तभी से देसी इतिहासकार अकबर महान कहने लगे। जबकि अंग्रेजों ने डिवाइड एन्ड रूल की पालसी के तहत मुसलमानों की श्रेष्ठता साबित करने के लिए जालिम मुगल शासकों को ग्लोरीफाई किया तथा दिल्ली के हर गली कूंचे उनके नाम रखे।

Also Read: भाजपा में विधानसभा चुनाव की यह कैसी तैयारी!…. 

ये वही इतिहासकार हैं जो सन् सन्तावन की क्रांति को गदर लिखते रहे हैं। इन अँग्रेजदा इतिहासकारों ने हेमू और राणाप्रताप के व्यक्तित्व व कृतित्व को वक्त के कूड़ेदान में डाल दिया व वीर शिवाजी को गुरिल्ला लड़ाई लड़ने वाले छापामार गिरोह का मुखिया बताया।
यह सच है कि इतिहास की इबारत शासकों की रखैल होती है। अकबर ने भी यही किया।दीन-ए-इलाही खुद को उदार दिखाने के लिए फरेब था क्योंकि उसने हर युद्ध इस्लाम के नाम पर लड़े।
 दरअसल अकबर लंबे समय तक शासन करते करते और पंचानवे प्रतिशत देशी राजाओं को अपना गुलाम बनाने के बाद वह खुद को अल्लाह का पैगम्बर मानने लगा था। इस्लाम के समकक्ष या उसके विस्तार स्वरूप उसने दीन-ए-इलाही पंथ खड़ा किया। इससे मुल्ला लोग उखड़ गए और हिन्दुओं ने भी कोई रुचि नहीं दिखाई चुनांचे उसने अपने कदम वापस ले लिए और फिर इस्लाम की मुख्य कट्टर धारा में लौटना मुनासिब समझा लिहाजा इस्लाम के प्रसार में जुट गया।
Maharaja of Rewa in 1877
सबसे ज्यादा धर्म परिवर्तन इसी के शासनकाल में हुए, यहां तक कि रीवा के महाराजा रामचंद्र के बांधव दरबार से जबरिया पकड़वाए गए तानसेन और बीरबल को भी आखिरी दिनों मुसलमान बनना पड़ा।
अपने बाल्यकाल के संरक्षक बैरम खाँ की जो गति की इसे इतिहास जानता है। अब्दुल रहीम खानखाना को इसलिए देश निकाला दिया क्योंकि वह कृष्ण भक्त था।
जोधाबाई वास्तविक हैं या मिथक..यह बहस का विषय है पर राजपूत राजाओं के मानमर्दन के लिए उसे अपनी बेगम बनाया और प्रचारित करवाया।
यह भी सही हैं कि जयचंद से लेकर गद्दारों की जो परंपरा चली वह मानसिंह और जय सिंह तक और आगे भी चलती चली आई।  यह इतिहास के भांटों का ही कमाल था कि ज्यादा घाती होने के बाद भी मान सिंह व औरंगजेब का करिंदा जय सिंह जयचंद की श्रेणी में आने से बचे रहे।

Also Read: Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista: केंद्र में बढ़ता एमपी के IAS अफसरों का दबदबा 

लोक के मन में अकबर तब भी खलनायक था आज भी है और आगे भी रहेगा। उसने तत्कालीन इतिहासकारों को राजाश्रय व सोने की मुहरें देकर या फिर भयादोहन कर अपनी प्रशस्ति लिखवाई।
सम्राट विक्रमादित्य की नकल करके नवरत्न रखे जो विद्वान से ज्यादा भांट की भूमिका में रहे।  बांधवगढ के स्वाभिमानी राजा रामचंद्र के बेटे वीरभद्र का अपहरण करवाया व मुसलमान बनाने की कोशिश की। फिरौती के एवज में तानसेन, व बीरबल को अपनी दरबार में हाजिर होने के लिए मजबूर किया।
तुलसीदास पर भी उसकी वक्रदृष्टि थी..पर उन्होंने ..माँगकर खाइबो मसीत(मस्जिद) में सोइबो.. कहकर हाथ जोड़ लिया। इतिहास के पुनर्लेखन की जरूरत है…इन कातिलों और आतताइयों के बारे में वही पढा़या जाना चाहिए जो ये वास्तव में थे..।
* वैसे कोई विद्वान अकबर की महानता के गुण गिनाए जिसके आधार पर अंग्रेज इतिहासकारों ने..द ग्रेट मुगल.. लिखा तो वह भी मैं जानने को लालायित हूं।