उत्तर प्रदेश की जनता का फैसला एकदम स्पष्ट है कि यूपी में रहना है तो योगी योगी कहना है। स्पष्ट यह भी है कि परिवारवाद-जातिवाद और बाहुबलियों की राजनीति के दिन अब काफी हद तक लद गए, मजहबी सियासत के पर कतरने की अब बारी है। न किसान आंदोलन विपक्ष के कुछ खास काम आय़ा न सोशल इंजीनियरिंग। गरमी और चरबी का क्या होगा, सीएम योगी आदित्यनाथ का बुलडोजर तो पूरी रफ्तार से चलने को फिर तैयार है। इस बार योगी कैबिनेट का रंग और मिजाज भी बदला-बदला सा नजर आए तो कोई आश्चर्य़ नहीं। और सबसे महत्वपूर्ण तो ये कि 2024 अब इतना आसान नहीं रह गया विपक्ष के लिए।
बात पहले चर्चित नारे की। गोरखपुर शहर में पिछले 25 वर्षों से नारा गूंजा करता था, ‘गोरखपुर में रहना है तो योगी, योगी कहना है’। इसलिए कि यहां का रिकॉर्ड रहा है कि जिस पर भी योगी का हाथ रहता है वह विजयी होता है। वोटर चुनाव में जाति को देखकर नहीं बल्कि गोरखनाथ मंदिर यानी योगी आदित्यनाथ के नाम पर वोट देते हैं। इस बार विधानसभा चुनाव में भी यही हुआ। सीएम और गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ न केवल खुद रिकॉर्ड मतों से जीते, गोरखपुर-देवरिया की सभी विधानसभा सीटों पर भी कमल खिल गया। डबल इंजन में मोदी-योगी का ऐसा जादू चला कि भाजपा ने समूचे प्रदेश में ही इतिहास रच दिया।
इस नारे का क्या मतलब है? ये डराने वाला नहीं है?’ इस सवाल का जवाब सीएम योगी ने इस प्रकार दिया था, ‘भगवान कृष्ण ने भी अर्जुन को कहा था कि योगी बनो। यदि प्रदेश का हर नागरिक योगी बन जाएगा तो प्रदेश का कायाकल्प हो जाएगा, विकास भी हो जाएगा और सुरक्षा भी हो जाएगी।’
चुनाव परिणाम ने दूसरे दलों के लिये मानक स्थापित किया है। अब जाति, धर्म, परिवारवाद के भरोसे राजनीति कठिन है। बड़े-बड़े दिग्गज और अवसरवादी बड़बोले नेता चुनावी समर में खेत रहे। यह भी आश्चर्यजनक रहा कि किसानों के मुद्दे पर सबसे ज्यादा चर्चा में रहने वाले लखीमपुर खीरी जिले में भाजपा ने क्लीन स्वीप किया। बिकरू कांड के बहाने ब्राह्मणों की नाराजगी की हवा भी निकल गई उन्नाव में जहां जिले की सभी छः विधानसभा सीटें भाजपा ने जीत लीं।
हालांकि, पिछले चुनाव की तुलना में भाजपा को इस बार महज करीब दो से तीन फीसदी वोट शेयर का फायदा हुआ है। इस बार भाजपा को 42.4 फीसदी वोट मिले हैं, जबकि सपा के वोट शेयर में बड़ा इजाफा हुआ है और यह आंकड़ा 31.6 पर चला गया है। बसपा को पिछली बार से भी अधिक नुकसान हुआ है, क्योंकि मायावती की पार्टी का वोट शेयर इस बार 12.7 फीसदी दर्ज किया गया है। इसी तरह कांग्रेस के वोट शेयर में भी गिरावट आई है और 2.43 फीसदी दर्ज किया गया है। इसके मायने हैं कि कांग्रेस-बसपा के वोट शेयर गिरने का फायदा सपा को मिला। समाजवादी पार्टी ने यूपी के अलग-अलग हिस्सों में जाति आधारित क्षेत्रीय दलों से गठबंधन किया था। सपा को अनुमान था कि वह जाति आधारित चक्रव्यूह में पूरी भाजपा को फंसा लेगी, लेकिन अमित शाह ने दो ऐसे दांव चले कि अखिलेश यादव के मंसूबे पर पानी फिर गया।
