नौकरी और सावन 

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नौकरी और सावन 

 

मुकेश नेमा

 

प्राइमरी स्कूल वाले दिन। मनभावन मादक ज़ीनत अमान को मैंने लाखों के सावन के सदुपयोग के लिए स्लेट जैसी शक्ल वाले ,चुप्पे मनोज कुमार की मनुहार करते,और मनोज कुमार को गदगद होने के बजाय कन्नी काटते देखा। हक्का बक्का हुआ मैं।जी धक से रह गया मेरा। मैं फौरन इस नतीजे पर पहुँचा कि मनोज कुमार निखालिस गधा है और इसका कुछ नहीं हो सकता।

 

मैं तब हैरान हुआ था। सोचता रहा कि ज़ीनत अमान को ,हाय हाय करने की ,खुद को मजबूर बताने की,चपडगंजू टाईप के मनोज कुमार के सामने हाथ जोड़ने की ज़रूरत क्या है ? क्या फ़िल्म इंडस्ट्री के बाक़ी सारे हीरो ,उसके अड़ोस पड़ौस वाले मर गए हैं ? मामूली सा मनोज कुमार जिस तरह से भाव खा रहा था ,वो सरासर ज़ीनत अमान जैसी भारत सुंदरी की बेइज़्ज़ती थी जिसे मेरा बाल मन बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं कर सका था।

 

सालों बाद समझा मैं। हीरो की दीन हीन शक्ल से ही समझ लेना चाहिए था मुझे। ओवर ऐज हो चुका हीरो कहीं किसी प्राईवेट फ़र्म में जॉब कर रहा होगा। जानता होगा ,एकाध दिन की भी फ़ालतू छुट्टी की और पट से नौकरी गई। भाव खाता मनोज कुमार दरअसल बेचारा था। दया का पात्र था। और ऐसा इसलिए था क्योंकि वो कोई ग़ैर सरकारी नौकरी मे था। दिल का इस्तेमाल करने की इजाज़त थी ही नहीं उसे। वो गुनाहगार था नहीं ज़ीनत अमान का। वो अपने पापी पेट के हाथों मजबूर लाचार इंसान भर था।

 

सरकारी और गैर सरकारी में में अंतर में उतना ही जितना सावन और जेठ में होता है। एक निरंतर गीला दूसरा सनातनी सूखा। सरकारी सदाबहार और हरी भरी। जबकि प्राईवेट वाली खुश्क ,मौसमी। प्राईवेट बंदा जान की अमान भर माँग सकता है ,ज़ीनत अमान नही। सुंदर लड़कियाँ जानती है कि सरकारी का सावन कभी जाता नहीं और प्राईवेट वाले का आता नही।सुंदर लड़कियाँ अकलमंद होती ही है। वे जीवन भर सावन में भीगते रहना चाहती हैं। ऐसे में नौकरियों के बीच का यह बड़ा अंतर ज़ीनत कैसे पहचान नहीं सकी ये बात अपने आप में आश्चर्य जनक है।

 

सरकारी नौकरी करता क्यों है आदमी। केवल इसलिए ताकि जीवन में ज़ीनत जैसी मादक कन्या का सुनिश्चित प्रवेश हो सके। सरकारी बंदे और सावन की कद्र करती है सरकार। वो छुट्टी का टोटा न होने नहीं देती। एक सैकड़ा शनि रवि के अलावा ,पचासों तीज त्योहार ,बड़े लोगों के पैदा होने और मरने की पच्चीसों तारीख़ें । फिर तीस ई एल ,तेरह सी एल और तबियत नासाज ,मौसम ख़राब ,जैसी ख़ूब सारी छुट्टियाँ। इसके अलावा उसे ,मूड नहीं है आज ,साला आया हुआ है ,जैसी ,अनगिनत छुट्टियों का इख़्तियार भी हासिल होता है। पक्की नौकरी उसे निर्भीक बनाती है और ऐसे में किसी की परवाह किए बिना अपनी ज़ीनत की हर बात का मान रख सकता है।

 

सरकारी बंदा ,सावन और ज़ीनत अमान की इज़्ज़त न करे ऐसा मुमकिन ही नही।और फिर ज़ीनत जैसी समस्त परम सुंदरियाँ वैसे भी अपनी क़िस्मत में सरकारी बंदे लिखवा कर ,बात मनवाने के लिए पैदा होती है। उनके जीवन में मजबूरी ,दूरी या बीतते सावन जैसे कोई कष्ट नहीं होते।उनकी वरमालाएँ सदैव सरकारी सुपात्र के गले में ही पड़ती हैं। और ऐसा करने के बाद उनके मन के अंबर पर आनंद का स्वयंवर सदैव रचा रहता है। वे भली भाँति जानती है कि उनके वाले की नौकरी दो टकिया वाली नही। वे लानत नही भेजती उस पर ,न ही लाखों के सावन के बीतने की शिकायत करती है।

नौकरी और सावन दोनों के लाभ एक साथ लिए जाना तभी मुमकिन है जब नौकरी सरकारी हो। यह बात स्कूली दिनों में ना मैं समझ सका था न ज़ीनत अमान समझ सकी। पर बच्चों की ग़लतियाँ गिनी नहीं जाती और खूबसूरत लड़कियाँ ग़लतियाँ करती नही। ऐसे में मैं आज भी मानता हूँ कि सारी गलती मनोज कुमार की ही थी ,प्राईवेट नौकरी करते हुए ज़ीनत अमान को सैट कर लेना ,उसका टाईम और सावन ख़राब करना ,भीषण दुस्साहसिक गलती थी। ज़ाहिर है इतनी बड़ी गलती के लिए ,उसे मैं कभी दिल से माफ़ कर नहीं सकूँगा।