झांसी की झलकारी और बाबई के पंडित माखनलाल …

494

झांसी की झलकारी और बाबई के पंडित माखनलाल 

जा कर रण में ललकारी थी,वह तो झांसी की झलकारी थी। गोरों से लड़ना सिखा गई, है इतिहास में झलक रही,वह भारत की ही नारी थी।

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने उन्हीं  झलकारी बाई के शौर्य को इन शब्दों में पिरोया है, जिसने खुद को रानी लक्ष्मीबाई की तरह दिखाकर गोरों को भ्रमित किया था। वर्ष 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में रानी लक्ष्मीबाई के अंग्रेजी सेना से घिर जाने पर झलकारी बाई ने सूझ-बूझ, स्वामी-भक्ति और राष्ट्रीयता का परिचय दिया था। इस घटना का उल्लेख जनकवि बिहारी लाल हरित ने ‘वीरांगना झलकारी’ काव्य में कुछ इस तरह किया है।

लक्ष्मीबाई का रूप धार, झलकारी खड़ग संवार चली। वीरांगना निर्भय लश्कर में, शस्त्र अस्त्र तन धार चली॥

झलकारी युद्ध के दौरान ‎4 अप्रैल 1858 को वीरगति को प्राप्त हुईं। वहीं इस वीरांगना झलकारी बाई का जन्म 22 नवम्बर 1830 को झाँसी के पास भोजला गाँव में हुआ था। वे रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना में महिला शाखा की सेनापति थी। रानी लक्ष्मीबाई की हमशक्ल भी थी। इस कारण शत्रु को गुमराह करने के लिए रानी के वेश में युद्ध भी करती थी। झलकारी बाई भारत की सबसे सम्मानित महिला सैनिकों में से एक हैं, जिन्होंने वर्ष 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनकी गाथा आज भी बुंदेलखंड की लोक- कथाओं और लोक-गीतों में सुनी जा सकती है। केन्द्र सरकार ने 22 जुलाई 2001 को उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया है।

एक तरफ महान योद्धा झलकारी बाई ने 4 अप्रैल 1857 को बलिदान दिया था, तो दूसरी तरफ महान कवि, कलम के योद्धा तथा प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी पंडित माखनलाल चतुर्वेदी का 4 अप्रैल 1889 को बाबई में जन्म हुआ था। बाबई को पंडित माखनलाल चतुर्वेदी के नाम पर अब माखननगर के नाम से जाना जाता है। “कर्मवीर” और “प्रभा” के प्रतापी संपादक तथा राष्ट्रीय काव्यधारा के महत्वपूर्ण स्तंभ रहे माखन दादा के सम्मान में महात्मा गांधी भी नर्मदापुरम जिले में आए थे। माखन दादा झण्डा सत्याग्रह के विजयी सेनापति थे। वर्ष 1921-22 के असहयोग आंदोलन में उन्होंने सक्रिय रूप से हिस्सा लिया और जेल भी गए। उन्हें सागर विश्वविद्यालय से वर्ष 1959 में डीलिट की मानद उपाधि से विभूषित किया गया। साथ ही वर्ष 1955 में काव्य संग्रह हिमतरंगिणी के लिए “साहित्य अकादमी पुरस्कार” और भारत सरकार से वर्ष 1963 में पद्मभूषण से अलंकृत किया गया। 30 जनवरी 1968 को पंडित माखनलाल चतुर्वेदी का निधन हुआ था। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में उनके नाम पर पंडित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय स्थापित किया गया, जिससे अध्ययन करने वाले विद्यार्थी पत्रकारिता के क्षेत्र में परचम फहरा रहे हैं।

यह दोनों महान विभूतियां अलग-अलग काल में देश की आजादी के संग्राम में अपना अमूल्य योगदान देकर अमर हो गईं। झलकारी की वीरता की गाथा देशभक्ति का पर्याय है तो माखन दादा का त्याग स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। राष्ट्रभक्ति के यह सशक्त हस्ताक्षर यह सीख देते हैं कि राष्ट्र ही सर्वोपरि होता है और राष्ट्र की गरिमा को सहेजकर रखना हर भारतवासी का परम कर्तव्य है। यह राष्ट्रप्रेम दादा पंडित माखन लाल चतुर्वेदी की रचना “पुष्प की अभिलाषा” में हर राष्ट्रभक्त की प्रेरणा का स्रोत बन जाता है।

इस रचना का यह अंश-
चाह नहीं, मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक!
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक।