Jhuth bole kauva kaate : मोदी (Modi) का वार, तुष्टिकरण बंटाधार

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भगवान शिव की नगरी काशी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने मुगल तानाशह औरंगजेब, आक्रांता सलार मसूद और अत्याचारी वारेन हेस्टिंग्स का जिक्र करते हुए हिंदू सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज, वीर राजा सुहेलदेव पासी का उल्लेख जब गर्व से किया, पहली बार ऐसा लगा कि सत्ता की राजनीति में 70 सालों से चली आ रही तुष्टिकरण की राजनीति के दिन लद गए। राजनीति में वोट कटने के डर से या हीन भावना से अब कोई पार्टी या शासक भारत के इतिहास और उसके गौरव पर गर्व करने से नहीं हिचकेगा। मोदी ने सांप्रदायिक तुष्टिकरण का बंटाधार कर दिया।

Jhuth bole kauva kaate : मोदी का वार, तुष्टिकरण बंटाधार

प्रधानमंत्री मोदी (PM Narendra Modi) ने वाराणसी में काशी विश्वनाथ धाम कॉरीडोर का उद्घाटन करने के बाद एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि औरंगजेब के अत्याचार, उसके आतंक का इतिहास साक्षी है। उसने सभ्यता को तलवार के बल पर बदलने की कोशिश की। लेकिन इस देश की मिट्टी बाकी दुनिया से कुछ अलग है।

यहां अगर औरंगजेब आता है तो शिवाजी भी उठ खड़े होते हैं। अगर कोई सालार मसूद इधर बढ़ता है तो राजा सुहेलदेव जैसे वीर योद्धा उसे हमारी एकता की ताकत का अहसास करा देते हैं। अंग्रेजों के दौर में भी, हेस्टिंग का क्या हश्र काशी के लोगों ने किया था, ये तो काशी के लोग जानते ही हैं।

पीएम ने सांस्कृतिक विरासत और धरोहर की चर्चा करते हुए यह भी कहा कि भारत सदियों की गुलामी से उत्पन्न हीनभावना से बाहर निकल रहा है। उन्होंने पंजाब के राजा रणजीत सिंह, इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होलकर, कबीर, तुलसी, रानी लक्ष्मीबाई, चंद्रशेखर आजाद आदि का जिक्र करके लोगों को अपने गौरवशाली इतिहास से जोड़ने का प्रयास किया। उन्होंने काशी की गौरवशाली परंपरा का जिक्र करते हुए जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र, मुंशी प्रेमचंद, महामना मदन मोहन मालवीय और बिस्मिल्लाह खान को भी याद किया।

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काशी दौरे के दूसरे दिन प्रधानमंत्री मोदी ने विहंगम योग संत समाज के 98वें वार्षिकोत्सव में कहा कि अपनी परंपराओं का विस्तार समय की मांग है। देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, लेकिन भारत की आजादी के इतिहास में आंदोलन की आध्यात्मिक धारा वैसी दर्ज नहीं हो सकी, जैसी होनी चाहिए थी।

यह समय है कि इस धारा को सामने लाया जाए और नई पीढ़ी को इससे परिचित कराया जाए। पीएम ने अपने वक्तव्यों से उन लिबरल/सेक्युलर इतिहासकारों पर निशाना साधा जो साल-दर-साल भारत की युवा पीढ़ी को मुगलों-अंग्रेजों को महिमामंडित करने और भारत के गौरवशाली विरासत को गुमनामी के अंधेरे में ढकेलने वाला इतिहास पढ़वाते रहे हैं।

पीएम के काशी विश्वनाथ धाम कॉरीडोर के उद्घाटन भाषण से पूर्व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस लोकार्पण को अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण की कड़ी बताया। उन्होंने कहा कि एक हजार वर्षों में काशी ने जिन विपरीत परिस्थितियों का सामना किया, भारतवासी उसके साक्षी रहे हैं। वर्ष 1777 में इंदौर की महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने बाबा विश्वनाथ की पुनर्स्थापना का प्रयास शुरू किया था।

इसमें महाराजा रणजीत सिंह और ग्वालियर की महारानी का भी महती योगदान रहा। सीएम ने महात्मा गांधी की वाराणसी यात्रा का जिक्र करते हुए कहा कि सौ वर्ष पहले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने काशी की संकरी गलियों और गंदगी को देखकर जो पीड़ा व्यक्त की थी, उसे आज पीएम मोदी ने दूर किया है, जबकि गांधी के नाम पर बहुत सारे लोगों ने सत्ता पाने की कोशिश की।

Jhuth bole kauva kaate : मोदी का वार, तुष्टिकरण बंटाधार

काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर का उद्घाटन करने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ ने निर्माण कार्य से जुड़े मजदूरों के साथ भोजन भी किया। पीएम के अगल-बगल राजस्थान के सालासर बालाजी निवासी महावीर और किशन बैठे थे। वहीं अब्दुल्ला, राशिद और सैफुल्लाह भी इस क्षण के साक्षी बने। इसके पहले पीएम ने इन मजदूरों पर पुष्पवर्षा करके उनका मान बढ़ाया।

