Jobat Byelection: रावत  परिवार को वर्चस्व और कांग्रेस को सीट बचाने की चुनौती

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इंदौर से प्रदीप जोशी की रिपोर्ट 

अलीराजपुर जिले की जोबट विधानसभा में मुकाबला एकदम टक्कर का है। दिवंगत कांग्रेस विधायक कलावती भूरिया के निधन से रिक्त हुई इस सीट पर कांग्रेस भाजपा के बीच होने वाले मुकाबले में ऊंट किस करवट बैठेगा कुछ कहा नहीं जा सकता। इस सीट पर कांग्रेस के सामने सीट बचाने की चुनौती है वही भाजपा प्रत्याशी सुलोचना रावत के सामने अपने परिवार का वर्चस्व बचाने चुनौती है। यही कारण है कि दोनों ही दलों ने ताकत लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वैसे तो बीते बीस दिनों से भाजपा और कांग्रेस के दिग्गज मैदान में सक्रिय थे मगर सियासी बिसात पर असली चाल पिछले तीन दिनों में चली गई। चुनाव प्रचार खत्म होने के बाद बाहरी नेताओं का पलायन हो गया इसके बाद सारी रणनीतियां क्षेत्र के फालियों में सिमट गई थी। रिझाने की तमाम कोशिशों के बाद भी मतदाता खामोश है और यही खामोशी दोनों दलों के प्रत्याशियों की चिंता बढ़ाने का काम कर रही है।

रावत परिवार के दबदबे वाली सीट

जोबट विधानसभा सीट पर पहला चुनाव 1951 में हुआ था। इस सीट पर मुख्य मुकाबला कांग्रेस और सोशलिस्ट पार्टी के बीच ही होता रहा। 80 के चुनाव को छोड़ यह जीत का यह सिलसिला 1998 तक जारी रही। कांग्रेस के कद्दावर नेता और वर्तमान भाजपा प्रत्याशी सुलोचना रावत के ससुर अजमेर सिंह रावत का 25 बरस तक इस सीट पर दबदबा कायम रहा। वर्ष 1998 से 2013 के बीच चार चुनाव हुए जिसमे दो बार सुलोचना रावत और दो बार भाजपा के माधोसिंह डाबर विजयी रहे। कमजोर हो रहे दबदबे को देखते हुए कांग्रेस ने 2018 के चुनाव में कलावती भूरिया को टिकट दे दिया। इस बात से नाराज सुलोचना रावत और उनके पुत्र विशाल ने पार्टी से बगावत कर दी। विशाल निर्दलीय रूप चुनाव लड़े और 22 प्रतिशत से ज्यादा वोट हांसिल करने के बावजूद कलावती भूरिया की जीत को रोक नहीं पाए।

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वोट बैंक देख भाजपा ने खेला दांव

पिछले चुनाव में बगावत कर मैदान में उतरे विशाल रावत को 30 हजार से ज्यादा वोट प्राप्त हुए थे। यानी यह स्पष्ट था कि रावत परिवार का इतना वोट बैंक तो स्थाई है जो उन्हें मिलना तय है। उधर कोरोना संक्रमण के चलते असमय कलावती भूरिया का निधन हो गया। यह बात तय थी कि होने वाले उप चुनाव में कांग्रेस रावत परिवार को टिकट नहीं देगी। लिहाजा चुनाव घोषित होने के तत्काल बाद रावत परिवार ने भाजपा का दामन थाम लिया। भाजपा को अपने वोट और रावत परिवार के स्थाई वोट बैंक के आधार पर जीत यह लग रही थी इसलिए स्थानीय नेताओं की नाराजी को दरकिनार कर सुलोचना रावत को टिकट दे दिया गया।

स्थानीय नेताओं की अंतिम समय तक रही नाराजी

कांग्रेस छोड़ भाजपा में आई सुलोचना रावत को प्रत्याशी बनाए जाने से स्थानीय नेता खासे नाराज थे। दरअसल पार्टी के इस कदम से स्थानीय नेताओं के सामने राजनैतिक अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया। स्थानीय नेताओं से समन्वय बैठाने और चुनावी अभियान को गति देने के लिए ओमप्रकाश सकलेचा, गोविंद राजपूत, राजवर्धनसिंह दत्तीगांव और महेंद्र सिंह सिसोदिया जैसे चार चार कद्दावर मंत्री भाजपा की कमान संभाले रहे। इन मंत्रियों के अलावा इंदौर के विधायक रमेश मेंदोला और उनकी टीम भी मैदान में सक्रिय रही। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा के दौरे भी होते रहे। वीडी शर्मा तो अंतिम दो दिन क्षेत्र में रूके भी ताकि नेताओं की नाराजी दूर की जा सके। संगठन महामंत्री सुहास भगत और सह संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा भी अंतिम दिन दौरे पर पहुंचे।

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कुशल रणनीति पर चला कांग्रेस का केम्पेन

कांग्रेस प्रत्याशी महेश पटेल पर भी बाहरी होने के आरोप पूरे चुनावी केम्पेन में भाजपा लगाती रही। प्रचार के अंतिम सत्र में महेश पटेल के आपराधिक रिकार्ड का बखान भी भाजपाईयों ने खूब किया। बावजूद इसके कांग्रेस का चुनावी केम्पेन कुशल रणनीति पर चलता रहा। चुनाव की कमान पहले दिन से कमलनाथ के अत्यंत विश्वस्त विधायक रवि जोशी ने थाम ली थी। मैदान में कमान पूर्व मंत्री कांतिलाल भूरिया और युवा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ विक्रात भूरिया के हाथ थी। विधानसभा क्षेत्र के 5 ब्लॉक में पूर्व मंत्री डॉ विजयलक्ष्मी साधो, बाला बच्चन, हनी बघेल, उमंग सिंघार और पूर्व सांसद गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी प्रभारी के रूप में डट गए। क्षेत्र के 24 मंडलम और 65 सेक्टर की कमान स्थानीय नेताओं के हाथ में थी। अलीराजपुर विधायक मुकेश पटेल, ग्यारसीलाल रावत, प्रताप बघेल, डॉ हीरालाल अलावा, पांचीलाल मेढ़ा, वालसिंह मेढा, जेवियार मेढ़ा, हर्ष गेहलोत, वीरसिंह भूरिया, नगर पालिका की पूर्व अध्यक्ष सेना पटेल, वरिष्ठ नेत्री विजेता त्रिवेदी जैसे नेता अलग अलग सेक्टर में स्थानीय कार्यकर्ताओं के साथ सक्रिय रहे।