
जोधपुर — मन्दोर की अनोखी परम्परा: रावण का मंदिर और दशहरे पर शोक
डॉ. तेज प्रकाश व्यास की विशेष प्रस्तुति
जोधपुर के मन्दोर (Mandore) की पहाड़ियों में स्थित रावण का मंदिर स्थानीय इतिहास, लोककथा और धार्मिक भावनाओं का एक विशेष संगम प्रस्तुत करता है। यहाँ रावण और मंदोदरी की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हैं और स्थान को अक्सर रावण की ससुराल या मंदोदरी का पीहर कहा जाता है — यही कारण है कि स्थानीय लोकधारणा में इस स्थान का महत्व अलग है।

मंदोर में स्थापित रावण की मूर्ति लगभग ऊँची और प्रभावशाली बताई जाती है; मंदिर परिसर में मंदोदरी की प्रतिमा भी है, और पारंपरिक रूप से कुछ समुदाय यहाँ रावण को विद्वान या कुलदेव मानकर श्रद्धा व्यक्त करते हैं। पर्यटन तथा सरकारी प्रवर्तित मार्गदर्शिकाओं में भी मन्दोर के ऐतिहासिक स्थल और मंदिरों का उल्लेख मिलता है।
अधिक रोचक पहलू यह है कि यहाँ के कुछ समुदाय दशहरे के दिन रावण को दुश्मन के रूप में नहीं बल्कि अपने घर-सम्बन्धी (ससुर/ससुराल) रिश्ते के कारण ‘दुख/शोक’ के साथ स्मरित करते हैं — यानी रावण के वंशज या अनुयायी दशहरे पर उसकी मृत्यु के अवसर पर शोक और अनुष्ठान करते हैं। कुछ रिपोर्टों में यह बताया गया है कि स्थानीय तौर पर रावण के वंशजों या कुछ पारिवारिक समूहों द्वारा दशहरे के बाद के दिनों में विशेष स्मरण-क्रियाएँ (sutak/श्राद्ध-समान अनुष्ठान) की जाती हैं।

यह परम्परा यह दर्शाती है कि रामायण जैसे महाग्रन्थों की कथाएँ सम्पूर्ण भारत में एकरूपता से नहीं पढ़ी जातीं — क्षेत्रीय विश्वास, लोकपरम्परा और स्थानीय इतिहास मिलकर रावण को कभी दैत्य-नायक, कभी विद्वान-राजा, और कहीं-कहीं कुलदेव/ससुराल के सदस्य के रूप में चित्रित करते हैं। इसलिए मन्दोर का रावण मंदिर सिर्फ ऐतिहासिक स्मारक ही नहीं, बल्कि बहुविख्यात सांस्कृतिक दृष्टिकोणों तथा लोक-धार्मिक विविधता का प्रतीक भी है।