समाजवादी पार्टी के मुखिया और पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने पीएम के काशी दौरे पर तंज कसते हुए कहा कि जब अंत निकट होता है तो लोग बनारस में रहते हैं। अखिलेश यादव की इस टिप्पणी की भाजपा ने निंदा की और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री की तुलना मुगल बादशाह औरंगजेब से करते हुए कहा कि उनकी टिप्पणी निष्ठुर है।

ट्विटर पर अखिलेश ट्रोल होने लग गये। मीडिया में किरकिरी होने लगी। समाजवादी पार्टी के प्रवक्ताओं के लिए अपने नेता का बचाव करना मुश्किल हो गया। आखिरकार अखिलेश यादव को अपना बयान न सिर्फ वापस लेना पड़ा बल्कि उन्हें कहना पड़ा कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दीर्घायु होने की कामना करते हैं।

वहीं, राहुल गांधी के करीबी कांग्रेस नेता और मप्र के पूर्व मंत्री उमंग सिंघार ने प्रधानमंत्री मोदी की तुलना राक्षस से की। उमंग सिंघार नें अपने ट्विटर पर प्रधानमंत्री मोदी के काशी दौरे का फोटो शेयर करते हुए लिखा कि सनातन धर्म के पुराणों में जितने भी विनाशकारी राक्षसों का वर्णन है वे सभी भगवान शिव को ही प्रसन्न करने में लगे रहते थे।

दूसरी ओर, कई चुनाव विश्लेषकों, उप्र के प्रमुख विपक्षी दलों और कतिपय लोगों ने इन कार्यक्रमों को आसन्न विधानसभा चुनाव से जोड़ते हुए कहा कि इसमें एक छिपा हुआ राजनीतिक एजेंडा भी है।

झूठ बोले कौआ काटे

उत्तर प्रदेश भले ही विधानसभा चुनाव की दहलीज पर हो और काशी-विश्वनाथ धाम कॉरीडोर का लोकार्पण तथा पीएम नरेंद्र मोदी के दौरे के अपने-अपने सियासी मायने हों, यह तो शत-प्रतिशत सत्य है कि पीएम ने भारत के गौरवशाली इतिहास और परंपरा को न केवल खुल्लमखुल्ला रेखांकित किया बल्कि लोगों का ध्यान अपनी संस्कृतिक विरासत की ओर खींचा। वे पूरे आध्यात्मिक स्वरूप में दिखे।

 

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71 वर्षीय प्रधानमंत्री काशी विश्वनाथ का जलाभिषेक करने के लिए गंगा से जल लेने स्वयं गए। इस दौरान उन्होंने गंगा में डुबकी लगायी और सूर्य को जल भी अर्पित किया। अपने धर्म और हिन्दुत्व का इतना दिव्य दर्शन इससे पहले भारत के किसी प्रधानमंत्री या बड़े नेता द्वारा देखने को नहीं मिला था। सब, जैसे हिंदुत्व से खुद को जोड़ने में संकोच करते थे और हमेशा बैकफुट पर रहते थे। शायद यह राहुल गांधी के हिंदू और हिंदुत्व वाले बयान का एक जोरदार जवाब भी था।

सोचने वाली बात है कि ‘मुग़ल काल’ नाम से कुल 100 वर्ष (अकबर 1556ई. से औरंगजेब 1658ई. तक) के शासनकाल को भारत के इतिहास के एक बड़े हिस्से के रूप में पढ़ाया जाता है। बाबर ने मुश्किल से कोई 4 वर्ष तक राज किया। हुमायूं टिक कर राज नहीं कर पाया।

मुग़ल साम्राज्य की नींव तो अकबर ने डाली और जहांगीर, शाहजहां से होते हुए औरंगजेब के आते-आते वो नीव उखड़ने लग गई थी। विचार करने वाली बात है कि भारत में अन्य तीन-चार पीढ़ियों और शताधिक वर्षों तक राज्य करने वाले वंश, जैसे विजय नगर साम्राज्य, जरासंध वंश, प्रद्योत वंश, शैशुनागों, नंदों, मौर्यों, शुंगों, कण्वों, आंध्रों, गुप्तों और विक्रमादित्य को इतना महत्त्व या स्थान क्यों नहीं मिला?

