Job by Hiding Caste : ब्राह्मण ने फर्जी जाति प्रमाण पत्र से नौकरी की, रिटायरमेंट से पहले राज खुल गया!

सात साल की जांच के बाद जेल की सजा और अर्थदंड!

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Job by Hiding Caste : ब्राह्मण ने फर्जी जाति प्रमाण पत्र से नौकरी की, रिटायरमेंट से पहले राज खुल गया!

Indore : 23 साल पुलिस की नौकरी के बाद राज खुला कि आरक्षक सत्यनारायण पिता राम वैष्णव मूलतः ब्राह्मण है जिसने फर्जी जाति प्रमाणपत्र में खुद को जाति का कोरी बताकर नौकरी की। नौकरी के लिए उसने कागजों में अपनी जाति बदल ली। शिकायत के बाद 7 साल केस चला जिसका फैसला अब हुआ, जब रिटायरमेंट दो साल बचे थे। मामले में उसे दोषी पाते हुए सजा हुई।

जिला लोक अभियोजन अधिकारी संजीव श्रीवास्‍तव ने बताया कि न्‍यायालय चतुर्थ अपर सत्र न्‍यायाधीश जयदीप सिंह ने धारा 467, सहपठित धारा 471, भादंवि में 10 साल की सजा और धारा 420 व 468 में आरोपी आरक्षक को 7-7 साल की सजा सहित 4 हजार रुपए के अर्थदंड से दंडित किया है। आश्चर्य है कि सत्यनारायण वैष्णव ब्राह्मण से कोरी बन गया, तब किसी को भनक तक नहीं लगी। 19 साल की उम्र में वो पुलिस में भर्ती हुआ था। 23 साल बाद इस मामले की एक शिकायत मिली, जिसमें उसके जाति प्रमाण पत्र को लेकर सच्चाई बताई गई थी। इसके बाद कोर्ट में केस और नौकरी दोनों चलती रही। अभी जब आरक्षक के रिटायरमेंट दो साल बचे थे। उसे मामले में अब उसे दोषी पाते हुए सजा हुई है।

4 अगस्त 1983 को सत्यनारायण वैष्णव पुलिस में आरक्षक के पद पर भर्ती हुआ था। इसके 23 साल बाद 6 मई 2006 को छोटी ग्वालटोली के थाना प्रभारी को पुलिस अधीक्षक ऑफिस से आरक्षक सत्यनारायण (बैज नं.1273) के बारे में फर्जी जाति प्रमाण पत्र देकर पुलिस में नौकरी करने से संबंधित शिकायत मिली। शिकायत के साथ एक जांच प्रतिवेदन भी था। इसमें शिकायत करने वाली वर्षा साधु, ऋषि कुमार अग्निहोत्री और ईश्वर वैष्णव के बयान थे। बयान में कहा गया कि आरोपी सत्यनारायण वैष्णव ने कोरी समाज का जाति प्रमाण पत्र लगाकर नौकरी पाई है।

आरोपी के पिता रामचरण वैष्णव, उसका बड़ा भाई श्यामलाल वैष्णव और छोटा भाई ईश्वर वैष्णव सभी वैष्णव ब्राह्मण हैं। सत्यनारायण ने कोरी जाति का सर्टिफिकेट लगाया और नौकरी हासिल कर ली। फिर केस दर्ज होने के बाद 7 साल तक पुलिस जांच होती रही। आरोपी सत्यनारायण के खिलाफ छोटी ग्वालटोली थाने में साल 2006 में धारा 420, 467, 468, 471 के तहत मामला दर्ज हुआ। जांच में भी ये पाया गया कि जाति प्रमाण पत्र फर्जी है। 7 साल तक मामले की जांच होती रही और 18 दिसंबर 2013 को जांच पूरी कर कोर्ट में चालान पेश किया। अब इसका फैसला आया है।