माना जा रहा था कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन की वजह से भाजपा को भारी नुकसान होगा। विभिन्न सर्वे आधारित खबरों में राष्ट्रीय लोकदल और समाजवादी पार्टी के गठबंधन को जनता का भरोसा मिलने की बात कही जा रही थी। ऐसे में अमित शाह ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार के दौरान राष्ट्रीय लोकदल के प्रमुख जयंत चौधरी को भाजपा में आने का न्योता दे दिया। साथ ही कह दिया कि जयंत चौधरी अच्छे नेता हैं, लेकिन गलत गठबंधन में हैं। अमित शाह के इस बयान से जाट वोटरों में कंफ्यूजन पैदा हो गया। हिजाब विवाद से जाट पहले से ही हिले हुए थे।
इसी प्रकार, अखिलेश यादव की सोशल इंजीनियरिंग का तोड़ निकाला अमित शाह ने दलितों की सबसे बड़ी नेता मायावती के लिए सॉफ्ट कॉर्नर दिखाकर। चुनाव प्रचार और टीवी इंटरव्यू में अमित शाह कहते रहे कि मायावती अपनी यूपी की पॉलिटिक्स में रिलेवेंट हैं और बनी रहेंगी। शाह ने कहा कि बसपा को सीट कितने मिलेंगे ये कहा नहीं जा सकता है, लेकिन उनकी पार्टी को वोट जरूर मिलेंगे क्योंकि उनकी प्रासंगिकता बनी हुई है। अमित शाह ने ये भी कहा कि यूपी के मुसलमान भारी संख्या में बसपा को वोट करेंगे।
अमित शाह के इस बयान के बाद बसपा प्रमुख मायावती ने कहा, ‘मैं समझती हूं यह उनका बड़प्पन है कि उन्होंने जमीनी सच्चाई को स्वीकार किया है। मैं उन्हें बताना चाहती हूं कि पूरे उत्तर प्रदेश में बसपा को दलितों और मुस्लिमों का ही नहीं, बल्कि अति पिछड़े वर्गों का भी समर्थन मिल रहा है। सवर्ण जातियां भी साथ हैं। बसपा को सर्वसमाज का वोट मिल रहा है। मायावती ने दावा किया कि वे 2007 की तरह पूर्ण बहुमत के आधार पर अपनी सरकार जरूर बनाएंगी। नतीजा, मुस्लिम समझने लगे कि मायावती चुनाव बाद भाजपा के साथ जा सकती हैं, इसलिए बसपा प्रत्याशी को किसी भी हाल में वोट नहीं देना है। वहीं जिन सीटों पर बसपा के प्रत्याशियों के जीतने की संभावना कम दिखी वहां जाटव सहित ज्यादतर दलितों ने भाजपा प्रत्याशी को अपनी पसंद बनाया।
झूठ बोले कौआ काटेः मोदी-योगी की छवि, सबका साथ सबका विकास, जनोपयोगी कार्यक्रमों और बुलडोजर अभियान आदि-इत्यादि ही भाजपा की एतिहासिक जीत के मूल में रहे, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। शेष कमी अमित शाह की चाणक्य रणनीति ने पूरी की। अब जबकि डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य चुनाव हार चुके हैं और दूसरे डिप्टी सीएम डॉ. दिनेश शर्मा विधानसभा के मैदान से बाहर रहे तो नई कैबिनेट में योगी आदित्यनाथ का एकतरफा वर्चस्व रहने से इनकार नहीं किया जा सकता। योगी की दमदार छवि को प्रचंड जनसमर्थन से उपजा उत्साह और अच्छा काम करने का संबल तो बनेगा ही, गुंडे-माफियाओं की बची खुची गरमी शांत करने का काम भी करेगा। जय बाबा गोरखनाथ की !
