झूठ बोले कौआ काटे: नौकरी छोड़ खेती से हो रहे मालामाल
लोग पढ़-लिखकर नौकरी तो करना चाहते हैं, लेकिन कोई खेती नहीं करना चाहता। कोई सफल डॉक्टर बनना चाहता है तो कोई सफल इंजीनियर या फिर सफल बिजनेस मैन। ऐसे में कुछ युवा, कुछ किसान ऐसे भी हैं जो खेती में समृद्धि का अन्न, सब्जी और फल-फूल खिला रहे। मालामाल हो रहे। इन्हीं बातों को लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आज काशी हिंदू विश्वविद्यालय में 7वां आदर्श ग्राम सम्मेलन का उद्घाटन करेंगे।
7वां आदर्श ग्राम सम्मेलन तीन दिन चलेगा। इसमें दक्षिण भारत के कृषि विशेषज्ञों की टीम पूर्वांचल के किसानों और नीति नियंताओं को खेती-किसानी के गुर-नवाचार सिखाएगी। दक्षिण भारत के 4 राज्यों के 200 से ज्यादा गांवों को आदर्श रूप दिया जा चुका है। वहीं अब उत्तर भारत के पूर्वांचल से इसकी शुरुआत की जा रही है। सम्मेलन में अमेरिका और यूरोप समेत 20 देशों के 800 से ज्यादा शोधार्थी और वैज्ञानिक शामिल होंगे। सम्मेलन का मुख्य विषय ग्रामीण विकास में सर्वोत्तम प्रथाओं पर ध्यान देना एवं ‘सतत विकास हेतु ग्रामीण प्रत्यावर्तन है’।
बोले तो, कोई भी व्यक्ति जब परम्परागत पद्धति से हटकर किसी नवाचार की शुरूआत करता हैं, तो शुरू में आस-पास के लोग उसका मजाक उड़ाते हैं। लेकिन, जब वह नवाचार एक अपलब्धि में बदल जाता हैं, तो लोग न सिर्फ उसकी प्रशंसा करते हैं, बल्कि उसका अनुसरण भी करते हैं। कुछ ऐसा ही कर दिखाया मध्य प्रदेश के सागर निवासी 33 वर्षीय युवक आकाश चौरसिया ने।
किराए की जमीन पर खेती शुरू कर करने वाले आकाश चौरसिया की मल्टी फार्मिंग पद्धति नजीर बन गई है। अपनी जमीन नहीं थी लेकिन, उसके पास सोच थी- आत्म निर्भर किसान, वानिकी, पर्यावरण, गाय, दो आना लगाकर सोलह आना की आय और रासायनिक खेती को टाटा। आज तिली गांव में उनका 16 एकड़ का फार्म है। यह युवा किसान पिछले 5 साल से खेत में एक साथ 4 तरह की फसलों को उगा रहा है। इससे हर साल 4 से 5 लाख रुपए की कमाई हो रही है। मल्टी फार्मिंग के तहत पूरे साल फसल की पैदावार हो रही है। आकाश चौरसिया ने खेती से 40-50 लाख रुपये कमाकर 32000 किसानो को फ्री ट्रेनिंग दिया। उसकी खेती देखने 22 देशों के लोग आ चुके हैं। यू-ट्यूब पर उसके सैकड़ों वीडियो हैं। उसके विचारों को नीति आयोग ने ले लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आकाश चौरसिया को पुरस्कृत कर चुके हैं।
बिजनौर, उत्तर प्रदेश के धामपुर क्षेत्र के गांव सीकरी निवासी सुधीर त्यागी के पुत्र लक्ष्य त्यागी ने प्राइवेट नौकरी की जगह पिता के साथ जैविक खेती को अपना लक्ष्य बनाया। उन्होंने जैविक खेती कर खर्च कम और उत्पादन अधिक प्राप्त कर अपनी आय दोगुनी कर ली है। बिजनौर के ही ग्राम अगरी निवासी प्रगतिशील किसान अखिलेश चौधरी कई साल से फूलों की खेती कर रहे हैं। अखिलेश चौधरी एक नामचीन कंपनी में अच्छे पैकेज पर नौकरी करते थे। 2017 में नौकरी छोड़कर गुलदावरी, रजनीगंधा, ग्लेडियोलस आदि फूलों की खेती कर रहे हैं। उनके फूल स्थानीय बाजार के साथ दिल्ली, एनसीआर और उत्तराखंड के बाजार में बिकने जाते हैं।
लखनऊ का पड़ोसी जिला बाराबंकी कभी अफीम का गढ़ माना जाता था, लेकिन अब ये जिला देशी-विदेशी फूलों की बेल्ट के रूप में जाना जाने लगा है। इस बदलाव के पीछे यहां के किसानों की मेहनत और लगन है, जिन्होंने परंपरागत खेती से हटकर सब्जी और फूलों की खेती करने की शुरुआत की।
राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले की पीलीबंगा तहसील के 24 एसटीजी गांव निवासी जैविक गुरु भंवर सिंह ने मात्र 1 बीघा जमीन में वो कर दिखाया जो बड़े-बड़े जमींदार नहीं कर सके। भंवर सिंह ने अपने नवाचार में जहां खेती की लागत कम की, वहीं बीज कम डालकर उपज भी ज्यादा ली। यही नहीं ऑर्गेनिक खेती कर सिंह फसल की कीमत भी भरपूर ले रहे हैं। ऐसा प्रयोग उन्होंने पहले मध्यप्रदेश के उज्जैन में अपने दोस्त योगेंद्र कौशिक की जमीन पर फसल उगाकर किया और बाद में अपने खेत में किया। जैविक गुरु भंवर सिंह ने जहां बीज की लागत को बहुत ज्यादा कम कर दिया वहीं ऑर्गेनिक खेती होने के कारण इसमें महंगी दवा और पेस्टीसाइड की भी आवश्यकता नहीं होती। जरूरत पड़ने पर गोबर जैसी ऑर्गेनिक और सस्ती खाद की ही जरुरत पड़ती। भंवर सिंह ऑर्गेनिक खेती के राजस्थान सरकार के ब्रांड एम्बेसडर भी हैं. साथ ही कई यूनिवर्सिटी से उनको डॉक्टरेट की उपाधि भी मिली है।
रायपुर (छत्तीसगढ़) की श्रीमती पुष्पा साहू अपने घर की छत पर हाईटेक तकनीकों का प्रयोग करते हुए गोभी, बैंगन, कुंदरू, कांदा, भाजी, टमाटर, लौकी, मिर्च, पालक भाजी, मूली, धनिया, पुदीना आदि सब्जियों, गेंदा, गुलाब, मोगरा, नीलकमल आदि पुष्पों के साथ ही सेब, अमरूद, केला, आम, मौसंबी, नींबू, चीकू, पपीता और मुनगा फलों की खेती कर रही हैं। वे छत पर बागवानी कर परिवार को केमिकल मुक्त सब्जियां खिला रही हैं, साथ ही महीने में लगभग पांच सौ से हजार रुपए बचा रही हैं। मात्र 2-3 हजार रुपए खर्च करने से आप पूरे साल भर मौसमी जैविक सब्जियों का स्वाद ले सकते हैं। इसी प्रकार 5-7 हजार रुपये खर्च कर आम, अमरूद, केला और चीकू जैसे फलों की भी खेती छत में की जा सकती है।
लखनऊ के ओमेक्स सिटी निवासी सिंचाई विभाग के सेवानिवृत्त अधीक्षण अभियंता के.पी. सिंह ने भी अपने घर की छत पर गमलों मे विभिन्न प्रकार की सब्जियां और 36 वर्ग फीट के हिस्से को खेतनुमा बना कर पपीता-नींबू इत्यादि जैविक पद्धति से उगा रखा है। इस खेत से पपीता के एक वृक्ष से 150 किलो फल अब तक मिल चुका है। कद्दू, लौकी, तरोई आदि मौसमी सब्जियां भी जाल के सहारे खूब फली हैं। श्री सिंह कहते हैं कि घर का काम तो चलता ही है, इष्ट-मित्रों में बांटने का सुख भी मिलता है।
कोरोना काल में जोधपुर निवासी दीपक वैष्णव को सेहत की चिंता सताने लगी। किसी भी संक्रमण या रोग से मुकाबले के लिए शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता का होना जरूरी है। इसी को ध्यान में रखते हुए दीपक और उसके तीन दोस्तों ने हाइड्रोपोनिक्स तकनीक के सहारे घर में ही सब्जियां उगाने की ठान ली। घरेलू आवश्यकता की पूर्ति के लिए घर की बॉलकनी से शुरू किया गया यह प्रयास छत पर बड़ा आकार लेता गया और अब व्यावसायिक रूप में उन्हें मालामाल भी कर रहा।
झूठ बोले कौआ काटेः
जिस देश की दो-तिहाई आबादी अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर करती है, वहां कृषि के महत्व को कमजोर करके नहीं आंका जा सकता। देश के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 17 फीसदी कृषि से आता है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस पर देश के 1.3 अरब लोगों का पेट भरने का जिम्मा है।
मार्च, 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय कृषि नीति में ऐतिहासिक बदलाव की घोषणा करते हुए 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने का वायदा किया, जो खाद्य उत्पादन में वृद्धि की प्रमुख भारतीय नीति को बदल देगा। यह एक ऐसा लक्ष्य है, जिसे कई विशेषज्ञों ने पहुंच से बाहर बताया, हालांकि उन्होंने प्राथमिकता में बदलाव की सराहना की।
