Jhabua Chaupal: पुराने फोटो से मना सांसद का जन्मदिन!

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Jhabua Chaupal: पुराने फोटो से मना सांसद का जन्मदिन!

रतलाम संसदीय क्षेत्र के भाजपा सांसद गुमान सिंह डामोर का जन्मदिन 4 अप्रैल को था। जन्मदिन नेताजी का हो, तो कहना ही क्या! नेताजी को खुश करने और अपने नंबर बढ़ाने के लिए कार्यकर्ता और समर्थक सालभर इंतजार करते है। लेकिन, इस बार सांसद ने सभी को इस ख़ुशी से वंचित कर दिया। संसद सत्र चलने के बीच सांसद का जन्मदिन आ गया और एक राजनीतिक आयोजन नहीं हो सका। सांसद की गैरमौजूदगी में कार्यकर्ताओं, पदाधिकारियों और समर्थकों ने अपने तरीके से जन्मदिन मनाया।

Jhabua Chaupal: पुराने फोटो से मना सांसद का जन्मदिन!

वह भी दुखी और भारी मन से! उत्साही फोटो छाप नेता अपने चहेते सांसद के साथ जन्मदिन पर अपनी झांकी नहीं जमा सके। उनके हाथ से सेल्फी लेने का एक मौका चला गया। एक-दो स्थानों को छोड़कर नगर के प्रमुख स्थान और चौराहे होर्डिंग के बिना सूने रहे। लेकिन, इन समर्पित सेवकों ने हार नहीं मानी और सांसद के साथ खिंचवाए पुराने फोटो सोशल मीडिया पर पोस्ट करके सांसद को जन्मदिन की बधाई दे डाली! इनमे ऐसे समर्थक और स्वयं-भू नेता भी थे, जो अपने आपको सांसद का करीबी और हितैषी प्रचारित करते हैं, वो भी इसमें पीछे नहीं रहे।

प्रभारी पीआरओ और महिला कर्मचारियों में युद्ध विराम!
जिला जनसम्पर्क कार्यालय एक साल से जनसंपर्क अधिकारी का इंतजार कर रहा है। यहां पदस्थ जनसंपर्क अधिकारी का कोरोना संक्रमण से निधन होने के बाद से ही यह पद खाली है। किसी अधिकारी की नियुक्ति नहीं होने के बाद, कलेक्टर ने स्थानीय स्तर पर मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत कार्यालय के सांख्यिकी अन्वेषक सुधीर कुशवाह को अतिरिक्त प्रभार देते हुए, प्रभारी जनसंपर्क अधिकारी (पीआरओ) बना दिया।

इन्हीं प्रभारी पीआरओं का महिला कर्मचारियों के साथ काम के बंटवारे को लेकर कुछ महीनों से विवाद चल रहा था। अब वो इतना बढ़ गया कि कलेक्टर तक जा पहुंचा। महिला कर्मचारियों ने यहां तक कह दिया कि यदि कुशवाह पीआरओ का काम करेंगे तो हम कलेक्ट्रेट कार्यालय में अटैच हो जाएंगे! लेकिन, इनके साथ काम नहीं करेंगे। मामला बढ़ता देखकर प्रभारी पीआरओ कलेक्टर के बंगले पहुंच गए। दोनों महिला कर्मियों को बंगले पर हाजिर होने का आदेश दिया।

लेकिन, एक महिला कर्मी के मौजूद न होने के कारण उस दिन मामला टल गया। कलेक्टर के आदेश पर दोनों महिला कर्मचारी दूसरे दिन कलेक्टर के पास पहुंच गई और अपनी आपबीती सुनाई। कलेक्टर के समझाने के बाद ये विवाद विवाद शांत हुआ। लेकिन, इसे युद्धविराम माना जा रहा है, युद्ध अभी समाप्त नहीं हुआ!

इस समझौते के पीछे क्या भय भी एक कारण!
झाबुआ के कांग्रेस विधायक कांतिलाल भूरिया उनके पुत्र विक्रांत भूरिया का अलीराजपुर के पूर्व कांग्रेस जिला अध्यक्ष महेश पटेल से चल रहा विवाद अब सुलझता दिखाई दे रहा है। भगोरिया के दौरान दोनों के बीच मसला थाने तक पहुंच गया था। सुलह की चर्चा अलीराजपुर से झाबुआ तक चल रही है। लेकिन, किसी को उम्मीद नहीं थी कि यह मामला इतनी जल्दी सुलझ जाएगा। महेश पटेल और विधायक पुत्र विक्रांत भूरिया ने सार्वजनिक तौर पर सुलह को लेकर अपने-अपने बयान जारी किए। माना जा रहा है कि सुलह का रास्ता प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के जरिए ही निकला होगा।

Jhabua Chaupal: पुराने फोटो से मना सांसद का जन्मदिन!

