झूठ बोले कौआ काटे! कातिल-कुत्तों का कोहराम, मारना-भगाना हराम
देश की राजधानी दिल्ली के पॉश इलाके वसंत कुंज में सड़क के कुत्तों ने दो दिन में दो बच्चों को नोच-नोचकर मार डाला। दोनों सगे भाई थे। क्रमशः सात और पांच साल के इन बच्चों के शवों का पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों ने बताया कि उनके शरीर के कई अंग तो करीब-करीब अलग हो गए थे। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार भारत में हर साल क़रीब दो करोड़ लोगों को जानवर काटते हैं। इनमें से क़रीब 92 प्रतिशत मामले कुत्तों के काटने के होते है। कम से कम 20 हजार लोगों की मौत कुत्ता काटने के कारण होती है। लेकिन, आप इनका कुछ बिगाड़ नहीं सकते।
नैनीताल से मिली खबर के अनुसार, मार्च के पहले सप्ताह में 45 लोगों को सड़क के कुत्तों ने घायल कर दिया। सड़क के कुत्तों का लोगों को काटने का संज्ञान उत्तराखंड हाईकोर्ट भी ले चुका है। कोर्ट की सख्ती के बाद नगर पालिका ने पशु पालन विभाग के साथ मिलकर शहर में सर्वे के बाद 17 कुत्तों को खूंखार घोषित किया।
हाल ही में राजस्थान के सिरोही के सरकारी अस्पताल में अपनी मां के पास रात में सो रहे एक महीने के बच्चे को कुत्ते उठाकर ले गए। तलाश में वार्ड के बाहर कुछ कुत्ते उसे नोचते दिखे। मां दौड़कर पहुंची तब तक एक कुत्ता बच्चे का हाथ मुंह में दबाकर भाग गया। उधर, हैदराबाद के बाग अंबेरपेट में सड़क के कुत्तों ने सड़क पर जा रहे चार साल के मासूम बच्चे को दबोच लिया। छह कुत्तों का झुंड मासूम को तब तक नोचता रहा, जब तक उसकी मौत नहीं हो गई।
उत्तर प्रदेश के बिजनौर में मुहल्ला कुंवर बाल गोविंद में एक कुत्ते ने दो−तीन दिन में रोज एक दर्जन के आसपास व्यक्तियों को काटा। एक बच्चे का तो कान ही बुरी तरह से फाड़ दिया। इसकी शिकायत नगरपालिका में की गई तो उत्तर मिला कि ये हमारा काम नहीं। हम तो मरे कुत्ते को उठवाकर फेंक सकते हैं। मजबूरन दूसरे मुहल्ले के लोगों ने इस कुत्ते को घेर कर मार दिया।
कुछ माह पहले देश भर में पालतू पिटबुल का आतंक सामने आया था। उसने कई जगह अपने मालिक या अन्यों पर हमले किए। लखनऊ, भोपाल, दिल्ली से लेकर कई शहरों तक से ऐसे मामले सामने आए। ग्रेटर नोएडा के पाई दो सेक्टर की यूनीटेक होराइजन सोसाइटी में एक पालतू कुत्ते ने सुरक्षाकर्मी पर हमला कर दिया था। इससे सुरक्षाकर्मी बुरी तरह घायल हो गया था। कुत्ते की मालकिन ने किसी तरह सुरक्षाकर्मी की जान बचाई थी।
नोएडा की लोटस बुलेवार्ड सोसाइटी में कुत्तों ने एक साल के बच्चे पर हमला कर दिया था। कुत्तों ने बच्चे का पेट फाड़ दिया था। इससे उसकी आंतें बाहर आ गईं थीं। किसी तरह बच्चे को कुत्तों से बचाकर सोसाइटी के लोगों ने अस्पताल में भर्ती कराया था। हालांकि सर्जरी के बाद भी बच्चे को बचाया नहीं जा सका था। लखनऊ के कृष्णा नगर में रहने वाले एक युवक को पालतू कुत्ते ने प्राइवेट पार्ट में काट लिया था। आरोप है कि कुत्ते का मालिक यह सब देखता रहा था। उसने कोई मदद नहीं की थी।
गाजियाबाद के एक पार्क में पिटबुल डॉग ने 11 साल के बच्चे पुष्प त्यागी पर हमला कर दिया था। उसका एक कान और गाल नोच दिया था। पिटबुल का हमला इतना घातक था कि बच्चे के चेहरे पर 150 से ज्यादा टांके लगे थे।
बिहार के बेगूसराय के बछवारा गांव में सड़क के कुत्तों के झुंड ने शौच करने गई एक महिला पर हमला कर दिया, जिससे महिला की मौत हो गई। स्थानीय लोगों का आरोप है कि वन विभाग को कई बार शिकायत करने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई।
नोएडा में मॉर्निंग वाक के समय कुत्ते का शिकार बने कोसिंदर यादव का कहना है कि घटना के बाद उन्होंने मामले की शिकायत प्राधिकरण की तरफ से नामित एनजीओ से कर कुत्तों को शेल्टर होम ले जाने के लिए की, लेकिन आक्रामक कुत्ते को पकड़ा नहीं गया। आरोप है कि कुछ एनजीओ से जुड़े हुए लोग सेक्टर में मना करने के बाद भी रोज जगह-जगह सड़क के कुत्तो के लिए आवाजाही करने वाले सार्वजनिक स्थानों पर खाना डालते हैं।
भोपाल में इंसान की तो बात ही छोड़िये शहर में रोजाना 7-8 पशुओं को कुत्तों के काटने के बाद एंटी रैबीज इंजेक्शन लगाने के लिए सरकारी पशु अस्पतालों में लाया जा रहा है।
झूठ बोले कौआ काटेः
कातिल-आक्रामक कुत्तों के ये कुछ चुनिंदा डरावने मामले हैं। कुत्ते सड़क के हों, या पालतू! कानून संरक्षित इन कुत्तों पर लगाम लगाना पालिका, नगर निगम और प्रशासन के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। ‘द स्टेट ऑफ पेट होमलेसनेस इंडेक्स’ के डाटा के अनुसार भारत में नवंबर 2022 तक सड़क के कुत्तों की जनसंख्या 6.2 करोड़ थी। और, इनके हमलों की दुनिया में सबसे ज़्यादा घटनाएं अपने ही देश में होती हैं।
लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में मत्स्यपालन-पशुपालन एवं डेयरी मंत्री ने बताया कि साल 2019 में की गई गणना के अनुसार, देश में सड़क पर रहने वाले कुत्तों की संख्या 1.5 करोड़ थी। वहीं, 2012 में यही संख्या 1.71 करोड़ थी। 2019 में 72,77,523 व्यक्तियों को कुत्तों ने काटा। 2020 में 43,33,493, 2021 में 17,01133 और 2022 में 14,50,666 व्यक्तियों को कुत्तों ने काटा। हालत इतने गंभीर हैं कि 10 सितंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने भी कह दिया कि स्ट्रीट डाग के काटने की घटनाओं का समाधान निकालने की जरूरत है।
कुत्ता काटने की घटनाओं के चलते नोएडा-गाजियाबाद की कई सोसायटी में कुत्ता पालने पर ही प्रतिबंध लगा दिया गया है। साथ ही, नगर निकायों की ओर से भी तरह-तरह के प्रयास किए जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने पालतू कुत्ते रखने वालों के लिए भी सख्त निर्देश जारी किए है। सरकार ने कहा है कि जो लोग घर में लोग पालतू कुत्ता रखते हैं, नियमानुकूल उनका रजिस्ट्रेशन सुनिश्चित कराएं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस संबंध में 22 मई 2022 को हिदायत दी थी। उन्होंने कहा कि जानवरों को रोड़ पर लेकर निकलते वक्त साफ-सफाई का ध्यान रखें। लेकिन, न अधिकतर कुत्ता प्रेमियों की समझ में बात आती, न जिम्मेदार अधिकारी-कर्मचारियों के कान पर जूं रेंगती क्योंकि या तो शिकायत नहीं होती या होती भी है तो कानून और पशु अधिकारवादी एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी तथा उनके एनजीओ कार्यकर्ताओं का हस्तक्षेप आड़े आता है।
2018 में दिल्ली एम्स परिसर में लंबे समय से डॉक्टरों और मरीजों के लिए परेशानी बन चुके सड़क के कुत्तों और बंदरों के आतंक के लिए रेजिडेंट डॉक्टरों ने तत्कालीन केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी को कसूरवार ठहराया था।
वरिष्ठ पत्रकार आलोक मेहता ने तो एक बार भाजपा सांसद मेनका गांधी को टैग करते हुए ट्वीटर पर लिखा “दिल्ली में सड़क के कुत्तों ने एक मासूम बच्ची को मार दिया। हर इलाके में सडकों पर कुत्तों का आतंक बना हुआ है। साथ ही उन्होनें कहा की मेनका गांधी की कृपा से कुत्तों को इंसान से ज़्यादा अधिकार। नगर निगमों ने कुत्तों को पकड़ना बंद कर दिया। मोहल्ला क्लिनिक में कुत्ते काटने की दवाई नहीं। पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी ने कहा, “अत्यंत गम्भीर है सर, लेकिन सरकार से लेकर समाज तक मनुष्य से अधिक कुत्ताप्रेमी हो गया है। इस तेज़ी से संख्या बढ़ रही है कि आने वाले दिनों में ऐसे दर्दनाक हादसे बढ़ेंगे। हमारी सोसायटी तक में कुत्तों ने बुरा हाल कर रखा है। देसी सड़क पर और घरों में विदेशी कुत्ते मनुष्य पर भारी पड़ रहे।”
इसमें दो राय नहीं कि अनेक कुत्ता स्वामी उसे शौच कराने के लिए घर से निकलते ही पट्टा खोल देते हैं। या, पट्टा पकड़े-पकड़े उसे सोसायटी-सड़क, कहीं भी गंदगी करने की आजादी दे देते हैं। किंतु कुत्ता−बिल्ली पालकों में पड़ी गलत आदत सुधारने के लिए सख्ती तो जरूरी है। सड़क के कुत्ते तो भारी समस्या हैं। उनको भी शहरों से बाहर का रास्ता दिखाना होगा या स्थानीय निकायों को जिम्मेदारी देनी होगी कि वह सड़क के पशुओं पर नियंत्रण करे। उनको समय से वैक्सीन लगवाएं।
हमें मेनका गांधी के पशु प्रेम पर आपत्ति नहीं। ढाई साल पहले एक न्यूज चैनल से कही गई उनकी बात में पूरा दम है कि इस सृष्टि में इंसान के साथ जानवरों का बहुत महत्व है। एक चिड़िया स्पैरो (गौरैया) नहीं है तो आज टिड्डियों का आतंक है। पहले गिद्ध आते थे, जो मरे हुए जानवरों का मांस खा जाते थे। अब स्थिति बिल्कुल अलग है। उन्होंने यह भी कहा कि जरूरत यह नहीं कि जो कानून इंसानों के लिए है वही कानून जानवरों के लिए बनाया जाए। लेकिन जो कानून बने वह तगड़ा बनना चाहिए। सख्त कानून बने और जो कानून अभी भी है उसे सख्ती से इस्तेमाल किया जाए।
पशु क्रूरता निरोधक अधिनियम 1960 के अंतर्गत भारत में कुत्तों को मारने की मनाही है। इस कानून में 2002 में हुए संशोधन के तहत आवारा कुत्तों को देश का मूल निवासी माना गया है। वह जहां भी चाहें वहां रह सकते हैं, किसी को भी उन्हें भगाने या हटाने का हक नहीं है। अधिनियम के अंतर्गत यदि आवारा कुत्ते के साथ क्रूरता की जाती है, उन्हें मारा जाता या है या वे अपंग हो जाते हैं तो ऐसा करने वाले को पांच साल तक की सजा हो सकती है।
कुत्तों की बढ़ती आबादी को रोकने के लिए एंटी बर्थ कंट्रोल कानून 2001 में बनाया गया था, इसके तहत कुत्तों की आबादी पर लगाम के लिए नगर निगम-पशु कल्याण संस्था या अन्य एनजीओ यदि किसी आवारा कुत्ते को गली-मोहल्ले से पकड़ती है तो बंध्याकरण के बाद उसे वहीं छोड़ना होगा, ऐसा न करना कानून अपराध है।
यदि कुत्ता विषैला है, कटहा है, तब भी उसे मारा नहीं जा सकता। यदि ऐसा है तो उसके लिए पशु कल्याण संगठन से संपर्क करना होगा। यदि किसी कुत्ते को लंबे समय तक बांधकर रखा जाता है या उसे भोजन नहीं दिया जाता है तो ये संज्ञेय अपराध माना जाएगा, इसकी शिकायत मिलने पर तीन माह तक की सजा का प्रावधान है। किसी पालतू कुत्ते को आवारा नहीं छोड़ा जा सकता। यदि ऐसा किया गया तो ये भी पशु क्रूरता अधिनियम में आएगा। यदि किसी कुत्ते को इस तरह से कष्ट पहुंचता है तब भी संबंधित व्यक्ति को तीन माह तक की जेल हो सकती है।
यदि कोई कुत्ता पालने का शौक रखता है, उसे कई नियमों का पालन भी करना होगा। सबसे पहले उसे अलग-अलग तरह की वैक्सीन तय समय पर लगवाना होगा। इसके अतिरिक्त दरवाजे पर ‘कुत्ते से सावधान’ का बोर्ड लगाना होगा। यदि आप उसे सोसायटी या पार्क में टहलाने ले जाते हैं तो उसके मुंह पर मजल यानी की मास्क जरूर लगाएं ताकि वो किसी को काट न सके।
लोगों का कहना है कि विदेशों की तरह सड़क के कुत्तों के लिए आश्रय स्थल होने चाहिए। वहां इन्हें गोद लिए जाने की व्यवस्था भी होनी चाहिए। जिनको ऐसा अवसर प्राप्त न हो, उन्हें त्वरित कार्यवाही से बग़ैर किसी दर्द के ख़त्म कर दिया जाना चाहिए। तर्क है कि कुत्तों के प्रति क्रूरता को निषेध किया गया है, न कि उनको दर्द रहित मृत्यु दिया जाना।
सोचिये, अगर किसी जनजाति का सदस्य किसी की जान ले ले, तो उसे 7 साल की सज़ा हो सकती है। लेकिन, भारतीय कानून इंसान और जानवरों के अधिकार को बराबरी पर रखते हैं, जो ठीक नहीं है। यह भी सही है कि शहर में कितने कुत्ते हैं, इसका कोई आंकड़ा अधिकांश सहरों के जिम्मेदारों के पास नहीं होता। कुत्तों की नसबंदी हो रही या नहीं और हुई तो कितनी, इसकी भी कोई जानकारी अधिकतर निगमों/ पालिकाओं के पास नहीं होती। तो क्या खाक लगेगा कातिल-आक्रामक कुत्तों पर नियंत्रण!
और ये भी गजबः
अमेरिका में कुत्ता−बिल्ली आदि के पालने के लिए स्वामी को टैक्स देना पड़ता है। पशु पालक यह टैक्स अपनी सोसाइटी को चुकाता है। इसके बावजूद घर से निकलते समय कुत्ता/बिल्ली स्वामी एक हाथ में अपने पशु का पट्टा पकड़े होता है। दूसरे हाथ के पंजे पर पॉलिथीन को उल्टी करके चढ़ाए हुए होता है। पशु के गंदगी करने के बाद पशु स्वामी उस गंदगी को उठाकर पॉलिथीन में रख लेता है। पॉलिथीन का मुंह बंद करके डस्टबिन में डाल दिया जाता है। कुछ सोसाइटी में कुत्तों को घुमाने का पार्क भी होता है जिसके चारों और लोहे की जाली लगी होती है।