Jhuth bole kaua kaate: अब काशी की बारी!

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Jhuth bole kaua kaate: अब काशी की बारी!

तो क्या आज का दिन काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद सुलझने की दिशा में मील का पत्थर सिद्ध होगा? वाराणसी के सिविल जज के आदेश के बाद एडवोकेट कमिश्नर अजय कुमार मिश्रा पक्षकारों को सूचित कर चुके हैं कि आयोग 6 और 7 मई, 2022 को परिसर के निरीक्षण और विवादित स्थल की वीडियोग्राफी-फोटोग्राफी के लिए परिसर का दौरा करेगा। हालांकि, अंजुमन इंतजामिया कमेटी ने धमकी दी है कि वह सर्वे के लिए किसी को मस्जिद की बैरिकेडिंग के अंदर घुसने नहीं देगा, अंजाम चाहे जो हो। अब गेंद पुलिस-प्रशासन के पाले में है कि वह कोर्ट के आदेश का पालन कैसे सुनिश्चित कराती है।

Jhuth bole kaua kaate: अब काशी की बारी!

 

आज, अर्थात् 6 मई, 2022 को दोपहर 3 बजे से कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच प्रारंभ होने वाली कार्रवाई को लेकर सिविल जज सीनियर डिवीजन रवि कुमार दिवाकर ने स्पष्ट आदेश दिया है कि जब तक पूरी वीडियोग्राफी और कमीशन न हो इस अभियान को चलाया जाएगा। साथ ही कमीशन की रिपोर्ट 10 मई को न्यायालय के सामने पेश करना होगा। बताया जाता है कि पहले वीडियोग्राफी 18 अप्रैल को होनी थी लेकिन जिला प्रशासन ने सुनवाई के दौरान संवेदनशील मामला बताते हुए इस पर आपत्ति जताई थी। सिविल जज ने इन आपत्तियों को खारिज करते हुए सभी प्रतिवादियों और उनके वकीलों को भी वीडियोग्राफी के दौरान उपस्थित रहने का आदेश दिया।

श्रृंगार गौरी और अन्य विग्रहों के वीडियोग्राफी को रोकने के लिए अंजुमन इंतेजामिया कमेटी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका डाली थी और इस कमीशन की कार्रवाई में सुरक्षाकर्मी और गैर मुस्लिम के रेड ज़ोन या मस्ज़िद के अंदर जाने के फैसले को रद्द करने की अपील की थी। जिसे 21 अप्रैल को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था। 26 अप्रैल को इस मामले को लेकर वाराणसी के सिविल जज के न्यायालय में फिर से सुनवाई हुई। सुनवाई के बाद जज ने श्रृंगार गौरी और विग्रहों के वीडियोग्राफी के अपने पुराने आदेश को बहाल कर दिया था।

याचिकाकर्ताओं के पैरवीकर्ता जितेंद्र सिंह बिसेन के अनुसार कोर्ट के आदेश के बाद ऐसा पहली बार होगा कि रेड जोन के इलाके में महिलाएं प्रवेश कर सकेंगी। वीडियोग्राफी का यह मामला 18 अगस्त 2021 का है, जब दिल्ली की रहने वाली राखी सिंह, लक्ष्मी देवी, सीता शाहू, मंजू व्यास व रेखा पाठक की ओर से कोर्ट में याचिका दायर कर श्रृंगार माता के नियमित दर्शन और पूजा-अर्चना करने की इजाजत मांगी गई थी। उल्लेखनीय है कि ये याचिका हिंदू महासभा की ओर से दायर की गई थी। इसमें दावा किया गया था कि ऐसा न करने देना हिंदुओं के हितों का उल्लंघन होगा। इसमें विपक्ष के तौर पर अंजुमन इंतजामिया मसाजिद, वाराणसी के कमिश्नर, पुलिस कमिश्नर, जिले के डीएम और राज्य सरकार को पक्षकार बनाया गया था।

अब इस फैसले के खिलाफ अंजुमन इंतजामिया कमेटी खुलकर सामने आ गई है कमेटी के संयुक्त सचिव एस एम यासीन ने तर्क दिया है कि रेड जोन या मस्जिद परिसर के अंदर सुरक्षाकर्मी और मुस्लिमों के अलावा किसी ने आज तक प्रवेश नहीं किया है यहां तक कि मीडिया को भी जाने की इजाजत नहीं है ऐसे में वहां की वीडियोग्राफी कराना गलत है। इस से सुरक्षा को खतरा होगा। मो. यासीन ने कहा है कि कोर्ट के आदेश के बावजूद सर्वे के लिए कमीशन को ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर नहीं आने दिया जाएगा। इसके लिए चाहे जो अंजाम भुगतना पड़े, वे तैयार हैं। यासीन के अनुसार,  काशी विश्वनाथ मंदिर में लोग बिना किसी दिक्कत के दर्शन कर रहे हैं। श्रृंगार गौरी में भी रोजाना श्रद्धालु आ रहे हैं, फिर भी धार्मिक द्वेष और राजनीतिक कारणों की वजह से ये मसला उठाया जा रहा है।

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दूसरी ओर, विहिप ने ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन समिति के विरोध की आलोचना करते हुए पूछा है कि वह क्या छिपाना चाहता है। आरएसएस ने अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद के फैसले को अदालत की अवमानना करार देते हुए राज्य सरकार से इस मद्दे पर कड़ी नजर रखने की मांग की है।

इस मामले में मूल वाद 1991 में वाराणसी कि जिला अदालत में दायर किया गया था जिसमें प्राचीन मंदिर के उस स्थान को जहां वर्तमान में ज्ञानवापी मस्जिद मौजूद है, बहाल करने की मांग की गई थी। वाराणसी की जिला कोर्ट में हिंदू पक्ष ने एक मुकदमा दायर कर दावा किया गया कि मुगल शासक औरंगजेब के आदेश पर ज्ञानवापी मस्जिद को स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर का मंदिर तोड़कर बनाया गया था। इसके साथ ही ज्ञानवापी मस्जिद की जगह पर श्रृंगार गौरी की पूजा होती थी। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि ज्ञानवापी मस्जिद की दीवारों पर देवी-देवताओं के चित्र भी साफ नजर आते हैं। वहीं, ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली कमेटी ने मुकदमे में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 का हवाला देकर स्टे ले लिया था। लेकिन, 2019 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद मामले की फिर से सुनवाई न्यायाधीश शुरू कर दी गई थी।

वाराणसी की फास्ट ट्रैक अदालत ने 8 अप्रैल, 2021 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का सर्वेक्षण कर यह पता लगाने का निर्देश दिया था कि क्या काशी विश्वनाथ मंदिर के पास खड़ी मस्जिद का निर्माण करने के लिए मंदिर को ध्वस्त किया गया था। इसके बाद, हाईकोर्ट ने 9 सितंबर, 2021 को आठ अप्रैल के उक्त आदेश पर रोक लगा दी थी।

झूठ बोले कौआ काटेः मुस्लिम पक्ष का मानना है कि यह मुकदमा सुना ही नहीं जा सकता, क्योंकि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 में यह बाधित है। ज्ञानवापी मस्जिद के अंजुमन इंतजामिया मसाजिद रईस अहमद अंसारी कहते हैं कि हमने अदालत में अर्जी दी है, जिसमें उक्त कानून का मुद्दा उठाया है। अदालत उस पर विचार करेगी। यह अर्जी सीपीसी के आदेश सात नियम-11 के तहत दाखिल की गई है। यह नियम कहता है कि कोई कार्रवाई करने से पहले कोर्ट को देखना होगा कि यह मुकदमा किसी कानून से बाधित तो नहीं है।

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दूसरी ओर, इलाहाबाद हाईकोर्ट में काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद मुद्दे पर सुनवाई के दौरान मंदिर के वकील ने दलील दी थी कि भगवान विश्वेश्वर का यह मंदिर प्राचीनकाल से अस्तित्व में रहा है और भगवान विवादित ढांचे के भीतर विराजमान हैं। यदि किसी भी तरह से मंदिर नष्ट किया भी गया है तो इसका धार्मिक चरित्र कभी नहीं बदला है। इसलिए प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 की धारा 4 यहां लागू नहीं होती क्योंकि यहां एक प्राचीन मंदिर था और इसका निर्माण 15वीं शताब्दी से पूर्व कराया गया था। धारा 4, 15 अगस्त, 1947 को मौजूद स्थिति के मुताबिक किसी भी पूजास्थल के धार्मिक चरित्र के परिवर्तन के संबंध में कोई वाद दायर करने या अन्य कानून कार्यवाही से रोकती है। केवल अयोध्या रामजन्मभूमि मामले को इससे छूट दी गई थी और कोर्ट के आदेश पर ही वहां मंदिर का निर्माण चल रहा है।

पहली बार ऐसा हो रहा है, जब ज्ञानवापी मस्जिद पर हिंदू पक्ष के दावे को साबित करने के लिए साक्ष्य जुटाने का काम शुरू हुआ है। कानून में किसी केस को साबित करने के लिए साक्ष्यों की दृष्टि  से यह आदेश मील का पत्थर साबित हो सकता है। एडवोकेट कमिश्ननर की रिपोर्ट 10 मई को दाखिल होनी है। अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में भी कुछ इसी तरह हुआ था, जब फैजाबाद के सिविल जज ने एक अप्रैल, 1950 को विवादित स्थल का नक्शा तैयार करने के लिए कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया था। कोर्ट कमिश्नर ने उसी साल अपनी रिपोर्ट अदालत में दाखिल की थी। पूरे मुकदमे के दौरान हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक उस रिपोर्ट पर चर्चा हुई। वह रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी हिस्सा है। कोर्ट के आदेश पर एकत्रित किए गए ये साक्ष्य मुकदमे में अहम साबित हुए थे। कानून के जानकार मानते हैं कि किसी स्थान पर दावे के संबंध में इस तरह के साक्ष्य मुकदमे के लिए बहुत अहम और कई बार निर्णायक सिद्ध होते हैं।

और ये भी गजबः देश के दिल दिल्ली में ऐसा दिलदार ऑटो रिक्शा वाला पता नहीं आपने देखा कि नहीं। ऑटो चालक महेंद्र कुमार ने अपने इनोवेशन और हुनर से अपनी ऑटोरिक्शा की छत को एक छोटे गार्डन में बदल दिया है।

उन्हें यह आईडिया करीब 2 साल पहले आया और तब से वह हर साल गर्मी में ऑटो की छत पर गार्डन लगा रहे हैं।

और ये भी गजब की फोटो

इस ऑटो के अंदर महेंद्र ने यात्रियों को ठंडक पहुंचाने के लिए और भी जुगाड़ लगाए हैं। ऑटो के अंदर दो छोटे कूलर और फैन भी लगाए गए हैं।

यह ऑटो दिल्ली की 45 डिग्री की गर्मी में भी ठंडी रहती है और एयर कंडीशन सा अहसास कराती है।

गार्डन बनाने के लिए महेंद्र ने ऑटोरिक्शा की छत पर एक मोटा पैच लगाया, जिसे चारों तरफ से घेरकर उसपर मिट्टी डाली और बाजरा, टमाटर और लेट्यूस समेत 20 तरह के अलग-अलग फूल और पौधों को लगाया।

ऑटो चालक का कहना है कि यह ऑटो भीड़ में अलग दिखता है और इलाके में काफी लोकप्रिय हो गया है। ऑटो में बैठने वाले लोग इसके साथ अपनी सेल्फी भी लेकर जाते हैं।