जबकि, अंदर की बात यह है कि दोनों ही अब राजनीतिक कारणों से विवाद को आगे बढ़ाना नहीं चाहते थे। विवाद बढ़ने से पुलिस और न्यायालय की कार्यवाही से भूरिया और पटेल राजनीतिक भविष्य को बचाने को तवज्जो दे रहे थे। क्योंकि, दोनों के एक-दूसरे से राजनीतिक हित भी जुड़े हैं। दोनों पक्षों के विवाद होने के बाद ही अलीराजपुर कलेक्टर ने कांग्रेस के दो बड़े नेता नारायण अरोडा ओर कमरू अजनार को जिला बदर करने की कार्रवाही की थी। इसके बाद से ही कांग्रेसी भयभीत थे। पटेल और भूरिया नहीं चाहते थे कि इस तरह की कार्यवाही उनके समर्थकों के साथ भी हो!

आसान व्यवस्था बनी, पर शंका बरक़रार!
भूमाफिया, दलाल और कुछ धंधेबाज कर्मचारी कलेक्टर सोमेश मिश्रा की कार्यप्रणाली से नाखुश हैं। क्योंकि, कलेक्टर के एक आदेश ने इनकी दलाली पर डंक मार दिया। लेकिन, इस आदेश से लोग खुश हैं। दरअसल जिले मे जमीनों, की खरीदी बिक्री के लिए कलेक्टर से 165-6(ख)की अनुमति लेना पड़ती थी। यह अनुमति मिलने के बाद ही जमीन की रजिस्ट्री होती है। लंबे समय से अनुमति देने का काम एडीएम कार्यालय से होता था।

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ख़ास बात ये है कि इस काम के लिए कई व्यापारी दलाली करते थे। इस कारण रजिस्ट्री करवाने वाले को दलालों को अच्छी खासी राशि देना पड़ती थी। लेकिन, अब सामान्य प्रक्रिया के तहत कलेक्टर द्वारा अनुमति दी जा रही है। शाम 5 बजते ही कलेक्टर चेंबर के सामने आवेदक खडे हो जाते है। कलेक्टर स्वयं आवेदनकर्ता से चर्चा करने के बाद 165- 6 (ख) की अनुमति देते है।

कलेक्टर की इस व्यवस्था से दलालों और इस व्यवस्था से जुड़े कर्मचारियों का खर्चा-पानी बंद हो गया। लेकिन, कांग्रेस और भाजपा के कुछ लोगों का कहना है कि यह सब दिखावा है। बड़े काम अभी भी सेटिंग से ही हो रहे हैं। एक आवेदनकर्ता ने तो कलेक्टर को ही कह दिया कि आपकी यह व्यवस्था सही है, लेकिन इससे कोई खास फर्क नहीं पडा। एसडीएम आरआई और पटवारी बिना पैसे लिए आप तक फाईल ही नहीं पहुंचाते! इसका मतलब है कि अभी भी इस व्यवस्था में कहीं न कहीं बैरियर लगा है!

अभी बंद नहीं हुआ जगजाहिर घोटाला!
भले ही ये मान लिया गया हो कि जिले के स्कूलों में आदिवासी छात्रों को दी जाने वाली खेल सामग्री की सप्लाई का घोटाला रुक गया, पर ऐसा नहीं है! ये गड़बड़ घोटाला अभी भी जारी है। फर्क सिर्फ इतना है कि ये सतह के नीचे चला गया! इस घोटाले के उजागर होने से जिनको नुकसान हुआ, वो अब बिलबिला रहे हैं। मामला उजागर होने के बाद मुख्यमंत्री के आदेश पर प्रशासन ने जांच करके खेल सामग्री सप्लाई करने वाले दुकानदारों और विभाग के अधिकारियों पर कार्यवाही तो की, लेकिन इस काम में पारदर्शिता नहीं रखी गई। जबकि, ये जगजाहिर है कि इस बड़े घोटाले की शुरुआत मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत कार्यालय से हुई है। चर्चा यह भी है कि लगभग डेढ़ करोड़ हजम करने की एक नियोजित योजना भाजपा नेताओं और अधिकारियों ने बनाकर तैयार रखी है। घोटाले की परते खुलने के बाद भाजपा ओर कांग्रेस में भी आरोप-प्रत्यारोप की बमबारी शुरू हो गई। भाजपा के जिला उपाध्यक्ष भानू भूरिया ने खेल सामग्री घोटाले में कांग्रेस के शामिल होने की बात कही, तो जवाब में कांग्रेस विधायक कांतिलाल भूरिया ने भानू भूरिया का नाम लिए बिना कहा कि भाजपा के छुट भैया नेता अब कांग्रेस को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं।