Jhooth Bole Kaua Kaate: शासन के इकबाल पर सुप्रीम हथौड़ा

Jhooth Bole Kaua Kaate: शासन के इकबाल पर सुप्रीम हथौड़ा;

उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात और  बिहार के बाद दिल्ली में पहली बार अतिक्रमण को लेकर शासन का इकबाल दिखा। जहांगीरपुरी में तीन घंटे तक अतिक्रमण और अवैध निर्माण चाहे मस्जिद का हो या मंदिर का, जेसीबी अर्थात् बुलडोजर किसी को बख्शने के मूड में नहीं था। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने नगर निगम की कार्रवाई पर आनन-फानन में स्टे देकर सुनवाई तक यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश जारी कर दिया। यही सुप्रीम कोर्ट कभी कहता है कि अतिक्रमण से निपटना स्थानीय प्राधिकार की जिम्मेदारी है।

Jhooth Bole Kaua Kaate: शासन के इकबाल पर सुप्रीम हथौड़ा

ओवैसी, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस सहित विपक्ष ने बुलडोजर की कार्रवाई का विरोध करते हुए अतिक्रमण विरोधी कार्रवाई को धार्मिक रंग देने का प्रयास किया जबकि, आम जनता ने इसे सराहा है। लोग तो यहां तक कह रहे कि शाहीन बाग आंदोलन के समय ही ऐसा अभियान चला होता तो आज ये नौबत नहीं आती। खूबी तो यह है कि सड़क के अतिक्रमण को छोड़ कर एक भी मकान न तो तोड़ा गया, न ही किसी दंगाई के मकान को निशाना बनाया गया।

Jhooth Bole Kaua Kaate: शासन के इकबाल पर सुप्रीम हथौड़ा

जहांगीरपुरी इलाके में सबसे पहले कुशल चौक पर बुलडोजर के जरिये रेहड़ियों को तोड़ा गया। कुशल चौक पर ही 16 अप्रैल को हनुमान जन्मोत्सव के दौरान शोभायात्रा पर पथराव किया गया था। इसमें आधा दर्जन से भी अधिक पुलिस वाले भी घायल हुए थे। अतिक्रमण हटाने की कड़ी में बुलडोजर ने उस जगह पर बने अवैध अतिक्रमण को भी हटाया, जहां पर सोनू चिकना ने गोली चलाई थी और पुलिस उप निरीक्षक मेधा लाल के बाएं हाथ में गोली लगी। जहांगीरपुरी इलाके में अगले दो दिन तक अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई जारी रहती, लेकिन कोर्ट स्टे के बाद कार्रवाई रोक दी गई।

नगर निगम की इस कार्रवाई के दौरान जहांगीरपुरी में एक मस्जिद के बाहर भी अतिक्रमण पर बुलडोजर चला। मस्जिद के बाहर बने चबूतरे को एमसीडी ने तोड़ दिया। मस्जिद के बाद बुलडोजर एक मंदिर का एक हिस्सा तोड़ने के लिए आगे बढ़ा, लेकिन बुलडोजर चल पाता, उससे पहले ही सीपीआईएम  की नेता वृंदा करात कोर्ट का ऑर्डर लेकर आ गईं तो मंदिर का वह हिस्सा टूटने से बच गया।  हालांकि देर शाम स्थानीय लोगों और मंदिर प्रशासन ने स्वयं ही मंदिर में अतिक्रमण को हटाने का काम शुरू कर दिया। एमसीडी कमिश्नर का कहना था, ‘ये हमारी रेगुलर कार्रवाई है। इस साल हम इस इलाके में 11 बार अतिक्रमण हटाने का काम कर चुके हैं। बीती 11 अप्रैल को भी हमने कार्रवाई की थी।’

Supreme Court

16 दिसंबर 2021 को इसी सुप्रीम कोर्ट ने देश भर में सार्वजनिक भूमि  पर हुए अतिक्रमण  को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि यह एक ‘दुखद कहानी है, जो पिछले 75 वर्षों से जारी  है और प्रमुख शहर ‘झुग्गी बस्तियों में बदल गए हैं।’ शीर्ष कोर्ट ने कहा कि यह सुनिश्चित करने की प्राथमिक जिम्मेदारी स्थानीय प्राधिकार की है कि किसी भी संपत्ति पर अतिक्रमण न हो, चाहे वह निजी हो या सरकारी और इससे निपटने के लिए उन्हें खुद को सक्रिय करना होगा। सुप्रीम कोर्ट गुजरात और हरियाणा में रेलवे भूमि पर अतिक्रमण के मामलों की सुनवाई कर रही थी।

झूठ बोले कौआ काटेः अतिक्रमण, विशेषकर सरकारी जमीन पर अवैध कब्जे होते तो स्थानीय नेताओं की शह पर ही हैं। इसे पुष्पित-पल्लवित करते हैं संबंधित भ्रष्ट अधिकारी-कर्मचारी। यह कोई नई बात नहीं। 75 सालों से ऊपर से यह दुखःद कहानी जारी है, सुप्रीम कोर्ट का ही मानना है। लेकिन, जबसे उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार की बुलडोजर कार्यशैली पर विधानसभा चुनावों में जनता की मुहर लगी है, अन्य राज्यों में शासन-प्रशासन का हौसला बढ़ा है।

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मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का बुलडोजर जब खरगोन हिंसा के बाद चला तो जैसे बुलडोजर बाबा वैसे ही वे बुलडोजर मामा कहे जाने लगे। ऐसे में बुलडोजर अभियान के विरूद्ध कोर्ट जाने वाले या इसे धर्म से जोड़ कर नेतागिरी करने वाले नेता तब कहां थे जब ये अतिक्रमण होते रहे। भ्रष्टाचार के विरूद्ध आवाज तब क्यों नहीं उठायी। तो क्या ये राजनीतिक लाभ के लिए तुष्टिकरण की राजनीति नहीं। जबकि, हिन्दुओं के अवैध निर्माण तक पर बुलडोजर चला। इसके प्रमाण हैं।

मानवाधिकार और धर्म के ठेकेदार, अब सवाल उठा रहे कि क्यों अतिक्रमण होने दिया। 75 साल तक अतिक्रमण के खिलाफ सुप्रीम अदालत में जाने के लिए जमीर नहीं जागा। अब शासन-प्रशासन का जमीर जाग गया तो पहुंच गए कोर्ट। और, तुम्हारे विलाप पर सुप्रीम कोर्ट ने न केवल इस मामले की सुनवाई आननफानन में की, बल्कि 9 मिनट में ही स्टे आर्डर जारी कर दिया। ये वही सुप्रीम कोर्ट है जहां रोहिंग्या-बांगलादेशी घुसपैठियों को वापस भेजने संबंधी जनहित याचिका 2017 से लंबित है। किसी राज्य सरकार ने आजतक अपना पक्ष नहीं रखा और सुप्रीम अदालत को संज्ञान लेने की फुरसत नहीं मिली। किसान आंदोलन में सुप्रीम अदालत की स्वयं की गठित समिति कृषि कानूनों को रद्द करने के खिलाफ थी।

 

उसने रिपोर्ट में कहा, ‘इन कृषि कानूनों को रद्द करना या स्थगित करना उस मूक समूह के लिए अनुचित होगा जो इन कानूनों का समर्थन करती है।’ लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कई महिने तक विचार ही नहीं किया, और रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद सरकार को ही लिर्णय लेने के लिए आगे आना पड़ा। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के बाद जब खून की नदियां बह रही थीं तो जनहित याचिका दायर करने के दो हफ्ते बाद सुप्रीम अदालत की नींद टूटी। वर्ना, आतंकी अफजल गुरू के मामले में आधी रात को भी सुनवाई कर लेती है। वैसे तो, जनहित के बहुत से मामले  सुनवाई के लिए लोअर कोर्ट भेजे जाते है। कानून-कायदे में बड़ा गड़बड़झाला है ! कोई कुछ भी कहे, जनता को तो सरकार का ये इकबाल भाया है। बशर्ते, ये तेवर बरकरार रहे।

शोभा यात्राओं में हिंसा में पीएफआई की भूमिकाः मध्य प्रदेश, राजस्थान, गोवा, गुजरात, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में रामनवमी शोभायात्रा के दौरान बड़े पैमाने पर हिंसा के बाद हनुमान जन्मोत्सव के जुलूसों में भी दिल्ली सहित अनेक राज्यों में हुई भीषण हिंसा में विवादास्पद इस्लामी संगठन, पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) का सुनियोजित हाथ होने की आशंका जतायी गई है। इन सभी हमलों में छतों पर जमा करके रखे गए पत्थरों और बोतलों का जमकर इस्तेमाल किया गया। दंगाइयों ने कई जगह फायरिंग भी की।

केंद्रीय जांच एजेंसियों ने पहले भी पीएफआई और पाकिस्तानी जासूसी एजेंसी आईएसआई के बीच संबंध पाया था। उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, झारखंड पहले ही गृह मंत्रालय से पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर चुके हैं। पिछले साल, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने आरोप लगाया था कि पीएफआई ने केरल में आतंकी शिविर चलाने के लिए हवाला चैनलों के माध्यम से धन जुटाया था। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा केरल में विवादास्पद ‘लव जिहाद’ मामलों में शामिल होने का आरोप लगाया गया। दिल्ली दंगों में संगठन की भूमिका स्पष्ट रूप से स्थापित हो गई थी क्योंकि पीएफआई के लोगों द्वारा अपराधियों को नकद सौंपने का वीडियो वायरल हो गया था।