कुछ साल पहले नई दिल्ली में औरंगजेब रोड का नाम जब पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम के नाम पर किया गया तो उसका विरोध किया गया। वो औरंगजेब, जिसने 9 अप्रैल, 1669 को अपने हाकिमों को स्कूलों और हिंदुओं के मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश जारी किया था। जिसके चलते बनारस में काशी विश्वनाथ मंदिर, मथुरा में कृष्ण मंदिर और सोमनाथ मंदिर क्षतिग्रस्त कर दिए गए।

2 अप्रैल, 1679 को उसने जजिया कर लगा दिया, जो हिंदुओं को अपने धर्म का पालन करते रहने के लिए देना पड़ता था। औरंगजेब ने सिख गुरुद्वारों को ध्वस्त करने का आदेश दिया, गुरु तेग बहादुर को कैद कर लिया और कई दिनों तक यातनाएं देने के बाद उनकी हत्या कर दी, क्योंकि उन्होंने इस्लाम अपनाने से इनकार कर दिया था। गुरु गोविंद सिंह के समय में उसने सिखों पर क्रूरता जारी रखी और उनके चार बेटों की हत्या कर दी।

बोले तो, इतिहास की पुस्तकों में बताया जाता है कि अकबर महान थे, जबकि बताया जाना चाहिए महाराणा प्रताप को महान। सवाल यह है कि यदि हल्दीघाटी युद्ध में अकबर विजयी होता तो जीतने के बाद महाराणा प्रताप से छह बार युद्ध क्यों करता? जीते हुए किले पर बार-बार आक्रमण किया जाता है क्या? वैसे भी जो मातृभूमि के लिए लड़े वही महान है।

इसी प्रकार, क्रूर हत्यारे सिकंदर को यूनानी इतिहासकारों ने महान विजेता की संज्ञा दी, जिसे हम भारतीयों को भी कुछ इस तरह परोसा गया कि हमने मुहावरा तक रच लिया ‘जो जीता वही सिकंदर’, फिल्म तक बना डाली। जबकि एक निष्पक्ष इतिहासकार प्लूटार्क ने लिखा,’सिकंदर सम्राट पुरु (यूनानी पोरस कहते थे) की 20,000 की सेना के सामने तो ठहर नहीं पाया।

आगे विश्व की महानतम राजधानी मगध के महान सम्राट धनानंद की 3,50,000 की सेना उसका स्वागत करने के लिए तैयार थी।’ पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू तक ने अपनी पुस्तक ‘ग्लिम्पसेज ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री’ में सिकंदर को अभिमानी, उद्दंड, अत्यंत क्रूर और हिंसक बताया था, जो स्वयं को ईश्वर के समकक्ष मानता था।

बोले तो, अंग्रेज इतिहासकारों ने 1857 की क्रांति को कभी स्वतंत्रता का पहला संघर्ष नहीं माना। उसे एक ‘सिपाही विद्रोह’ ही करार दिया। लगभग डेढ़ वर्ष पूर्व वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी एम नागेश्वर राव ने आरोप लगाया था कि आजादी के बाद शुरुआत के 30 सालों में देश के शिक्षा मंत्रियों ने ‘खूनी इस्लामी आक्रमण अथवा शासन को नकार कर और उस पर लीपापोती’ के जरिए भारतीय इतिहास को ‘तोड़ा-मरोड़ा’ था और इनमें मौलाना अबुल कलाम आजाद भी शामिल थे।

झूठ बोले कौआ काटे, सियासी मायने से देखें तो पीएम मोदी ने अपने भाषण से अखिलेश यादव के जिन्ना वाले बयान और धार्मिक-जातीय ध्रुवीकरण की कोशिशों पर पानी फेरने की कोशिश की।

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भाजपा का साथ छोड़ कर सपा से हाथ मिलाने वाले ओमप्रकाश राजभर को विवादित बना दिया। कुछ महीने पहले ओमप्रकाश राजभर गाजी सैयद सलार मसूद की मजार पर मौजूद थे, जब AIMIM के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी मजार पर चादर चढ़ा रहे थे। जबकि, राजभर समुदाय स्वयं को राजा सुहेल देव का वंशज मानता है।

सैयद सलार मसूद बड़ी भारी सेना लेकर सन् 1031 में भारत आया था। वह पंजाब, सिंध, आज के उत्तर प्रदेश को रौंदता हुआ बहराइच तक जा पंहुचा। रास्ते में उसने लाखों हिन्दुओं का कत्लेआम कराया, लाखों हिंदू औरतों के बलात्कार हुए, हजारों मन्दिर तोड़ डाले। राजा सुहेल देव पासी ने उसको रोकने का बीड़ा उठाया। महाराजा व हिन्दू वीरों ने सलार गाजी व उसकी दानवी सेना को गाजर-मूली की तरह काट डाला। सलार भी गाजी मारा गया।

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पीएम मोदी ने काशी-विश्वनाथ धाम के पहले चरण में संलग्न मजदूरों के साथ खाना खाकर जो भावनात्मक संदेश देशभर को दिया उसका निचोड़ यही कि बंगाल के मालदा निवासी अब्दुल्ला ने कहा कि उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन देश के पीएम उन पर फूल बरसाएंगे और उनके साथ फोटो खिंचवाएंगे।

ऐसा लग रहा है जैसे अभी किसी खूबसूरत सपने से जागे हों लेकिन अभी उस सपने से बाहर न आ सके हों। राशिद और सैफुल्लाह ने भी पीएम के साथ भोजन करने के बाद कहा कि उनकी जिंदगी भर की गई मजदूरी सफल हो गई। बोले तो, मोदी-योगी का सियासी वार भी निशाने पर बैठा।