कोविड में निर्वाचन आयोग के नवाचारः कोरोना और नए वैरिएंट को देखते हुए तथा पश्चिम बंगाल के सबक से पांच राज्यों में चुनाव कराना निर्वाचन आयोग के लिए बड़ी चुनौती थी। आयोग ने निर्वाचन के दौरान रैलियों, रोड शो, नुक्कड़ सभा, यात्रा पर एक निश्चित अवधि के लिए प्रतिबंध लगाए, तो विजय रैली या जुलूस को सशर्त अनुमति प्रदान की। डोर-टु-डोर कैंपेन में अधिकतम 5 लोग ही शामिल हो सकते थे। आयोग ने राजनीतिक दलों के स्टार प्रचारकों की संख्या में भी 25% की कटौती कर दी। नामांकन कक्ष तक जाने वालों की संख्या में 60% कटौती कर दी गई।
बोले तो, बूथ पर भी मतदान के दिन टोकन सिस्टम लागू किया, जिससे लाइन लगाने की जरूरत न पड़े। आयोग ने कोविड संक्रमण से सुरक्षित रखने के लिए नामांकन कक्ष तक प्रत्याशी के साथ जाने वालों की संख्या भी घटा दी। सभी राज्यों में एक घंटे का मतदान टाइम बढ़ाया गया। प्रत्याशियों को ऑनलाइन नॉमिनेशन की सुविधा दी। वोटिंग प्रतिशत बढ़ाने के लिए इस बार आयोग ने 80 वर्ष से अधिक के बुजुर्गों, गंभीर बीमारी से ग्रसित मरीजों, कोरोना पॉजिटिव मरीजों का वोट घर में ही डलवाने की विशेष व्यवस्था की। निर्वाचन में तीन कैटेगरी में पोस्टल बैलेट पेपर की व्यवस्था की गई। सुविधा ऐप बनाया गया, जिसके माध्यम से उम्मीदवार सीधे आयोग के ऐप से आवेदन कर सकते थे।
दिव्यांगों के लिए भी अलग ऐप बनाया गया जिससे वो ट्रांसपोर्ट या व्हील चीयर की मांग कर सकते थे। जनभागीदारी ऐप सी विजिल ऐप बनाया गया जहां आयोग को फोटो और वीडियो अपलोड कर बताया जा सकता है कि फलां जगह पैसे बांटे जा रहे हैं या यहां धांधली हो रही है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुशील चंद्रा सहित निर्वाचन प्रक्रिया से जुड़े पांचों राज्यों के लाखों कर्मचारियों और सुरक्षा कर्मियों की टीम को साधुवाद !
और ये भी गजबः
निर्वाचन आयोग आईआईटी मद्रास के साथ मिलकर एक ऐसी नई प्रौद्योगिकी विकसित करने पर काम कर रहा है, जिसमें अपने निर्वाचन क्षेत्र से दूर किसी अन्य शहर या राज्य में होने पर भी मतदाता मतदान कर पाएगा। मीडिया खबरों के अनुसार प्रॉजेक्ट फिलहाल शोध और विकास के चरण में है और इसका मकसद ‘प्रोटोटाइप’ विकसित करना है। मतदाता को इस सुविधा का लाभ उठाने के लिए पहले से तय वक्त पर नियत स्थल पर पहुंचना होगा। इस व्यवस्था का मतलब घर से मतदान करना नहीं है।
दूरस्थ मतदान का प्रयोग ई-वोटिंग के रूप में सबसे पहले 2010 में गुजरात के स्थानीय निकाय चुनाव में किया गया था। इसमें राज्य के प्रत्येक स्थानीय निकाय के एक-एक वार्ड में ई-वोटिंग का विकल्प मतदाताओं को दिया गया था। इसके बाद 2015 में गुजरात राज्य निर्वाचन आयोग ने अहमदाबाद और सूरत सहित छह स्थानीय निकायों के चुनाव में मतदाताओं को ई-वोटिंग की सुविधा से जोड़ा था। हालांकि व्यापक प्रचार न हो पाने के कारण इस चुनाव में 95.9 लाख पंजीकृत मतदाताओं में से सिर्फ 809 मतदाताओं ने ही ई-वोटिंग का इस्तेमाल किया था।
ओपी रावत ने की थी पहलः देशव्यापी स्तर पर ई-वोटिंग लागू करने के लिए पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त ओपी रावत के कार्यकाल में मतदाता पहचान पत्र को ‘आधार’ से जोड़कर सीडेक के सहयोग से ई-वोटिंग सॉफ्टवेयर विकसित करने की परियोजना को आगे बढ़ाया गया था। आधार को मतदाता पहचान पत्र से लिंक करने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के कारण यह परियोजना लंबित थी लेकिन हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने आधार संबंधी पूर्व निर्धारित दिशा-निर्देशों के तहत इसे मतदाता पहचान पत्र से जोड़ने की मंजूरी दे दी है। जय हो !