माना जाता है कि पीएफआई 2006 के मुंबई और 2008 के अहमदाबाद विस्फोटों के मास्टरमाइंड स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) की एक शाखा है। आतंकी संगठन सिमी ने शरिया की स्थापना और कुरान के आधार पर देश पर शासन करने, इस्लाम के प्रचार और इस्लाम के कारण “जिहाद” करने के विचारों पर काम किया। हालांकि, जब सरकार ने इसके अस्तित्व के लगभग चार दशकों के बाद आतंकवादी संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया, तो वह टूट गया और इंडियन मुजाहिदीन नामक एक और आतंकवादी संगठन को जन्म दिया। अब, ऐसा प्रतीत होता है कि सिमी की अन्य शाखाएं पीएफआई के नेतृत्व में अस्तित्व में आ गई हैं। हाल ही में केरल फायर एंड रेस्क्यू सर्विसेजके अधिकारियों द्वारा पीएफआई कैडर को प्रशिक्षण दिया जाना सवालों के घेरे में है। ऐसे में, सवाल ये है कि पीएफआई की नकेल कब कसेगी ?

और ये भी गजबः 129 साल पहले एक युवा शख्स ऐसा था, जिसने अपनी हिंदुत्व की परिभाषा से पूरी दुनिया को मुरीद कर दिया था। दुनिया के प्रमुख चिंतक, विचारक भी उनके दर्शन से प्रभावित हुए बिना नही रह सके। बात स्वामी  विवेकानंद की है, जिन्होने 11 सितंबर 1893 को शिकागों में शुरू हुए हुए 17 दिन के विश्व धर्म सम्मेलन की धारा ही बदल दी थी। विदेशों में भारतीय संस्कृति की दिग्विजयी यात्रा से लौटने के बाद स्वामी विवेकानंद की कीर्ति भारत के कोने-कोने में फैल गई। इससे प्रभावित होकर काशी के तत्कालीन नरेश ने उन्हें स्वागत के लिए आमंत्रित किया। नरेश मूर्तिपूजा के कट्टर विरोधी थे और स्वामी जी प्रबल समर्थक थे।

मूर्तिपूजा की चर्चा छेड़ते हुए काशी नरेश ने कहा- अद्वैत वेदांत की विचारधारा से मूर्तिपूजा का मेल तो नहीं बैठता है फिर आप इसका समर्थन क्यों करते हैं। स्वामी जी ने कहा- परमात्मा शक्ति स्वरूप और शक्ति को कोई आकार नहीं दिया जा सकता है यह बात ठीक है परंतु मैं खुद ही मूर्तिपूजा को आत्म साधना का प्रथम सोपान समझता हूं।

आपके विचारों में ही विरोधाभास आपके अनुयायियों में कई भ्रान्तियां पैदा कर सकता है, इसलिए किसी भी बात को केवल भावना के कारण ही स्वीकार नहीं करना चाहिए- काशी नरेश ने उपदेश दिया।

स्वामी जी बोले- मैंने मूर्ति पूजा में भावना नहीं तथ्य पाया है। बातचीत में स्वामी जी नरेश के दुराग्रही प्रतिपादन को ताड़ गए। महल के भीतर की दीवारों पर अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित वीर पुरुषों के चित्र टंगे थे। शायद वे उक्त नरेश के पूर्वजों के रहे होंगे। स्वामी जी ने एक चित्र की ओर इंगित करते हुए कहा- ‘यह चित्र किन का है। जरा इसे उतरवाकर मंगाइये। राजा के अनुचरों ने तत्काल वह चित्र उतारा ओर स्वामीजी को दिया। काशी नरेश ने बताया- ‘यह चित्र मेरे परदादा महाराज का है। स्वामीजी ने प्रश्न किया- क्या आपने अपने जीवन में इन्हें देखा है।

‘जी नहीं- नरेश ने उत्तर दिया। तो फिर क्या आप इस चित्र पर थूक सकते हैं- स्वामीजी ने फिर कहा-आपको थूकना चाहिए। थूकिए।

नहीं थूक सकता- नरेश ने आगे कहा- ये हमारे पूजनीय हैं। स्वामीजी ने कहा- आपने तो इन्हें देखा नहीं है। फिर इन्हें श्रद्धापात्र कैसे मानते हैं और फिर यह तो मात्र चित्र है इस पर थूकने में धृष्टता कैसी ?

बात काशी नरेश की भी समझ में आ रही थी परंतु फिर भी वे थूकना नहीं चाहते थे। स्वामी जी बोले- आप इस चित्र के प्रति पूज्यभाव रखते हैं। यद्यपि इस चित्र पर थूकने से आपके परदादा का कुछ नहीं बिगड़ेगा और यह भी प्रमाणित नहीं किया जा सकता कि यह चित्र पूरी तरह आपके परदादा के शरीर की प्रतिकृति ही है। इसी प्रकार प्रतिमा के प्रति अपना विश्वास और श्रद्धा भाव रखना आवश्यक है। ईश्वर शक्ति है, चेतना है पर सामान्य जन का मन ऐसे अमूर्त के प्रति एकाग्र हो पाना दुष्कर है, इसीलिए मैं मूर्तिपूजा में विश्वास रखता हूं।