दरअसल, हरित क्रांति एक मामले में विफल रही। उत्पादकता और उत्पादन में वृद्धि के साथ खासकर छोटे और सीमांत किसानों की आय में वृद्धि नहीं हुई, जिनकी आबादी कुल कृषकों की अस्सी फीसदी है। पिछले दो दशकों में छोटे और सीमांत किसानों की आय में तीस फीसदी की कमी आई। किसानों की आय बढ़ाने के लिए नई कृषि नीति की घोषणा सरकार ने सही वक्त पर की। छोटे एवं सीमांत किसानों को वित्त, प्रौद्योगिकी, बाजार और जोखिम प्रबंधन उपकरण तक व्यापक पहुंच उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने डिजिटल नवाचार पर आधारित कई पहलों की घोषणा की। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा देश में वर्ष 2021 से वर्ष 2025 तक के लिये डिजिटल कृषि मिशन की शुरुआत की गई है।
वैसे तो पुरानी परंपराओं के मुताबिक घर के बुजुर्ग किसानों का हाथ बंटाकर ही किसान परिवार के बच्चे खेती सीख जाते हैं। लेकिन, आधुनिक दौर में किसान परिवार के बच्चों को खेती की आधुनिक तकनीकों से जोड़ना बेहद जरूरी है, ताकि वे समय के साथ चलकर आधुनिक खेती की तकनीकों को अपना सकें। सिर्फ किसान परिवार ही नहीं, साधारण युवा भी खेती-किसानी सीखकर किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी के पैकेज से ज्यादा पैसा और सुकून कमा सकते हैं।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अनुसार नमामि गंगे योजना में प्रदेश के 27 जिलों में गंगा के तटवर्ती 10 किमी के अंदर प्राकृतिक खेती में ही औद्यानिकीकरण और कृषि वानिकी को शामिल करते हुए दो लाख से अधिक किसानों को जोड़ने के एक बड़ा अभियान चलाया जा रहा है। निश्चय ही आज से शुरू 7वां आदर्श ग्राम सम्मेलन इस कड़ी में मील का पत्थर सिद्ध होगा।
और ये भी गजबः
राजस्थान में अजमेर के मूल निवासी राजेंद्र सिंह भारतीय रेलवे में कार्यरत हैं और उनकी पत्नी, चंचल कौर मंडल रेलवे अस्पताल, अजमेर (उत्तर- पश्चिमी रेलवे) में चीफ मैट्रन के पद पर कार्यरत थीं। राजेंद्र सिंह के अनुसार, कुछ साल पहले उनकी बहन को कैंसर डिटेक्ट हुआ और बाद में उनका देहांत हो गया। डॉक्टर्स ने उनके कैंसर की एक सबसे बड़ी वजह बताई आजकल का लाइफस्टाइल, हेक्टिक रूटीन, स्ट्रेस, केमिकल युक्त खान-पान आदि। इस बात ने हमें सोचने पर मजबूर कर दिया कि हम किसी बड़े शहर में रहकर भले ही कितना भी ज्यादा पैसा कमा रहे हों, लेकिन हमारा जीवन स्तर ही अच्छा नहीं है। न पीने को स्वच्छ पानी, न साफ़ हवा और आजकल तो लोगों के घरों में धूप भी नहीं आती। तो फिर इतना पैसा कमाने का क्या फायदा?
उन्होंने इस पर विचार किया और फिर इंदौर के पास एक गांव, असरावाद बुजुर्ग में ज़मीन खरीदी। साल 2016 में चंचल कौर ने अपनी सरकारी नौकरी छोड़ दी। जब उन्होंने नौकरी छोड़ी तो बहुत से नाते-रिश्तेदारों व उनके कुछ साथी अफसरों ने उन्हें कहा कि वह बेवकूफी कर रही हैं। साल 2017 में चंचल अपने बेटे के साथ इंदौर शिफ्ट हो गयीं।
राजेंद्र ने पद्म श्री सुभाष पालेकर जी से प्राकृतिक खेती की ट्रेनिंग ली। साथ ही, पूरे परिवार ने पद्मश्री डॉक्टर जनक पलटा मिगिलिगन से सोलर कुकिंग, सोलर ड्राईंग और जीरो-वेस्ट लाइफस्टाइल जीने की कला भी सीखी। अपने साथ-साथ इस दम्पति ने अपने 11 वर्षीय बेटे, गुरुबक्ष सिंह को भी इन सब चीज़ों की ट्रेनिंग दिलाई। जैविक खेती से लेकर अन्य सामाजिक गतिविधियों तक, हर जगह गुरुबक्ष पूरे मन से काम करता है। और तो और, गाँव में उसके अब खूब सारे दोस्त हैं, जिन्हें वह सोलर कुकिंग के या फिर खेती के तरीके सिखाता रहता है। फिर खेल-खेल में उनसे भी कुछ न कुछ सीखता है।
राजेंद्र और चंचल जब कभी खेत पर दिन भर के लिए जाते है तो अपना खाना पैराबोलिक सोलर कुकर पर ही बनाते है। घर के लिए सब्जियां भी वे अपने खेत में ही जैविक तरीके से उगाते हैं। टमाटर, भिन्डी, लाल अम्बाडी, ड्रमस्टिक, कटहल, प्याज जैसी सब्जियां वे सोलर ड्राई कर के रख लेते है। उनकी कोशिश है कि वे ‘जीरो-वेस्ट’ के कांसेप्ट के साथ ज़िन्दगी जीयें।