झाबुआ चातुर्मास: 52 जिनालय की ऐतिहासिक प्रतिष्ठा और साध्वीवृंद के सानिध्य में धर्मसभा

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झाबुआ चातुर्मास: 52 जिनालय की ऐतिहासिक प्रतिष्ठा और साध्वीवृंद के सानिध्य में धर्मसभा

 

झाबुआ से कमलेश नाहर की रिपोर्ट 

झाबुआ: झाबुआ के श्री जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक श्री संघ के चातुर्मास के अवसर पर 52 जिनालय स्थित राजेंद्र जैन त्रिस्तुतिक पौषध भवन में साध्वी रत्न रेखा, साध्वी अविचल दृष्टा और साध्वी कल्पदर्शिता का मंगल विहार चल रहा है। ये सभी आचार्य श्रीमद् विजय हेमेंद्र सूरीश्वरजी की समुदायवर्तिनी गुरुणी पुष्पा की सुशिष्या हैं। साध्वीवृंद के सान्निध्य में प्रतिदिन सुबह 9:30 बजे से पौषध भवन में धर्मसभा का आयोजन हो रहा है, जिसमें श्रद्धालु बड़ी संख्या में भाग ले रहे हैं।

 

विशेष उल्लेखनीय है कि 52 जिनालय का ऐतिहासिक रूप से प्रतिष्ठापन परम पूज्य गुरुदेव राजेंद्र सरस्वती महाराज साहब के करकमलों से 1952 संवत में हुआ था। पहले यह स्थान एक छोटा सा जिनालय था, जिसे गुरुदेव ने अपने विशेष प्रयासों से 52 जिनालय के भव्य स्वरूप में प्रतिष्ठित किया। आज यही स्थान जैन समाज की आस्था का प्रमुख केंद्र बन गया है।

 

रविवार को मुंबई से 25 श्रावक–श्राविकाओं का दल दर्शन वंदन हेतु झाबुआ पहुंचा। धर्मसभा के तीसरे दिन साध्वी कल्पदर्शिता ने जैन आगमों की परंपरा, गणधर भगवंतों की भूमिका और धर्म के मूल सिद्धांतों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि प्रारंभ में परमात्मा की वाणी को लिखित रूप देने का विरोध था, ताड़ पत्र पर लिखने के लिए उपवास का दंड तय था, और बाद में सोने की शाही से अक्षर अंकित करने की परंपरा शुरू हुई। उत्तराध्ययन सूत्र के अनुसार सर्वप्रथम विनय गुण का पालन आवश्यक बताया गया—परमात्मा का संदेश है कि हर व्यक्ति स्वयं का गुरु बने।

 

साध्वी अविचल दृष्टा ने महासती मदन रेखा के जीवन चरित्र का वाचन करते हुए बताया कि अर्जुन माली की 1107 हत्या के बाद सुदर्शन सेठ माध्य बने और मोक्ष प्राप्त किया। उन्होंने चिलाती पुत्र और सुषमा के उदाहरण से समझाया कि जो व्यक्ति कर्म में आगे रहता है, वही धर्म में भी आगे बढ़ सकता है। उपशम, विवेक और संवर के तीन शब्दों के महत्व को रेखांकित किया गया—उपशम से बुरे विचारों पर नियंत्रण, विवेक से सही निर्णय और संवर से आस्रव भावों को रोकना चाहिए।

 

धर्मसभा में संघ अध्यक्ष संजय जी मेहता सहित वरिष्ठ श्रावक अशोक कटारिया, ओएल जैन, मनोहर लाल छाजेड़, राजेश मेहता, अनिल रुनवाल, कमलेश कोठारी, निखिल भंडारी, अशोक राठौड़, मनोज संघवी, भरत बाबेल, डॉ. प्रदीप संघवी, अनिल राठौर, राजेंद्र रुनवाल, रिंकू रुनवाल, नरेंद्र पगारिया, कमलेश भंडारी, चैत्य मुथा, मनोज जैन, संजय नाहटा, मनोज मुथा सहित अनेक श्रद्धालु उपस्थित रहे।

चातुर्मास के इस पावन अवसर पर साध्वीवृंद के मार्गदर्शन में धर्म, साधना और आत्मकल्याण की प्रेरणा मिल रही है, और 52 जिनालय की यह ऐतिहासिक धरोहर समाज को एक नई ऊर्जा दे रही है।